पटना: डीएसपी सुमंत कुमार मोदी के रिटायर हुए एक वर्ष से अधिक होने को है, लेकिन अब तक उन्हें सेवांत लाभ नहीं मिला है. वह इसलिए नहीं मिला, क्योंकि दो वर्ष पहले उन्हें सरकारी काम में लापरवाही के आरोप में निलंबित कर दिया था.
निलंबन से मुक्ति तो मिल गयी, लेकिन उनकी परेशानी कम नहीं हुई. उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही चली, लेकिन सजा के बिंदु पर अधिकारी व सरकार एकमत नहीं हैं. नतीजा यह है कि सजा की बिंदुवाली फाइल कभी मुख्यमंत्री के यहां, तो कभी बिहार लोक सेवा आयोग में परामर्श के लिए जाती है. सुमंत की तरह सैकड़ों अधिकारी हैं, जिन्हें अब तक सेवांत लाभ नहीं मिला है. मुफस्सिल इलाके के कई ऐसे शिक्षक हैं, जिन्हें रिटायर्ड होने के 10 वर्ष बाद प्रोन्नति व एमएसीपी का लाभ दिया गया है.
निर्देश का उल्लंघन पर होगी कार्रवाई : अब वैसे रिटायर्ड कर्मियों के लिए खुशखबरी है. सरकार ने उनके बकाया राशि के भुगतान के लिए अधिकारियों को कड़ा निर्देश दिया है. मुख्य सचिव अशोक कुमार सिन्हा ने सभी विभागीय प्रमुखों को कहा है कि सेवांत लाभ से संबंधित सभी मामलों का निबटारा विशेष अभियान चला कर करें.
उन्हें यह भी कहा गया है कि एक माह के अंदर ग्रुप बीमा और उपाजिर्त अवकाश की समतुल्य राशि का जो भुगतान होता है, वह एक माह के अंदर हर हाल में भुगतान हो जाना चाहिए. अगर इस अवधि में भुगतान नहीं हुआ, तो जिम्मेवार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी. फिलहाल विभिन्न न्यायालयों में सेवांत लाभ व प्रोन्नति से संबंधित 20 हजार से अधिक मामले निबटारे के लिए लंबित हैं.
तय समय में कोर्ट में दाखिल हो शपथपत्र : 21 अक्तूबर को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति की बैठक में कई निर्णय लिये गये. मुख्य सचिव ने बैठक में भाग ले रहे अधिकारियों से पूछा कि हर बैठक में अभियान चला कर सेवांत लाभ से संबंधित मामलों के निबटारे व विभागों में गठित शिकायत निवारण समिति में कर्मचारियों की सेवा से संबंधित मामलों के निबटारे के निर्देश दिये जाते हैं, तो उनका अनुपालन क्यों नहीं हो रहा है. सरकार ने हर विभाग में कर्मचारियों की सेवा से संबंधित मामलों के निबटारे के लिए वरीय अधिकारियों की अध्यक्षता में गठित समिति में सुनवाई कर उसका निष्पादन कराने का टास्क विभागीय प्रमुखों को दे रखा है. जो मामले वर्षो से हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, उनमें दो सप्ताह के अंदर शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश है. सबसे ज्यादा मामले शिक्षा, स्वास्थ्य, खान, सामान्य प्रशासन व राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के लंबित हैं.