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वरष्ठि पत्रकार पारस नाथ सिंह नहीं रहे

वरिष्ठ पत्रकार पारस नाथ सिंह नहीं रहेफोटो कमलेश, कम्पोजिटर से लेना है.संवाददाता, पटनावरिष्ठ पत्रकार पारस नाथ सिंह नहीं रहे. बुधवार की सुबह अपने पैतृक गांव पटना जिले के सारंगपुर में उन्होंने अंतिम सांस लीं. 101 वर्षीय पारसनाथ सिंह ने पत्रकारिता जगत के स्तंभ माने जानेवाले विष्णुराव पराडकर के साथ काम किया था. पराडकर के साथ […]

वरिष्ठ पत्रकार पारस नाथ सिंह नहीं रहेफोटो कमलेश, कम्पोजिटर से लेना है.संवाददाता, पटनावरिष्ठ पत्रकार पारस नाथ सिंह नहीं रहे. बुधवार की सुबह अपने पैतृक गांव पटना जिले के सारंगपुर में उन्होंने अंतिम सांस लीं. 101 वर्षीय पारसनाथ सिंह ने पत्रकारिता जगत के स्तंभ माने जानेवाले विष्णुराव पराडकर के साथ काम किया था. पराडकर के साथ काम करनेवाले वह देश के अकेले पत्रकार रह गये थे. उनका अंतिम संस्कार बुधवार की दोपहर गुलबी घाट पर कर गया. छोटे बेटे हिमांशु शेखर सिंह ने उन्हें मुखाग्नि दी. 1944-45 में इंडियन नेशन से पत्रकारिता की शुरुआत करनेवाले पारस नाथ सिंह ने कई अखबारों में काम किया. पटना में जब आज अखबार की यूनिट खुली, तो उन्हें इसका प्रधान संपादक बनाया गया. बाद में वे हिंदी दैनिक प्रदीप में आ गये. 1986 में जब पटना से दैनिक हिंदुस्तान का प्रकाशन आरंभ हुआ, तो पारस नाथ सिंह इसके पहले संपादक बनाये गये. उनसे जुड़े लोगों ने बताया कि बिड़ला परिवार के एक वरिष्ठ सदस्य खुद सांरगपुर पहुंचे और उन्हें अपने साथ चलने को कहा. रास्ते में उन्हें बताया गया कि दैनिक हिंदुस्तान का आपको संपादन करना है. उनके पुत्र हिमांशु शेखर सिंह ने बताया कि पारस नाथ सिंह 1945 में वाराणसी आ गये. वहां उन्होंने सन्मार्ग में काम किया. इसके बाद वह दिल्ली आ गये, जहां उन्होंने आज अखबार में संपादकीय विभाग में काम संभाला. वे लंबे दिनों तक संसद की रिपोर्टिंग करते रहे. 1971 में उन्हें कानपुर में आज अखबार का मुख्य संपादक बनाया गया. 1986 में वे रिटायर हो गये. वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह ने कहा पारस नाथ सिंह के चले जाने से पत्रकारिता जगत का एक युग खत्म हो गया. उनके पास कई ऐसे संस्मरण थे, जो अभी भी राज बने हैं. श्री सिंह के मुताबिक पारस नाथ सिंह ने एक बार बताया था कि यूपी के प्रमुख नेता कमला प्रसाद त्रिपाठी कैसे पत्रकारिता से राजनीति में आये. पराडकर की लेखनी के पंडित नेहरू कायल थे. उनकी संपादकीय पढ़ने के बाद ही नेहरू की दिनचर्या आरंभ होती थी. एक दिन पराडकर को किसी काम से बाहर जाना था. उन्होंने उस दिन अपने पत्रकार सहयोगी कमलापति त्रिपाठी को संपादकीय लिखने की जिम्मेवारी दी. अगले दिन पंडित नेहरू का फोन जब पराडकर को आया और उन्होंने संपादकीय की तारीफ की, तो पराडकर ने कहा कि वह मैंने नहीं, मेरे सहयोगी कमला जी ने लिखा है. पंडित नेहरू तब कमलापति त्रिपाठी को जान पाये.

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