पटना: ऊंची ब्याज दर पर कर्ज लेकर झारखंड के पेंशनभोगियों को बिहार सरकार कब तक पेंशन का भुगतान करेगी? यह बिहार सरकार के लिए अहम सवाल बना हुआ है. मुख्य सचिव अशोक कुमार सिन्हा ने पत्र लिख कर केंद्रीय गृह सचिव के समक्ष इस सवाल को रखा है.
राज्य विभाजन के समय बिहार का जितना बजट होता था, लगभग उतनी ही राशि ब्याज की हो गयी है यानी बिहार ने 1597.46 करोड़ रुपये का भुगतान ब्याज के रूप में किया है. 15 नवंबर, 2000 से वित्तीय वर्ष 2010-11 तक 24,431.02 करोड़ रुपये का भुगतान पेंशन मद में किया गया, जिनमें से बिहार ने 18871.44 करोड़ व झारखंड ने 5559.68 करोड़ का भुगतान किया है.
बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक, 2000 के प्रावधान के अनुसार, बिहार की हिस्सेदारी 16287.35 करोड़ की थी, लेकिन इसने 2584.09 करोड़ रुपये अधिक का भुगतान किया है. केंद्रीय गृह सचिव को लिखे पत्र में कहा गया है कि हर वर्ष 500 से 600 करोड़ रुपये झारखंड के पेंशनभोगियों को भुगतान करना पड़ता है. राज्य सरकार के पास इतना संसाधन नहीं है कि वह नियमित रूप से पेंशन दे. हमें ऊंची ब्याज दर पर कर्ज लेकर पेंशन का भुगतान करना पड़ता है. जो राशि भुगतान की गयी है, उस पर 1597.46 करोड़ रुपये का ब्याज हो गया है.
झारखंड के फैसले से बढ़ी परेशानी
मुख्य सचिव ने कहा है कि झारखंड ने अपने पेंशनभोगियों के लिए छठे वेतन आयोग की अनुशंसा को एक जनवरी, 2006 के प्रभाव से लागू किया है, जबकि बिहार ने एक अप्रैल, 2007 के प्रभाव से. राज्य विभाजन के पूर्व के झारखंड में रह रहे पेंशनभोगियों को भी झारखंड सरकार के निर्णय के अनुसार बढ़ी दर पर पेंशन का भुगतान करना पड़ रहा है. लिहाजा, अतिरिक्त वित्तीय बोझ बिहार सरकार को वहन करना पड़ा है. कितनी अतिरिक्त राशि का भुगतान हुआ है, उसका आकलन किया जा रहा है.
10 किस्तों में भुगतान
केंद्रीय गृह सचिव ने पिछले सितंबर, 2012 में फैसला दिया था कि बिहार को 2584 करोड़ का भुगतान झारखंड करे. बार-बार अनुरोध के बावजूद अब तक मात्र 150 करोड़ रुपये ही मिले हैं. चालू वित्तीय वर्ष के बजट में पेंशन मद में बिहार को भुगतान के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. केंद्र 10 किस्तों में प्रावधान की गयी राशि का भुगतान सुनिश्चित कराये.