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नीतीश कुमार का दावा खोखला : मोदी

पटना: पूर्व उपमुख्यमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर राजनैतिक हमला करते हुए कहा है कि अपनी चुनावी सभाओं में जनता को झांसा देने की कोशिश में जुटे मुख्यमंत्री का यह दावा पूरी तरह से खोखला है कि भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद बिहार में ‘सबसे अच्छा’ […]

पटना: पूर्व उपमुख्यमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर राजनैतिक हमला करते हुए कहा है कि अपनी चुनावी सभाओं में जनता को झांसा देने की कोशिश में जुटे मुख्यमंत्री का यह दावा पूरी तरह से खोखला है कि भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद बिहार में ‘सबसे अच्छा’ काम हुआ.

हकीकत है कि गठबंधन टूटने के बाद तो बिहार विकास के सभी क्षेत्रों में पिछड़ता चला गया. यह निष्कर्ष पिछले दिनों एक प्रतिष्ठत समाचार समूह द्वारा देश के 20 बड़े राज्यों के कामकाज के आंकलन के आधार पर निकाला गया था. विकास के सभी पैमाने के आधार पर वर्ष 2012-13 में देश के 20 बड़े राज्यों में बिहार जहां 11 वें स्थान पर था वहीं भाजपा के सरकार से अलग होने के बाद वर्ष 2013-14 में वह फिसल कर 20 वें पायदान पर पहुंच गया.

20 बड़े राज्यों में बिहार 18वें पर पहुंचा : श्री मोदी ने कहा कि के दो विख्यात अर्थशास्त्री लवीश भंडारी और सुमीत काले ने राज्यों की दशा-दिशा का आंकलन वस्तुनिष्ठ आंकड़ों के आधार पर कर उनकी रैंकिंग की. रैंकिंग के लिए 8 श्रेणियां यानी कृषि, आधारभूत संरचना, अर्थव्यवस्था, निवेश, स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशासन और उपभोक्ता बाजार के वस्तुनिष्ठ आंकड़ों को आधार बनाया गया था. बिहार की रैंकिंग इन सभी श्रेणियों में 16 से 20 के बीच थी. बिहार में जहां कृषि रोड मैप की चर्चा इतनी जोर शोेर से होती रही है वह कृषि क्षेत्र 2012-13 के पांचवें स्थान से खिसक कर 2013-14 में 20 वें स्थान पर पहुंच गया. संरचना के मामले में भी इसी अवधि में 20 बड़े राज्यों में 8 वें स्थान से नीचे गिर कर बिहार 18वें स्थान पर पहुंच गया.
बिहार सभी मानकों में पिछड़ा साबित हुआ : अर्थव्यवस्था विकास के मामले में चौथे से 18 वें, निवेश में 8 वें से 15 वें, उपभोक्ता बाजार में 8 वें से 16 वें तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में 15 वें से 16 वें स्थान पर बिहार चला गया. शिक्षा के क्षेत्र में साल 2011-12 में जहां बिहार तीसरे स्थान पर था, 2012-13 में 9 वें स्थान पर आया तो 2014-15 में 15 वें स्थान पर पहुंच गया.

भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद बिहार में जिस तरह से जोड़तोड़ और राजनीतिक अस्थिरता के दौर में सरकार चली, उसी का नतीजा है कि बिहार सभी मानकों में पिछड़ा साबित हुआ है. विकास का सारा कामकाज बुरी तरह से प्रभावित रहा. पिछले 26 महीनों से समावेशी विकास और
सुशासन का नारा लफ्फाजी बन कर रह गया है.

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