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कलाकारों को कब मिलेगी बिचौलियों से मुक्ति

मधुबनी का मुद्दा : मधुबनी पेंटिंग ने बीते दशकों में देश ही नहीं दुनिया में अपनी पहचान बनायी है. इसके कलाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान व सम्मान भी मिला है, लेकिन जमीनी स्तर पर काम के बावजूद इन्हें अपने हुनर को निखारने के लिए बाजार नहीं मिल रहा है. बिचौलियों के सहारे कौड़ियों के […]

मधुबनी का मुद्दा : मधुबनी पेंटिंग ने बीते दशकों में देश ही नहीं दुनिया में अपनी पहचान बनायी है. इसके कलाकारों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान व सम्मान भी मिला है, लेकिन जमीनी स्तर पर काम के बावजूद इन्हें अपने हुनर को निखारने के लिए बाजार नहीं मिल रहा है. बिचौलियों के सहारे कौड़ियों के भाव इनकी कला का मोल लग रहा है. ऐसा नहीं है कि इसको लेकर पहल नहीं हुई, लेकिन अभी तक कोई पहल रंग नहीं ला सकी है. महासुंदरी देवी, सरस्वती देवी, गोदावरी दत्ता, सीता देवी जैसे कलाकारों ने इस कला को अपनी मेहनत से सींचा है. कलाकारों की नयी पौध तैयार की है.
आधी आबादी ने दिया मुकाम
घर तक सीमित रहनेवाली महिलाओं ने मधुबनी पेंटिंग को नयी ऊंचाई दी है. इनमें ऐसे दर्जनों नाम हैं, जिन पर मधुबनी के लोगों को नाज है. हाथ में ब्रश, रंग व कागज पर अपनी भवनाओं के जरिये कलाकृतियां उकेर कर महिलाओं ने इसे नया मुकाम दिया है. यह काम निरंतर जारी है. अब दीवार पर टांगनेवाली पेंटिंग ही नहीं बनती, बल्कि मधुबनी पेंटिंग की साड़ियां भी बनती हैं.
सरकारें बदलीं, परेशानी वही
मधुबनी पेंटिंग से जुड़े कलाकार कहते हैं कि आजादी के बाद से कई सरकारें बदलीं. उनकी जगह नयी सरकारों ने ली, लेकिन हम लोगों की परेशानी जस की तस रही. हमारी कला को व्यावसायिक बनाने का आश्वासन सबने दिया, लेकिन ये अब तक सिर्फ कोरा आश्वासन साबित होता रहा है. अब भी लगभग तीन हजार कलाकारों की सुबह पेंटिंग बनाने के साथ शुरू होती है, जो देर रात तक जारी रहता है.
मिला सिर्फ आश्वासन
इसे राजनीतिक दावं-पेंच कहें या फिर कुछ और, मधुबनी पेंटिंग के कलाकारों को अब तक सिर्फ आश्वासन मिलते रहे हैं. अब विधानसभा चुनाव का समय आया है, तो कलाकारों को फिर से नेताओं की ओर से आश्वासनों का दौर शुरू हो गया है. मधुबनी पेंटिंग के कलाकार कहते हैं, हमें आश्वासन लगातार मिलते हैं. लेकिन इससे कब तक काम चलेगा. अब हम सिर्फ आश्वासनों के सहारे नहीं रह सकते हैं.
नहीं खुल सका इंस्टीट्यूट
जिले के सौराठ इलाके में मिथिला पेंटिंग इंस्टीट्यूट खोलने की पहल चल रही थी, जो अब थम गयी है. इसके लिए जमीन चिह्नित कर ली गयी थी. लोगों को तब लगा था कि इंस्टीट्यूट के जरिये कला को व्यावसायिक रूप में स्थापित करने का सपना साकार होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. इससे पहले 2012 में जितवारपुर आये मुख्यमंत्री ने म्यूजियम बनाने की बात कही थी, लेकिन तीन साल बाद भी कोई पहल नहीं हो सकी है.
मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद भी म्यूजियम बनने को लेकर पहल नहीं होने से यहां के कलाकारों में निशाना है. कलाकार खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं. कहते हैं, सीएम के आश्वासन का ये हश्र है, तो आगे क्या होगा?
टूट रहा है हौसला: मोती देवी
जितवारपुर गांव की रहनेवाली मोती देवी मधुबनी पेंटिंग बनाती हैं. उन्हें राज्य सरकार से पुरस्कार मिल चुका है. वह इस पर खुशी जताती हैं, लेकिन कहती हैं कि अब हौसला टूट रहा है.
हमें अपनी कला का सौदा बिचौलियों के हाथ करना पड़ता है. यह ठीक नहीं लगता है. वहीं, मधुबनी पेंटिंग की एक और कलाकार आशा देवी बताती हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी उनके परिवार के लोग इस कला की सेवा करते रहे हैं.
सोचती है कि सरकार इसके लिए कुछ करेगी, लेकिन स्थिति नहीं बदल रही है.
म्युजियम बनाने की होगी पहल: नसीर
हस्त शिल्प विभाग के सहायक निदेशक एसएम नसीर सरकार की ओर से की गयी पहल पर कहते हैं कि हमने कलाकारों का कार्ड बनाया है. जिले से बाहर लगनेवाली मेलों व प्रदर्शनी में इन्हें जाने का मौका दिया जाता है. म्यूजियम बनाने की जल्द ही पहल की जायेगी. इसके उलट हकीकत ये है कि यहां के कलाकार जिले के बाहर लगनेवाले मेलों में नहीं जाते हैं. इनका कहना है कि जब कोई ठोस योजना ही नहीं है, तो हम लोग मेले में जाकर क्या करेंगे?

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