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विदेशों से पैसा ट्रांसफर करने के नाम पर ठगी का करोबार

कौशिक रंजन पटना : विदेशों में काम कर रहे लोगों को अपने परिजनों के पास पैसे भेजने का एक बड़ा माध्यम ‘वेस्टर्न मनी ट्रांसफर’ भी है. छोटे या बड़े शहरों में दुकानों पर पीले रंग के बोर्ड पर कंपनी के नाम लिखे इसके बहुत से ऑउटलेट या सेल्स प्वाइंट देखने को मिल जाते हैं. वेस्टर्न […]

कौशिक रंजन
पटना : विदेशों में काम कर रहे लोगों को अपने परिजनों के पास पैसे भेजने का एक बड़ा माध्यम ‘वेस्टर्न मनी ट्रांसफर’ भी है. छोटे या बड़े शहरों में दुकानों पर पीले रंग के बोर्ड पर कंपनी के नाम लिखे इसके बहुत से ऑउटलेट या सेल्स प्वाइंट देखने को मिल जाते हैं.
वेस्टर्न मनी ट्रांसफर ने पैसे की लेन-देन का कारोबार करने के लिए कुछ एजेंट भी बना रखे हैं, जिनके माध्यम से यह पूरा कारोबार चलता है.
परंतु यह पैसे की गड़बड़ी करने और विदेशों से गलत तरीके से पैसे मंगवाने का जरिया भी बनते जा रहे हैं. इसमें अब तक गलत आइडी की बदौलत पैसे निकालने, किसी एनआरआइ से विदेशों में ठगी करके इसका पैसा यहां भेजना और बिना किसी ठोस सबूत के पैसे का ट्रांजेक्शन करने जैसे मामले सामने आ रहे हैं.
बिहार के विभिन्न जिलों से अब तक इस तरह के करीब 32 मामले सामने आये हैं. इन मामलों की गहन छानबीन इओयू (आर्थिक अपराध इकाई) कर रहा है. ये पैसे विदेशों से आने के बाद राज्य में कहां गायब हो जा रहे हैं.
गुमनाम बनकर कौन इन्हें निकाल ले रहा है. राज्य के भागलपुर, गोपालगंज, भोजपुर, कोईलवर, सीवान और गया जिलों में ऐसे मामलों की संख्या सबसे ज्यादा है. इओयू ने इसके लिए आरबीआइ (भारतीय रिजर्व बैंक) और राष्ट्रीय स्तर की कुछ गुप्तचर संस्थाओं के साथ बैठक भी की है. इस मामले की फिलहाल गहन जांच चल रही है.
प्राप्त सूचना के अनुसार, कई मामलों में आगे की पूछताछ के लिए इओयू जल्द ही कुछ वेस्टर्न मनी ट्रांसफर के रिटेलरों को भी हिरासत में ले सकती है. इस गड़बड़ी को साइबर क्राइम का भी मामला माना जा रहा है.
वेस्टर्न मनी ट्रांसफर को विदेशी मुद्रा आदान-प्रदान करने का लाइसेंस आरबीआइ की तरफ से मिला हुआ है. इस वजह से इओयू ने कई मुद्दों पर आइबीआइ से भी जानकारी मांगी है.
यह प्रक्रिया है मनी ट्रांसफर की
‘वेस्टर्न मनी ट्रांसफर’ के नियमों के अनुसार, जो व्यक्ति विदेश से भारत में किसी व्यक्ति को पैसे भेजने के लिए पैसा इसमें डालता है. उसे एक गुप्त कोड दिया जाता है. इस कोड को वह अपने सगे संबंधियों को बताता है, तभी भारत या बिहार में उस व्यक्ति को पैसा मिलते हैं.
यह कोड इतना गुप्ता होता है कि इसकी जानकारी किसी को नहीं यहां तक कंपनी के कर्मचारी तक को नहीं होती है. इस कोड के साथ पैसा लेने वाले व्यक्ति के आइडी की पूरी तरह से जांच करने के बाद ही पैसे दिये जाते हैं.
50 हजार से कम रुपये ही कैश के रूप में दिये जाते हैं. इससे ज्यादा रकम होने पर डीडी या चेक दिया जाता है. फर्जीवाड़ा करने वाले 50 हजार से कम रुपये ही कैश के रूप में कई बार करके निकाल ले रहे हैं. गुप्त कोड कहां से और कैसे लिक हो रहा है, इसकी जांच भी की जा रही है.
1 सेल प्वाइंट से किसी गलत आइडी पर कैश पैसे उठाये जा रहे हैं. जांच में यह बात सामने आयी कि जो आइडी दी गई है, उस नाम का कोई व्यक्ति ही नहीं है. इस फर्जी आइडी की बदौलत महीने में कई बार पैसे उठा लिये जा रहे हैं. रिटेल दुकान वाले बिना किसी गहन छानबीन के ही व्यक्ति को पैसे दे रहे हैं. अधिकांश मामलों में पैसा भेजने वाले व्यक्ति की आइडी का भी कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है. इन कारणों से इसे तरह के मामलों को मनी लांड्रींग या ब्लैक मनी भेजने का भी प्रतीत हो रहा है.
2 लंदन में रहने वाली एक एनआरआइ महिला को एयरपोर्ट पर किसी ने फोन करके कहा कि आपके पासपोर्ट में कुछ गड़बड़ी है. आपको गिरफ्तार भी किया जा सकता है. इससे बचने के लिए एक हजार पाउंड (यूके करेंसी) तुरंत एकाउंट नंबर में ट्रांसफर कर दे. महिला ने घबराहट में पैसे उस एकाउंट में ट्रांसफर कर दिये. यह पैसा मनी ट्रांसफर के जरिये बिहार के किसी एकाउंट में पहुंचा. परंतु जिसके नाम पर वह एकाउंट था, वह व्यक्ति फर्जी निकला. पैसा उठाने वाले की भी सही पहचान नहीं है.
3 बोधगया में कई बौध भिक्षु की आइडी पर पैसे उठा लिये गये हैं. जब इओयू ने जांच शुरू की तब इस मामले का पर्दाफाश हुआ. इस तरह के मामलों में दूसरे व्यक्ति की आइडी जोरी-छिपे उपयोग की गयी है.
एक-दो मामले में यह भी मिला है कि जिस रिटेल शॉप के कोड और नाम का उपयोग मनी ट्रांसफर में किया जा रहा है, वास्तविक में उस दुकानदार के पास इसका लाइसेंस ही नहीं है. मनी ट्रांसफर का वह कारोबार ही नहीं करता है. कोईलवर में यह मामला सामने आया है.

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