संसदीय लोकतंत्र में विधानसभा या संसद के लिए चुने गये प्रतिनिधि पहले शपथ लेते हैं, फिर सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेते हैं. ऐसी व्यवस्था भारत के प्राचीन गणराज्यों में भी थी. भले ही इसका स्वरूप कुछ अलग किस्म का था. वृजि संघ में यह व्यवस्था थी कि जो सभासद चुन कर आते थे, वे पहले अभिषेक पुष्कर्णी में डूबकी लगाते थे. इसके बाद वे बैठक में भाग लेते थे.
यदि यह बात गर्व से कही जाती है कि लोकतंत्र का जन्म बिहार के वैशाली में हुआ था, तो इसके पीछे कुछ इसी तरह के ठोस तर्क हैं. आठ अलग-अलग जनों लिच्छवी, विदेह, ज्ञातृकगण और पांच अन्य छोटे गणराज्य को मिला कर वज्जि या वृजि संघ का गठन किया गया था. इन्हें अष्टकुल कहा जाता था. इसकी राज्य परिषद में करीब साढ़े सात हजार सदस्य होते थे. सभी तरह के फैसले वैशाली में बैठक कर लिये जाते थे.
यहां आज की तरह संसद बैठती थी. भगवान बुद्ध ने पहली बार वैशाली में ही महिलाओं को बौद्घ संघ ने प्रवेश दिलाया था. यह एक तरह से महिलाओं को अधिकार की शुरुआत थी. इतना ही नहीं, वैशाली ने अहिंसा, करुणा और आपसी मेल-जोल का भी संदेश दिया था, जो लोकतंत्र की बुनियाद है.