1957 के बिहार विधानस चुनाव में कांग्रेस में भितरघात और एक-दूसरे की टांग खींचने की राजनीति खुल कर उजागर हुई थी. इसका असर लंबे असर तक कांग्रेस में रहा. इसकी वजह से कांग्रेस के दो दिग्गज चुनाव हार गये. एक थे केबी सहाय और दूसरे थे महेश प्रसाद सिन्हा. राजस्व मंत्री केबी सहाय गिरीडीह सीट से खड़े थे, जबकि परिवहन मंत्री महेश प्रसाद सिन्हा मुजफ्फरपुर सीट से लड़ रहे थे. दोनों विधानसभा चुनाव हार गये.
इसके बाद दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ भितरघात का आरोप लगाया. केबी सहाय का कहना था कि महेश बाबू ने उन्हें हराने के लिए सरकारी बसों का इस्तेमाल किया, जबकि श्री सिन्हा का कहना था कि केबी सहाय ने महामाया बाबू की मदद की. जांच के लिए दिल्ली से टीम आयी. दोनों के आरोप सही पाये गये. कांग्रेस नेतृत्व ने 1962 तक दोनों के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी. केबी सहाय खुलकर श्रीबाबू के खिलाफ हो गये. महेश प्रसाद सिन्हा को खादी बोर्ड का चेयरमेन बनाया गया. तब जेपी और श्री बाबू के बीच पत्रचार चर्चा में रहा.