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बदल गया है बिहारी होने का मतलब

बिहार का चुनाव बहुत पहले से ही राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है. जो राजनीतिक बदलाव पूरे देश को प्रभावित करता है, वह बदलाव बिहार को बहुत पहले से ही प्रभावित करना शुरू कर देता है. इसलिए इसबार के विधानसभा चुनाव पर सभी की नजर है. पूरे देश के लोग देखना चाहते हैं कि बिहार […]

बिहार का चुनाव बहुत पहले से ही राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है. जो राजनीतिक बदलाव पूरे देश को प्रभावित करता है, वह बदलाव बिहार को बहुत पहले से ही प्रभावित करना शुरू कर देता है. इसलिए इसबार के विधानसभा चुनाव पर सभी की नजर है. पूरे देश के लोग देखना चाहते हैं कि बिहार का वोटर महागंठबंधन को बहुमत देता है या एनडीए को.

मैं पिछले माह बिहार गया था. मैं बहुत घूमता हूं और लोगों से मिलता हूं और खूब बतिआता भी हूं. यह मेरी आदत और पेशागत मजबूरी दोनों है. लोगों से मिलने-जुलने और बतिआने के बाद मैने यही पाया कि यह वह बिहार नहीं है जो दस-पंद्रह साल पहले था. गांव-गांव तक सड़क पहुंच गयी है, बिजली पहुंच गयी है, सरकारी स्कूलों में बच्चे दिखने लगे हैं. यानी विकास गांव-गांव तक पहुंच गया है और यह लोगों की सोच, बोल-चाल में भी दिखने लगा है.
इसी विकास ने बाहर में बिहार की इमेज को बदल दिया है. पहले बिहार का नाम आते ही लोगों के जेहन में एक ऐसे राज्य की तसवीर आती थी जहां कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज अस्तित्व में ही नहीं है. अब ऐसा नहीं है. अब लोग बिहार का होने का मतलब मेहतनकश और ईमानदार समझते हैं. दूसरे राज्यों में जब लोगों को पता चलता है कि फलां व्यक्ति बिहार का है तो उससे कहा जाता है कि आपके यहां के कई लोग सरकारी से लेकर निजी कंपनियों में बड़े ओहदों पर हैं.
आपलोग बहुत मेहनती और ईमानदार होते हैं. मुङो मुंबई में इस तरह की बात कहने वाले कई लोग मिल गये. इस तरह की बात सुनकर बहुत अच्छा लगता है. यह बदलाव पिछले आठ – दस वर्षो का है. साफ-साफ कहूं तो नीतीश कुमार के शासनकाल में यह बदलाव आया. ऐसा सभी पार्टियों के नेता मानते भी हैं. नीतीश कुमार का विरोध करना पार्टीगत मजबूरी हो सकती है, लेकिन इस बात पर नीतीश के विरोधी भी सहमत हैं कि पिछले आठ-दस वर्षो में बिहार में जो काम हुए हैं उतने काम उससे पहले कभी नहीं हुए.
16 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. यह ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि दो दशक से अधिक समय बाद देश ने किसी एक पार्टी को केंद्र की सत्ता में बहुमत दिया. इसके बाद कई राज्यों में भाजपा की सरकार बनी.बिहार हमेशा से देश की राजनीति की दिशा तय करता रहा है. सभी यही देखना चाहते हैं कि क्या बिहार धारा के साथ बहता है या उसके विपरीत जाता है. मुंबई में मुझ से अक्सर में मित्र पूछते हैं – आपके राज्य में ऊंट किस करवट बैठेगा. किसकी हवा चल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कितना प्रभाव है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू प्रसाद का गंठबंधन कहां तक सफल हो पायेगा. जब से बिहार से लौटा हूं तब से ऐसे सवालों से रोज सामना होता है. इन सभी सवालों का मेरा एक ही जवाब होता है- इंतजार कीजिए, हालांकि मेरे मन भी यही सारे सवाल उठते रहते हैं. मैं अपने राज्य के वोटरों से सिर्फ यही कहना चाहता हूं कि वोट जाति और धर्म के आधार नहीं कर्म के आधार पर दें. इससे बिहार और आगे बढ़ेगा.
लेखक मूलत: सुपौल जिले के के रहने वाले हैं. मुंबई में रहते हैं और फिल्म लेखन से जुड़े हैं.

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