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भूमि सुधार के बिना औद्योगिकीकरण नहीं

पटना: भारत में भूमि सुधार के बिना औद्योगिकीकरण संभव नहीं है. बिहार व उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में तो इसकी और आवश्यकता है. ये बातें प्रसिद्ध राजनीतिक अर्थशास्त्री अमिय कुमार बागची ने मंगलवार को अनुग्रह नारायण सिन्हा सामाजिक अध्ययन शोध संस्थान के स्थापना दिवस पर ‘द नेक्स्ट ट्रांसफॉरमेशन फॉर ह्यूमन काइंड : टूवार्डस इगेलिटेरियन एंड ग्रीन […]

पटना: भारत में भूमि सुधार के बिना औद्योगिकीकरण संभव नहीं है. बिहार व उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में तो इसकी और आवश्यकता है. ये बातें प्रसिद्ध राजनीतिक अर्थशास्त्री अमिय कुमार बागची ने मंगलवार को अनुग्रह नारायण सिन्हा सामाजिक अध्ययन शोध संस्थान के स्थापना दिवस पर ‘द नेक्स्ट ट्रांसफॉरमेशन फॉर ह्यूमन काइंड : टूवार्डस इगेलिटेरियन एंड ग्रीन ग्रोथ’ पर आयोजित व्याख्यानमाला में कहीं.

अपना प्लांट लगाने का प्रयास नहीं
उन्होंने कहा कि अभी तक राज्य सरकारों द्वारा किसानों के हित में भूमि सुधार हुआ है. भूमि पर अधिकतर लोग निर्भर हैं. यहां कुख्यात भूस्वामी हैं. भारत में औद्योगिकीकरण की दिशा में पहल की गयी. इसके तहत सिंदरी में नया फर्टिलाइजर कारखाना लगाया गया. पर, उसी समय केंद्र सरकार ने यह निर्णय लिया कि वहां विदेश से मंगाये गये प्लांट लगाये जायेंगे. इसके बाद कभी यह निर्णय ही नहीं लिया कि अपना फर्टिलाइजर प्लांट स्थापित करे. मेकॉन ने बोकारो व भिलाई कारखाने में अपनी विशेषज्ञता से ग्रीन फिल्ड प्लांट लगाने की कोशिश की, पर उसके विस्तार की अनुमति नहीं दी गयी. इससे भारत लौह अयस्क में विश्व में निर्यातक हो सकता था. ऐसा नहीं हुआ. इसकी जगह भारत व ऑस्ट्रेलिया से लौह अयस्क मंगा कर चीन विश्व में स्टील का सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया.

लगाये जा सकते हैं छोटे हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट
उन्होंने कहा कि 1950 से 60 के दशक के मध्य तक भारत हरित क्रांति के माध्यम से विकास दर में वृद्धि कर रहा था. भारतीय कृषि विकास दर को हासिल कर रही थी. इसी दौरान प्राइवेट सेक्टर सरकारी संरक्षण में संपन्न होने लगे थे. उस दौरान एक साजिश के तहत समान विचारधारावाले राजनेताओं और नौकरशाहों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को हाइजैक कर लिया. इसने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को पीछे खींच दिया. 1991 में भारत की आर्थिक नीति समाप्त हो गयी. यह वर्तमान में भारतीय रुपये के अवमूल्यन के रूप में दिखने लगा है.

उन्होंने कहा कि रासायनिक खाद से मिट्टी की उत्पादकता में कमी आयी है. उप सहारा देशों में इस तरह का प्रयोग हुआ है. इस तरह के प्रयोगों को प्रोत्साहित करने और सीखने की जरूरत है. दूसरा, निवेश चीन में परंपरागत ऊर्जा के क्षेत्र में हो रहा है. भारत इसमें काफी पीछे है. भारत में छोटे हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट लगाये जा सकते हैं. यह हमारे भविष्य की ऊर्जा के स्नेत हैं. विषय प्रवेश संस्थान के निदेशक डॉ डीएम दिवाकर ने कराया. विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो सुरेंद्र गोपाल मौजूद थे.

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