बिहार की जनता इस बार जातीय गणना की रिपोर्ट नहीं, विकास का रिपोर्ट कार्ड देख कर फैसला करेगी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोगों को जातीयता से प्रभावित कर विकास के मुद्दे से उनका ध्यान हटाना चाहते हैं. वे जनगणना की रिपोर्ट जारी करने की मांग कर रहे हैं, जबकि उनकी सरकार ने राज्य में जनगणना काम एक साल देर से शुरू किया. इसमें तीन साल का समय लग गया.
पूर्वी चंपारण और रोहतास में जनगणना का अंतिम प्रारूप प्रकाशित नहीं हुआ है. राज्य के 11 जिलों की जातीय जनगणना प्रारूप तो पिछले महीने ही प्रकाशित हो सका. इस पर एक करोड़ से ज्यादा लोगों की आपत्तियां आयी. देश भर के आंकड़े लेकर तैयार की जानी वाली जातीय जनगणना की रिपोर्ट पूरी भी नहीं हुई कि उस पर लालू प्रसाद राजनीति करने लगे. पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा कि विकास की राजनीति पर नीतीश कुमार का भरोसा नहीं रहा, इसलिए वे भी जातीयता का कार्ड खेल रहे हैं. लालू प्रसाद ने 15 साल तक जाति के नाम पर राजनीति कर बिहार को 50 साल पीछे धकेल दिया. जंगलराज में गरीबी, पलायन और अपराध को बढ़ावा मिलता देख सभी जातियां लालू प्रसाद का साथ छोड़ चुकी हैं. लालू प्रसाद से दोस्ती के बाद नीतीश कुमार बिहारी अस्मिता को छोड़ जातीयता की राजनीति पर उतर आये हैं.