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‘भविष्य’ के सफर से बंद हो खिलवाड़
लापरवाही : कहीं खानापूर्ति बन कर न रह जाये स्कूली वाहनों के खिलाफ अभियान रविशंकर उपाध्याय पटना : मानकों का ख्याल नहीं रखने वाले और नियम तोड़ कर चलने वाली स्कूली गाड़ियों के खिलाफ परिवहन विभाग का अभियान शुरू हो गया है. हालांकि यह पहली बार नहीं है कि ऐसा अभियान चलाया जा रहा है. […]
लापरवाही : कहीं खानापूर्ति बन कर न रह जाये स्कूली वाहनों के खिलाफ अभियान
रविशंकर उपाध्याय
पटना : मानकों का ख्याल नहीं रखने वाले और नियम तोड़ कर चलने वाली स्कूली गाड़ियों के खिलाफ परिवहन विभाग का अभियान शुरू हो गया है. हालांकि यह पहली बार नहीं है कि ऐसा अभियान चलाया जा रहा है. पुराने अनुभव बताते हैं कि अभियान के दौरान जुर्माना वसूला जाता है, कुछ गाड़ियां सीज भी होती हैं, स्कूलों को अल्टीमेटम भी मिलता है, लेकिन कुछ दिनों बाद वही पुरानी तसवीर फिर से देखने को मिलेगी. ऐसे में इस तरह के अभियान बस खानापूर्ति साबित हो रहे हैं.
ऐसे अभियान आते और जाते रहते हैं, लेकिन स्थितियों में कोई खास सुधार नहीं हो पाता है. हमारे मासूमों को रोज परेशान होना पड़ता है. अभिभावक भी सब कुछ होते देखते रहने को विवश हैं.
पटना में यातायात पुलिस और आरटीओ की टीम स्कूल बसों का चेकिंग अभियान चला रही है. इसमें पता चला की कई स्कूल बसों में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार व्यवस्था नहीं है. प्रभात खबर ने पता किया कि यदि बसों में उस गाइडलाइन के अनुसार सभी सुविधाएं जुटायी जाएं तो कितना खर्च आयेगा. पता चला केवल 3862 रु पये.
कैसी होती है कार्रवाई?
प्रभात खबर ने परिवहन कार्यालय के अभियान के दौरान होने वाली कार्रवाई का हाल देखा. अप्रैल-मई 2015 में जब अभियान चलाया गया,तो लगभग 350 गाड़ियों पर कार्रवाई हुई. इस दौरान अधिकतर गाड़ियों पर दंड ही लगाये गये. गाड़ियों के निबंधन और चालकों के लाइसेंस रद्द करने वाली कार्रवाई बहुत ही कम हुई है. इसके पहले नवंबर-दिसंबर, 2014 में लगभग 100 स्कूली गड़ियों की जांच करायी गयी,तो उस वक्त भी इसी प्रकार की स्थिति रही. प्रभावी कार्रवाई नहीं होने के कारण स्कूलों पर कोई खास असर नहीं होता है और सब कुछ पुराने र्ढे पर चलता रहता है.
जजर्र हैं स्कूली वाहन
शहर की सत्तर फीसदी बसें जजर्र हैं. किसी के टायर पुराने हैं,तो किसी के ब्रेक शू खराब हैं. किसी की स्टेयरिंग जाम पड़ी हुई है. समय पकड़ने के लिए तेज रफ्तार में चलने वाली बसों से कई बार हादसे हो चुके हैं. इसके बाद भी इन गाड़ियों के फिटनेस की जांच रेगुलर नहीं होती है. प्रशासन को और हादसों का शायद इंतजार है. इसी वजह से उदासीनता लगातार जारी है. रूटीन जांच के बाद उसका फॉलोअप किया नहीं जाता है और बदतर स्थिति लगातार जारी रहती है.
स्कूलों के पास नहीं हैं पर्याप्त गाड़ी
शहर के बड़े स्कूल हो या छोटे. उनके पास गाड़ियों की पर्याप्त संख्या नहीं है. कम गाड़ियों के कारण स्कूल संचालक किराये पर गाड़ियां हायर करते हैं. इसकी वजह से स्टैंडर्ड का पालन नहीं हो पाता है.
ऐसे में कंडम गाड़ियों पर बैठ कर जाने के लिए मजबूर
छात्र और उनके अभिभावक जब प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं तो उनके साथ स्कूल प्रबंधन सख्ती करता है. ऐसे में अभिभावक भी चुप रहना ही ठीक समझते हैं.
हर साल बढ़ रहा है स्कूल बसों का किराया
इस बदतर तसवीर से अलग स्थिति है कि हर साल स्कूली बसों का किराया बढ़ जाता है. इस वर्ष 15 से 20 प्रतिशत तक किराया बढ़ा दिया गया है, लेकिन अधिकतर बड़े स्कूलों में जरूरत के हिसाब से गाड़ियों की खरीद नहीं हो सकी है. किराये पर चलनेवाली डैमेज गाड़ियां और ऑटो रिक्शा ही स्कूली बच्चों को ले जाने के लिए इस्तेमाल होता है. किराया मनमाना वसूलने के बावजूद ये अच्छी सेवा नहीं देते हैं.
– समय-समय पर स्कूल की गाड़ियों का निरीक्षण करते रहें. त्न गड़बड़ी मिले,तो स्कूल प्रबंधन को लिखित शिकायत करें. त्न सुनवाई नहीं होने पर डीटीओ से शिकायत करें
डीटीओ के अलावा क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार और डीएम से भी शिकायत करें. त्न परिवहन विभाग की जांच के दौरान कमियों की ओर अधिकारियों का दिलाएं ध्यान.
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