नयी दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि किसी को भी फांसी की सजा जल्दबाजी में, छुपाकर या मनमाने ढंग से नहीं दी जा सकती है. किसी व्यक्ति की गरिमा फांसी की सजा सुनाये जाने के साथ खत्म नहीं हो जाती है. अदालत ने यह टिप्पणी यूपी निवासी शबनम और सलीम को अपने परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोष में सुनायी गयी फांसी की सजा पर सत्र अदालत की ओर से सजा की तामील के लिए जारी वारंट को रद्द करते हुए की. शबनम और सलीम की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील आनंद शेष पेज 16 परछुपाकर नहीं दी जा …ग्रोवर और राजू रामचंद्रन ने वारंट को रद्द करने की मांग की. उनका कहना था कि सत्र अदालत ने फांसी की सजा के लिए सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाइकोर्ट की ओर दिये गये दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया. जस्टिस एके सीकरी और यूयू ललित की पीठ ने कहा कि अमरोहा के सत्र न्यायाधीश ने 15 मई को सुनाये गये फैसले पर छह दिन बाद 21 मई को फांसी का वारंट जारी कर दिया. कोर्ट का कहना था कि वारंट बहुत जल्दबाजी में जारी किया गया, क्योंकि दोषी ठहराये गये लोगों के पास फैसले के खिलाफ बड़ी अदालत में अपील करने के लिए 30 दिन का समय होता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सजा पाये शबनम और सलीम सभी कानूनी लड़ाई हार जाने के बाद यूपी के राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर कर सकते हैं.
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छुपा कर नहीं दी जा सकती फांसी की सजा
नयी दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि किसी को भी फांसी की सजा जल्दबाजी में, छुपाकर या मनमाने ढंग से नहीं दी जा सकती है. किसी व्यक्ति की गरिमा फांसी की सजा सुनाये जाने के साथ खत्म नहीं हो जाती है. अदालत ने यह टिप्पणी यूपी निवासी शबनम और सलीम को अपने परिवार […]
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