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टैगोर के दुर्लभ पत्र की शानदार नुमाइश

– अमिताभ कुमार – हाल में जब मैं बेंगलुरु में रुका, तो मुझे चर्च स्ट्रीट में ब्लासम नाम की किताब दुकान में जाने का मौका मिला. मुझे बताया गया कि यह पुरानी किताबों की चर्चित दुकान है, लेकिन दुकान में घुसते ही मैंने नयी किताबें देखीं. सेकेंड हैंड किताब दुकानें अंदर से प्राय: अंधेरा, मैला […]

अमिताभ कुमार –

हाल में जब मैं बेंगलुरु में रुका, तो मुझे चर्च स्ट्रीट में ब्लासम नाम की किताब दुकान में जाने का मौका मिला. मुझे बताया गया कि यह पुरानी किताबों की चर्चित दुकान है, लेकिन दुकान में घुसते ही मैंने नयी किताबें देखीं.

सेकेंड हैंड किताब दुकानें अंदर से प्राय: अंधेरा, मैलाकुचैला जीर्णशीर्ण दिखती हैं, लेकिन ब्लासम किसी धूम धड़ाकेवाली किराना दुकान का कोलाहल लिये चमचम करती दुकान थी. दुकान तीन तल्ला थी. आलमारियों में नयी पुरानी किताबें भरी थीं. यहां लोकतंत्र अपने संभव सर्वोत्तम या सबसे बुरी स्थिति में था.

हर अभिरुचि की किताबें, प्राय: सान्निध्य में थीं. यहां उस किताब की आधा दर्जन प्रतियां थीं, जिसे मैं पिछले दस वर्षो से पढ़ना चाहता था (सॉल बेलो की हमबोल्ट्स गिफ्ट), इस संग्रह के ठीक बगल में सात कतारों में उस लेखक की किताबें थी, जिसकी हर किताब साहित्यिक संवेदनशीलता पर चोट थी.

हर तल्ले पर वे किताबें दिखीं, जिन्हें मैं पसंद करता हूं या खरीदना चाहता हूं. अंत में मैंने कोई किताब नहीं खरीदी, क्योंकि मैं कोई एक किताब चुनने में असमर्थ था. थोड़ी देर के लिए यह पूरा अनुभव मेरे लिए जबरदस्त था. दूसरे तल्ले पर एक सेल्समैन ने मुझसे कहा, यहां आनेवाले लोग, जिनमें कई विदेशी होते हैं, कहते हैं कि उन्हें पुरानी किताबों की गंध पसंद है. उसने ब्लासम में दो बार किताबों में डॉलर नोट पाये.

मेरे सहयोगी ने बताया कि एक किताब में रवींद्रनाथ टैगोर की लिखी चिट्ठी मिली थी, उस चिट्ठी को बाद में मैंने काउंटर के पीछे फ्रेम में सजा कर रखा देखा. 1931 में लिखी यह चिट्ठी संभवत: किसी प्रशंसायुक्त टिप्पणी के जवाब में लिखी गयी थी और इसलिए यह उपयुक्त ही था कि अब इसे अन्य पाठकों के लिए प्रदर्शित किया जाये: किसी के लिए कुछ चलताऊ शब्दों में यह कहना बड़ा कठिन है कि जब मेरे अपने देश और समुद्र पार से बधाई की भरोसा देतीं आवाजें आती हैं कि मैंने बहुतों को संतुष्ट किया है और मैंने कुछ लोगों की मदद की है और इस प्रकार मेरे जीवन का सबसे बेहतरीन इनाम प्रदान करते हैं, तो मैं कैसा महसूस करता हूं.

जब मैं भूतल पर दुबारा आया, तो ब्लासम के मालिक मायी गौड़ा से मुलाकात हुई. उन्होंने एक दशक से पहले इस स्टोर को चालू किया. उनसे मिल कर यह जानकारी मिली कि वह पत्र उन्होंने खुद एक किताब में पाया था, जिसे उन्होंने पांच हजार रुपये में खरीदी थी. लोगों को बताने के लिए खुद गौड़ा के पास भी एक कहानी थी कि उनके स्टोर में पाठकों ने किस तरह संयोग का लुत्फ उठाया. दो साल पहले उन्होंने एक पत्रकार को बताया कि एक ग्राहक ने फ्रैंक हर्बर्ट की डून उनके स्टोर से खरीदी, जो एयरपोर्ट पर खो गयी.

उन्होंने किताब पूरी नहीं पढ़ी थी और वे यह जानने को उत्सुक थे कि अंत कैसा होता है. वह ग्राहक दुबारा ब्लासम आये, ताकि उस किताब की दूसरी प्रति खरीद सकें. उन्होंने यहां वही प्रति देखी , जिसे उन्होंने खो दिया था. इस कहानी ने मुझे पुरानी किताबों की दुकानों के बारे में एक नयी सच्चई से रूरू करा दिया था, जो केवल जीर्णशीर्ण घिसे हुए चमड़े पर सूर्य की रोशनी की तरह नहीं थी, बल्कि चीजों के खोने पाने की अद्भुत कहानियां थीं.

ब्लासम छोड़ने से पहले गौड़ा ने मुझसे मेरी अपनी किताबों पर हस्ताक्षर करने को कहा. मुझे यहां इस दुकान में लानेवाले व्यक्ति चाहते थे कि मैं भीतर अपनी टिप्पणी दर्ज करूं. पहले मैं हिचकिचाया, फिर मैंने हर प्रति के पन्नों के बीच अपना बिजनेस कार्ड डाल दिया. मैंने कार्ड पर घसीट कर लिखा, इस पुस्तक का आनंद लें. मुझे लिखें. मेरे सहयोगी ने कहा कि जो पाठक इन्हें पायेगा, वह लकी होगा.

इस बारे में मैं कुछ नहीं जानता, पर इस मामले में मैं हमेशा से स्पष्ट रहा हूं कि लेखकों को अपने पाठकों के लिए कहानियां रचनी चाहिए कि पाठक बदले में उसे आगे बढ़ा सके. मैं इस बात के लिए इंतजार करूंगा कि किसी के पास ऐसी कहानी बताने को हो कि किस प्रकार वह बारिश के बीच ब्लासम पहुंचा उसने किसी उपन्यास में कोई यादगार टिप्पणी पायी.

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