ग्रामीण इलाकों में 18.1% ऊंची जाति के हिंदुओं को पूर्ण रोजगार की श्रेणी में रखने के लिए खेती के इतर दूसरे सहायक काम करने की जरूरत है. ऊंची जाति के मुसलमानों में ऐसे लोगों का प्रतिशत 11.8 है. शहरी इलाकों की दास्तां भी इससे इतर नहीं है. शहरों में भी ऊंची जाति के लोग अपने पुश्तैनी या परंपरागत रोजगार से इतर अपनी रोजी कमाने में लगे हैं.
लेकिन शहरी इलाकों में इस तरह के सहायक काम कर अपने को पूर्ण रोजगार की श्रेणी में रखने वालों की संख्या ग्रामीण इलाकों से कम है. मात्र 12.9} हिंदू और 5.3 फीसदी मुसलमान अपने पुश्तैनी काम के साथ-साथ अपनी जीविका चलाने के लिए या अपने को पूर्ण रोजगार की श्रेणी में रखने के लिए कोई सहायक काम करते हैं. ग्रामीण इलाकों में 46.3 फीसदी ऊंची जाति के हिंदू अपनी जीविका चलाने के लिए खेती या उससे संबंधित कार्यो पर निर्भर है. मुसलमानों में ऐसे लोगों का प्रतिशत मात्र 12.2 है.
यह मुसलमानों का जमीन के तौर पर गरीब होना भी दिखाता है. चूंकि ग्रामीण इलाकों में खेती या उससे जुड़े कार्य ही जीविका के मुख्य साधन थे, इसलिए व्यापार, उद्योग जैसे दूसरों काम कर रोजी कमाने वालों की तादाद दोनों समुदायों की ऊंची जातियों में कम था. हिंदुओं में ऐसे लोगों की तादाद 9} और मुसलमानों में 11.7} है. यानी, दोनों समुदायों की एक बहुत बड़ी आबादी तनख्वाह या मजदूरी कर अपना जीवन चलाती है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है, इसलिए वहां तनख्वाह या मजदूरी के भी कम रहने की संभावना होती है जिससे ऊंची जाति के लोगों को पर्याप्त पैसा नहीं मिल पाता. यहां यह बात गौर करने लायक है कि जितनी आबादी तनख्वाह या मजदूरी पर आश्रित है उसका एक बड़ा हिस्सा अनियमति तनख्वाह या मजदूरी पर अपना जीवन निर्वाह करती है. यह परिस्थिति और ज्यादा खतरनाक है. ऊंची जाति के हिंदुओं में 44.7} तनख्वाह या मजदूरी पर आश्रित है. इसमें 25} आबादी अनियमित तनख्वाह या मजदूरी पर आश्रित है.