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बिहार में जून में शुरू होगा इन्क्यूवेशन सेंटर

पटना: अगर आपके पास कुछ नया बिजनेस आइडिया है, तो आपके लिए अच्छी खबर है. बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (बीआइए) जल्द ही इन्क्यूवेशन सेंटर खोलने जा रहा है. इसके माध्यम से नये और अच्छे बिजनेस आइडिया का चुनाव करके इसे गाइड किया जायेगा. साथ ही वित्तीय सहायता भी उपलब्ध करायी जायेगी. इसमें इंडियन एंजेल नेटवर्क भी […]

पटना: अगर आपके पास कुछ नया बिजनेस आइडिया है, तो आपके लिए अच्छी खबर है. बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (बीआइए) जल्द ही इन्क्यूवेशन सेंटर खोलने जा रहा है. इसके माध्यम से नये और अच्छे बिजनेस आइडिया का चुनाव करके इसे गाइड किया जायेगा. साथ ही वित्तीय सहायता भी उपलब्ध करायी जायेगी. इसमें इंडियन एंजेल नेटवर्क भी सहयोग देगा.

प्रोजेक्ट का चुनाव करने के बाद मेंटर के साथ अटैच कर दिया जायेगा. मेंटर में बीआइए व सीआइआइ के सदस्य भी शामिल होंगे. बीआइए के प्रतिनिधियों ने उद्योग विभाग के प्रधान सचिव के पास इससे संबंधित पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन दिया है. केंद्र को चलाने के लिए कॉरपस फंड भी क्रियेट होगा. इसके लिए बीआइए ने उद्योग विभाग से भी मदद मांगी है ताकि इसे सुचारू रूप से चलाया जा सके. कॉरपस के जरिये वित्तीय सहायता भी दी जायेगी. कई लोगों के पास इनोवेटिव बिजनेस आइडिया होता है. लेकिन उसे साकार नहीं कर पाते. वित्तीय परेशानी के कारण यह आइडिया दब कर रह जाती है. बीआइए के उपाध्यक्ष ने बताया कि जून तक सेंटर को चालू कर दिया जायेगा.

क्या है इन्क्यूवेशन सेंटर
उद्यमिता विकास के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता देने के लिए बनाया जाने वाला केंद्र है. इन्क्यूवेशन सेंटर का मकसद नयी सोच रखनेवाले व्यक्तियों की रचनात्मकता को बढ़ावा देना व उन्हें मदद करना एवं प्रौद्योगिकी आधारित उद्यमियों को सहायता करना है.
एडमिशन तो मिल गया, बाकी का खर्च कैसे उठाएं, पता नहीं
रोहित (बदला हुआ नाम) का एडमिशन शिक्षा के अधिकार के तहत दो साल पहले पटना के एक स्कूल में हुआ. रोहित के अभिभावक को हर दो महीने पर हजार रुपये देने होते हैं. इसे तो जैसे-तैसे रोहित के अभिभावक जमा कर भी देते हैं, लेकिन अभी नये सत्र की शुरुआत में रोहित को स्कूल की बुक्स की लिस्ट के साथ यूनिफॉर्म भी लेने को कहा गया है. इस पर पूरा खर्च करने में रोहित के अभिभावक असमर्थ हैं. अब रोहित के अभिभावक ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग का दरवाजा खटखटाया है. यह कहानी किसी एक रोहित की नहीं है बल्कि कई अभिभावक स्कूल के द्वारा मांगे जा रहे किसी दूसरे मद के चार्ज से परेशान है.
पटना: सीबीएसइ स्कूलों की मनमानी अभी तक आम अभिभावक ही ङोल रहे हैं, लेकिन अब इसका असर उन अभिभावकों को महसूस होने लगा है जिनके बच्चे का एडमिशन शिक्षा के अधिकार कानून के तहत लिया गया है.

स्कूल वालों को इस अधिकार के तहत नामांकन लेने वाले बच्चों का फी तो सरकार की ओर से दे दिया जाता है, लेकिन एक्स्ट्रा खर्च का बोझ इन अभिभावकों को समय-समय पर करना पड़ता है. अब तो ये मामले बाल अधिकार संरक्षण आयोग तक पहुंच रहे है. लेकिन आयोग इसमें कुछ भी नहीं कर पा रहा नि:शुल्क शिक्षा के बाद भी इतना खर्च : आरटीइ से एडमिशन लेने वाले बच्चे को ट्यूशन फी भले ही स्कूल नहीं ले रहे, लेकिन अन्य खर्च पर नजर डाली जायें तो एक तरह से इसका खर्च हजारों में जा रहा है. आरटीइ के तहत पढ़ने वाले छात्रों के लिए ज्यादातर स्कूलों में कई सुविधा लेना अनिवार्य कर रखा है. एडमिशन के समय कम से कम 4 हजार रुपये की किताब कॉपी, 500 सौ रुपये की ड्रेसेज, साल भर में होने वाले एक्टिविटीज के करीब 1000 रुपये लिये जा रहे है. इस तरह नि:शुल्क शिक्षा के बाद भी जरूरत मंद परिवारों की साल भर के करीब हजारों रुपये खर्च हो जा रहे है. अब इस खर्च को वहन करना अभिभावकों के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है.

2440 की जगह 700 बच्चे को ही मिला शिक्षा का अधिकार : शिक्षा के अधिकार के तहत शिक्षा देने में तमाम प्राइवेट स्कूलों में बस खानापूर्ति ही की जाती है. सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार अभी तक किसी भी साल में आरटीइ के तहत सही से नामांकन नहीं हो पाया है. राजधानी पटना की बात करें या दूसरे जिलों की, शिक्षा के अधिकार का पूरी तरह से उल्लंघन हो रहा है. पटना शहरी क्षेत्र के स्कूलों की बात करें तो कुल 120 स्कूलों बिहार सरकार से रजिस्टर्ड हैं. इसमें अभी तक मात्र 61 स्कूलों ने ही अपने यहां पर आरटीइ के तहत नामांकन लिया है. यह नामांकन भी बस खानापूर्ति ही होती है. कई स्कूल तो ऐसे है जहां पर 2013-14 में जीरो नामांकन किया गया है.
सीट के मुकाबले बहुत कम नामांकन : आरटीआइ एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय ने बताया कि 2013-14 सत्र में पटना शहरी क्षेत्र में मात्र 7 सौ बच्चे का ही आरटीइ के तहत नामांकन हो पाया था. वहीं, अगर 2011-12 सत्र की बात करें तो पूरे बिहार में लगभग 10 हजार स्कूल हैं जहां पर आरटीइ के तहत नामांकन होना था. लेकिन मात्र 3228 बच्चों का नामांकन पूरे प्रदेश में लिया गया. 2012-13 सत्र में 4306 बच्चों का ही नामांकन पूरे प्रदेश में लिया जा सका. प्रदेश के तमाम जिलों की बात की जायें तो आरटीइ के तहत कई प्राइवेट स्कूल ऐसे हैं जहां पर नामांकन जीरो रहता है. 2011-12, 2012-13, 2013-14 सत्र की बात करें तो कई जिलों में नामांकन आरटीइ के तहत नहीं हो पाया है. औरंगाबाद जिले में 2011 में जहां नामांकन का प्रतिशत जीरो था. वहीं अरवल जिले में 2011 और 2012 के सत्र में आरटीइ के तहत नामांकन एक भी नहीं लिया गया. सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार 2011-12 सत्र में पूरे प्रदेश में सात जिलों में आरटीइ के तहत नामांकन जीरो रहा. वहीं 2012-13 सत्र में पांच जिलों में आरटीइ के तहत नामांकन एक भी नहीं हो पाया.
आरटीइ के तहत नामांकित छात्रों की संख्या (वर्ष वार )
सत्र – 2011-12
स्कूलों की संख्या – 10 हजार
आरटीइ के तहत नामांकन – 3228
सत्र – 2012-13
स्कूलों की संख्या – 10 हजार
आरटीइ के तहत नामांकन – 4306
सत्र – 2013-14
स्कूलों की संख्या – 10 हजार
आरटीइ के तहत नामांकन – 5367
कोट
सरकारी स्कूलों में छात्रों पर हर महीने सरकार हजारों रुपये खर्च करती है, लेकिन प्राइवेट स्कूलों में साल में 4200 सौ रुपये देकर सरकार भूल जाती है. ऐसे में एक प्राइवेट स्कूल अपने घर से तो पैसे लगा कर तो 25 परसेंट बच्चों को नहीं पढ़ायेगा. स्कूल में कई तरह के खर्च होते हैं. सारा कुछ स्कूल तो नहीं कर सकता है. इसके लिए या तो सरकार करें या फिर अभिभावकों को करना पड़ेगा.
शमायल अहमद, प्राइवेट स्कूल टीचर्स एसोसिएशन, पटना
शिक्षा का अधिकार कानून में कमियां ही कमियां
छह से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने में पिछले तीन सालों के दौरान पूरे देश में कुल 1.13 लाख करोड़ रुपये खर्च किये गये, लेकिन इसमें कमियां हैं. स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता, वंचित वर्ग के बच्चों के लिए 25 फीसदी सीट आरक्षित करने जैसे मुद्दे अभी तक पूरे नहीं किये जा सके. आरटीइ के तहत अब फी का ब्योरा देना हर स्कूलों के लिए अनिवार्य है. आरटीइ के तहत राज्य सरकार की ओर से हर बच्चों के लिए साल में 4200 सौ रुपये दिये जाते है. लेकिन ये पैसे भी स्कूल को समय पर नहीं रहा है. ऐसे में स्कूल को ही सारा कुछ वहन करना पड़ता है.
हर दो महीने में एक्टिविटी
कई स्कूल ऐसे हैं जहां पर हर दिन कुछ न कुछ एक्टिविटी करवायी जाती है. इन एक्टिविटी में शामिल होना हर बच्चों के लिए अनिवार्य है. ऐसे में अभिभावकों की मजबूरी है कि उन्हें ना चाहते हुए भी एक्टिविटी में बच्चों को शामिल करें. इसके लिए उन्हें कई बार पैसे भी देने होते है. सीबीएसइ के अनुसार अब हर स्कूल एक्टिविटी पर अधिक फोकस करता है. ऐसे में हर अभिभावकों को स्कूल फी के अलावा 400 से 500 रुपये हर महीने देना होता है. इंटरनेशनल स्कूल की प्रिंसिपल एफ हसन ने बताया कि स्कूल में कोई एक्टिविटी हर छात्र के लिए होता है. ऐसे में 25 परसेंट आरटीइ छात्र को अलग हटा कर तो नहीं किया जा सकता है. और एक बार की बात तो है नहीं जो स्कूल अपनी ओर से एक्टिविटी पर पैसे खर्च करेगा.
सरकारी स्कूलों में छात्रों पर हर महीने सरकार हजारों रुपये खर्च करती है, लेकिन प्राइवेट स्कूलों में साल में 4200 सौ रुपये देकर सरकार भूल जाती है. ऐसे में एक प्राइवेट स्कूल अपने घर से तो पैसे लगा कर तो 25 परसेंट बच्चों को नहीं पढ़ायेगा. स्कूल में कई तरह के खर्च होते हैं. सारा कुछ स्कूल तो नहीं कर सकता है. इसके लिए या तो सरकार करें या फिर अभिभावकों को करना पड़ेगा.
शमायल अहमद, प्राइवेट स्कूल टीचर्स एसोसिएशन, पटना

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