डा हेडगेवार का जीवन संघ व सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने, कट्टरपंथी संगठन को बतबूत करने में में गुजरा तो बाबा साहेब का जीवन देश् केा संविधान, दलित, पिछड़े, दबे-कुचलों के बीच गुजरा. दोनों का विचार व सोच भिन्न-भिन्न है.
उन्होंने कहा कि अंतिम पायदान पर खड़े समाज के दबे, कुचले, दलित, पीड़ित व उपेक्षित व्यक्तियों के लिए सांप्रदायिक शक्तियों से लड़ने के लिए ही डा अंबेडकर को बौद्ध धर्म अपनाना पड़ा था. भाजपा महापुरुषों को सिर्फ अपमानित करने का काम करती है. ऐसे लोग महापुरुषों के नाम पर दंगा-फसाद करा सकते हैं. महापुरुषों के प्रति सम्मान का भाव नहीं अपना सकते.