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दूसरे राज्यों में न्यायिक सेवा में आरक्षण, तो बिहार में क्यों नहीं : नीतीश

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रविवार को नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में बिहार में न्यायिक सेवा में आरक्षण का मुद्दा उठाया. मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने अवर न्यायपालिका में पिछड़े वर्गो को आरक्षण देने के लिए सकारात्मक कदम उठाये हैं, लेकिन हाइकोर्ट ने इस […]

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रविवार को नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में बिहार में न्यायिक सेवा में आरक्षण का मुद्दा उठाया. मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने अवर न्यायपालिका में पिछड़े वर्गो को आरक्षण देने के लिए सकारात्मक कदम उठाये हैं, लेकिन हाइकोर्ट ने इस प्रस्ताव पर सहमति नहीं दी है.

उन्होंने कहा कि दूसरे राज्यों में अवर न्यायपालिका में पिछड़े वर्गो को आरक्षण दिया जा रहा है. बिहार में इससे अलग मानक अपनाने का कोई उचित कारण नहीं है. इसलिए बिहार में भी पिछड़े वर्गो को न्यायिक सेवाओं में आरक्षण देने के प्रस्ताव पर सहमति मिलनी चाहिए.

सम्मेलन को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने बिहार की न्यायिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने और न्याय के साथ विकास करने के लिए केंद्र सरकार से समुचित वित्तीय सहायता की मांग की है. कहा कि संसाधनों की कमी के कारण राज्य सरकार के अथक प्रयास के बावजूद इसमें पर्याप्त सफलता नहीं मिल रही है. उन्होंने कहा कि बिहार सरकार मानवीय हित को देखते हुए न्याय के साथ विकास करने के लिए तत्पर है. न्यायिक प्रक्रिया में मानवीय हित को केंद्रित करना ही सही मायने में न्याय है. बिहार में न्यायिक प्रक्रिया के विकास के लिए बहुत से कदम उठाये गये हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम भी मिल रहे हैं.
नीतीश कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय मुकदमा नीति के तर्ज पर ‘बिहार राज्य मुकदमा नीति, 2011’ का गठन किया गया है. इसके तहत राज्य स्तर, विभाग स्तर, जिला स्तर व अनुमंडल स्तर पर शिकायत निवारण समिति का गठन किया गया है. इसके कारण सरकारी सेवकों की शिकायत में भारी गिरावट आयी है. सरकारी सेवकों के सेवा संबंधी व सेवानिवृत्ति लाभ का त्वरित निष्पादन किया जा रहा है. साथ ही राज्य सरकार के विरुद्ध होनेवाले मुकदमों के जल्द निष्पादन के लिए हर माह मुख्य सचिव द्वारा समीक्षात्मक बैठक की जाती है, ताकि बिहार की जनता को अधिक-से-अधिक राहत मिल सके.
नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार में ‘पंचायत राज अधिनियम, 2006’ बिहार विधानमंडल से पारित किया गया. साथ ही इस अधिनियम के अधीन ग्राम कचहरियों के लिए प्रावधान किये गये हैं. ग्राम कचहरी लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित न्यायिक निकाय है. इसे पंचायत सचिवों व न्याय मित्रों से सहायता मिलती है. लॉ स्नातकों को न्याय मित्र नियुक्त किया गया है. वे ग्राम कचहरियों को उनके न्यायिक कामों में मदद करते हैं.
वहीं, ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए दिया गया वित्तीय व्यवस्था अपर्याप्त है. इसके कारण न्यायाधिकारी के कार्यालय व आवास के लिए भवन का निर्माण करना संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि सहज न्याय उपलब्ध कराने में अधिवक्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जबकि अधिवक्ताओं को वर्तमान में किसी भी प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं है. राज्य सरकार चाहती है कि अधिवक्ताओं को बैठने की सुविधा, सुसज्जित पुस्तकालय व समुचित प्रशिक्षण दिया जाये. यह योजना सरकार के पास विचाराधीन तो है, लेकिन पैसे के अभाव में उन्हें सुविधाएं उपलब्ध कराना संभव नहीं हो पा रहा है. इसलिए राज्य को 14वें वित्त आयोग से इन कामों को पूरा करने के लिए अधिक-से-अधिक राशि उपलब्ध कराया जाये.
मुख्यमंत्री ने कहा कि न्यायालयों में लंबित मामलों में कमी लाने के लिए न्यायिक प्रक्रिया की तलाश करने की आवश्यकता है. इसमें भाग लेने के लिए राज्य सरकार हमेशा उत्सुक है. अन्य मामलों के अलावा लंबित वादों के निष्पादन के लिए हर जिले में मॉनीटरिंग समिति संबंधित जिला व सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता में चल रही है. इसमें संबंधित डीएम और एसपी सदस्य होते हैं. लंबित मुकदमों व उससे जुड़े अन्य मुद्दों के निबटारे में आनेवाली बाधाओं को देखने के लिए इस समिति की बैठक हर महीने होती है.
बिहार जुडिशियल अकादमी भी न्यायिक पदाधिकारियों को मामले के त्वरित निबटारे के लिए प्रशिक्षण दे रही है. साथ ही हाइकोर्ट भी समय-समय पर न्यायिक पदाधिकारियों को दिशानिर्देश देता रहा है. साल 2014 में न्यायालयों ने कुल 3,05,570 मुकदमों का निबटारा किया और हाइकोर्ट ने 81,449 मामलों का निष्पादन किया.
उन्होंने कहा कि हाइकोर्ट के दिशानिर्देश में बिहार में 37 इवनिंग-मॉर्निग कोर्ट स्थापित किये गये, लेकिन अधिवक्ताओं के असहयोग व बिहार की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण ये सफल नहीं हो रहे हैं. इसके कारण हाइकोर्ट ने एक जनवरी, 2014 को ये कोर्ट बंद कर दिये. बिहार में कार्यरत 183 फास्ट ट्रैक कोर्ट को नियमित कर दिया गया है और बिहार के न्यायिक पदाधिकारियों के 236 नये पदों का सृजन भी किया जा चुका है. इनकी सहायता के लिए तृतीय व चतुर्थ वर्गो के 2121 पदों का सृजन अधीनस्थ न्यायालय के लिए किया जा चुका है.
बैठक में बिहार की ओर से विधि मंत्री नरेंद्र नारायण यादव, मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह. मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव डीएस गंगवार और बिहार के स्थानीय आयुक्त विपिन कुमार मौजूद थे.
केंद्रीय सहायता बंद होने से स्पीडी ट्रायल में आयी कमी
मुख्यमंत्री ने कहा कि लंबित आपराधिक मामलों के त्वरित निबटारे के लिए हाइकोर्ट से समन्वय कर अपहरण, आर्म्स एक्ट, डकैती जैसे गंभीर आपराधिक मामलों का स्पीडी ट्रायल साल 2006 से शुरू हुआ. इसके तहत वर्ष 2014 तक 92,652 अपराधियों को सजा दिलायी गयी. लेकिन, साल 2011 से स्पीडी ट्रायल के जरिये निष्पादित मामलों की संख्या में कमी आने लगी, क्योंकि केंद्र सरकार ने फास्ट ट्रैक कोर्ट के संचालन के लिए वित्तीय सहायता बंद कर दी. इसके कारण फास्ट ट्रैक कोर्ट कम हो गये. साल 2013 से राज्य में स्पीडी अपील के अभियान की शुरुआत की गयी, जिसके तहत वर्ष 2014 तक कुल 934 मामलों का निष्पादन किया गया. स्पीडी ट्रायल और स्पीडी अपील की मॉनीटरिंग के लिए जिला स्तर पर बनी मॉनीटरिंग समिति को संस्थागत रूप देने की आवश्यकता है.

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