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विलुप्त होने के कगार पर कैथी लिपि

— पटना संग्रहालय में व्याख्यानमालासंवाददाता,पटनासूबे की तमाम भाषाओं की कभी लिपि रही कैथी आज एक भाषा की लिपि नहीं होने के कारण विलुप्त होने के कगार पर है. भोजपुरी, मगही और मैथिली की तमाम पांडुलिपियों को संजोने वाली इस लिपि को आज भोजपुरी और मगही भी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. जबकि वीर […]

— पटना संग्रहालय में व्याख्यानमालासंवाददाता,पटनासूबे की तमाम भाषाओं की कभी लिपि रही कैथी आज एक भाषा की लिपि नहीं होने के कारण विलुप्त होने के कगार पर है. भोजपुरी, मगही और मैथिली की तमाम पांडुलिपियों को संजोने वाली इस लिपि को आज भोजपुरी और मगही भी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. जबकि वीर कुंवर सिंह व राज कुमार शुल्क जैसे लोग इस लिपि का प्रयोग करते थे. यदि भोजपुरी और मगही इस लिपि को स्वीकार करती हैं तो भाषा के रूप में इन्हें संवैधानिक दर्जा मिलने की एक अनिवार्य शर्त की पूर्ति हो जायेगी. ये बातें विधान परिषद् के परियोजना पदाधिकारी भैरव लाल दास ने कहीं. वह रविवार को पटना संग्रहालय के शोध व्याख्यानमाला के दौरान कैथी लिपि के उद्भव और विकास विषय को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि शेरशाह सूरी के जमीन प्रबंधन से लेकर अंग्रेजों के जमाने तक इस लिपि का प्रयोग सरकारी कार्यालयों के साथ-साथ आम जनों के पत्राचार तक देखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि बिहार-बंगाल विभाजन के दौरान सीमा विवाद का निराकरण भी कैथी के शिलालेखों के आधार पर ही किया गया. इससे प्रमाणित होता है कि बिहार की यह अपनी लिपि है और सरकार को इसे राज्य लिपि का दर्जा देना चाहिए. बिहार संग्रहालय के पूर्व निदेशक डॉ उमेश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि कैथी की प्रासंगिकता आज भी बनी है. संगोष्ठी को कनाडा विवि के प्राध्यापक डॉ एएम शरण, डॉ जगदीश्वर पांडे, डॉ रमानंद झा रमण, श्यामानंदन चौधरी, उमेश कुमार सिंह, आइपीएस डॉ एके गुप्ता, डॉ अशोक कुमार सिन्हा, आशीष झा व अमिताभ राय भी उपस्थित रहे.

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