— जगजीवन राम शोध संस्थान में कार्यक्रमसंवाददाता,पटनासामूहिक काम से जीवन में नये रंग घोले जा सकते हैं. दक्षिण भारत से लेकर गोवा,चंडीगढ़ और राजस्थान के अनुभव को साझा करते हुए मीनाक्षी और सुशील ने कहा कि जो लोग गांवों से लेकर शहरों तक काम करते हैं उनके अंदर भी कला होती है. उनके साथ काम करते हुए हमने सीखा कि दुनिया को वही लोग चलाते हैं जिन्हें हम हेय दृष्टि से देखते हैं. आज दुनिया बाजार की दुनिया हो गयी है. इस कारण ही परंपरागत कला मर रही है. मीनाक्षी ने अभियान का मकसद बताते हुए कहा कि बस वह इतना ही चाहते हैं कि जो मुख्यधारा से कटे या वंचित हैं. उनमें आत्मविश्वास का संचार हो और वे खुद की प्रतिभा को पहचान सके. मीनाक्षी और सुशील जगजीवन राम शोध संस्थान में आयोजित सामाजिक निर्माण कला और राजनीति विषय पर अपने संस्मरण साझा कर रहे थे. जेएनयू से पढ़ाई पूरी करने वाले मीनाक्षी और सुशील मूल रूप से बिहारी हैं. दोनों देश के कोने-कोने में घूम-घूम कर बच्चों को वॉल पेंटिग सीखा रहे हैं. कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने की. मौके पर रजिस्ट्रार डॉ सरोज द्विवेदी, शिवानंद तिवारी,सुशील कुमार,चंदन शर्मा, प्रत्युष मिश्र, मनीष सिन्हा,जेपी, शशि सागर,अरुण नारायण,अनंत,निराला व श्याम शामिल थे.
सिर्फकिताबों से दुनिया देखी नहीं जा सकती
— जगजीवन राम शोध संस्थान में कार्यक्रमसंवाददाता,पटनासामूहिक काम से जीवन में नये रंग घोले जा सकते हैं. दक्षिण भारत से लेकर गोवा,चंडीगढ़ और राजस्थान के अनुभव को साझा करते हुए मीनाक्षी और सुशील ने कहा कि जो लोग गांवों से लेकर शहरों तक काम करते हैं उनके अंदर भी कला होती है. उनके साथ काम […]
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