उन्होंने कहा कि नरसंहार के मामले में हाल के कई फैसलों से यह साफ हो गया है कि राज्य की अदालतों में न्याय नहीं मिलता है.भेड़-बकरियों की तरह गरीब-गुरबा मार दिये जाते हैं और वर्षो सुनवाई के बाद अदालत अभियुक्तों को सबूत के अभाव में बरी कर देती है.
निचली अदालतों से यदि सजा हो भी गयी, तो लोग हाइकोर्ट से बरी कर दिये जाते हैं. जब कचरा नहीं उठाने वाले अधिकारियों की हाइकोर्ट ऐसी तैसी करती है, तो नरसंहार मामले में ठीक से जांच नहीं किये जाने पर निगरानी से दोबारा जांच के आदेश क्यों नहीं देती.