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बदतर होती जा रही है किसानों की माली हालत

तेघड़ा. किसानों की माली हालत बदतर होती जा रही है. पशुपालन ही जीविकोपार्जन का मुख्य सहारा बन कर रह गया है. जब से किसानों को बैलों का साथ छूटा है और यंत्रों का उपयोग बढ़ा है, तब से आर्थिक स्थिति और बिगड़ी है. जुताई, पटवन, कटाई, बीज, उर्वरक सभी महंगे हो रहे हैं. इनमें जितनी […]

तेघड़ा. किसानों की माली हालत बदतर होती जा रही है. पशुपालन ही जीविकोपार्जन का मुख्य सहारा बन कर रह गया है. जब से किसानों को बैलों का साथ छूटा है और यंत्रों का उपयोग बढ़ा है, तब से आर्थिक स्थिति और बिगड़ी है. जुताई, पटवन, कटाई, बीज, उर्वरक सभी महंगे हो रहे हैं. इनमें जितनी राशि खर्च होती है. उतनी आमदनी नहीं होती. पशुओं के लिए पर्याप्त चारा का इंतजाम नहीं हो पाता है. गृह खर्च, बच्चों के पढ़ाई-लिखाई, बिटिया की शादी आदि के लिए अधिकतर किसानों को बैंकों व सूदखोरों से ब्याज पर राशि लेनी पड़ती है. कर्ज चुकाने के लिए उन्हें अपने खेत व पेड़ बेचने पड़ते हैं. इसके बावजूद भी कर्ज से छुटकारा नहीं मिलता, जिससे वे महानगरों में मजदूरी करने जाते हैं. अन्नदाता किसान जो पूरे देश को खिलाता है, वह स्वयं सहायता को मोहताज है. किसान शंभु राय बताते हैं कि बोआई से लेकर कटाई तक प्रति बीघा लगभग पांच हजार से सात हजार रुपये तक खर्च होते हैं. किसानों को इतना अनाज नहीं बचता है कि वे बेच सकें. किसान नेता दिनेश सिंह ने किसानों के आर्थिक उन्नयन के लिए पंचायत को ट्रैक्टर देकर सस्ते दर पर जुताई, राजकीय नलकूप बढ़ाने, बीज एवं उर्वरक की कीमत आधा करने, किसानों को प्रशिक्षण देकर सब्जी, अनाज उत्पादन की वकालत करते हैं. ताकि कम रकबा में भी किसानों के ज्यादा हों. कृषि के प्रति युवा पीढ़ी का मोह भंग हो रहा है. क्योंकि, यह घाटे का सौदा साबित हो रहा है.

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