पटना: सूचना एवं जनसंपर्क विभाग व कैबिनेट के सचिव ब्रजेश मेहरोत्र ने कहा कि राज्य में मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए सरकार वचनबद्ध है. समाज के हर क्षेत्र में कुछ-न-कुछ समस्याएं रहती हैं, जिससे मीडिया भी अछूती नहीं है. विश्व प्रेस दिवस पर शुक्रवार को विभाग द्वारा आयोजित विचारगोष्ठी को वह संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि राज्य में 51 समाचार पत्र -पत्रिकाएं सरकार की सूची में स्वीकृत हैं.
इसके अतिरिक्त भी सैकड़ों पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रहे हैं. पहले कुछ ही चैनल और समाचार पत्र हुआ करते थे. आज इतने चैनल हैं कि सेट टॉप बॉक्स में भी समा नहीं पा रहे हैं. डीएवीपी के निदेशक शैलेश मालवीय ने कहा कि मीडिया को न सरकार का मित्र और न ही शत्रु होना चाहिए. मीडिया मैन को जनता के विश्वास बनाये रखने के लिए आत्मसंयम बरतने की जरूरत है. संवाद एजेंसी यूएनआइ की रजनी शंकर ने कहा कि मीडिया उद्योग का रूप धारण कर चुकी है. इस क्षेत्र में भी रोजगार की असीम संभावनाएं हैं.
मीडिया को सोसाइटी के प्रति और अपनी जवाबदेही के प्रति सजग रहने की जरूरत है. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के अपर सचिव निर्मल चंद्र झा ने कहा कि सभ्य समाज के निर्माण में मीडिया की अहम भूमिका है. विचारों को दीवारों में कैद नहीं किया जा सकता. संगोष्ठी को पत्रकार दीनानाथ साहनी, सहायक निदेशक डॉ नीना झा, उपनिदेशक नीलम पांडेय आदि ने संबोधित किया.
बाजारवाद हावी
उधर, वर्किग जर्नलिस्ट यूनियन ऑफ बिहार एवं सुरेंद्र प्रताप सिंह पत्रकारिता एवं जनसंचार संस्थान की ओर से डॉ जाकिर हुसैन संस्थान में आयोजित कार्यक्रम में ग्लोबल ओपेन यूनिवर्सिटी, नगालैंड के प्रतिकुलाधिपति प्रो डॉ उत्तम कुमार सिंह ने कहा कि देश के स्वस्थ लोकतंत्र में स्वतंत्र प्रेस का एक अलग महत्व है. इससे प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर पारदर्शिता बढ़ती है. साथ ही आर्थिक विकास होता है, लेकिन आज प्रेस और पत्रकारों की स्थिति बहुत ही खराब है. तेजी से बढ़ते बाजारवाद के कारण इनकी स्वतंत्रता अब दूसरा रूप ले चुकी है.आकाशवाणी के संपादक संजय कुमार ने कहा कि बाजारवाद के कारण प्रेस प पत्रकार सामाजिक रूप से असुरक्षित हैं. इंडियन फेडरेशन वर्किग जर्नलिस्ट यूनियन के पूर्व सचिव चंद्रशेखर, अध्यक्ष एसएन श्याम समेत अन्य उपस्थित रहे.
लेखनी में लाना होगा बदलाव
सरगणोश दत्त विचार मंच के सचिव अजय कुमार ने ‘पत्रकारिता में उमड़ती चुनौतियां एवं संघर्ष ’ विषयक सेमिनार में कहा कि पत्रकारिता पर बाजारवाद हावी है. इसे समाप्त करने के लिए लेखनी में बदलाव लाने की जरूरत है.