पटना: पटना में मानक से 20 माइक्रो ग्राम प्रति क्यूविक मीटर प्रदूषण बढ़ गया है. शहर में गाड़ियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि इसका मुख्य कारण है. इससे दमा, खांसी व मस्तिष्क ज्वर के रोगियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है. सरकारी व निजी अस्पतालों में ऐसे रोगियों की संख्या पिछले छह माह में 20 प्रतिशत बढ़ी है. स्वास्थ्य विभाग व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने परिवहन विभाग को इससे संबंधित रिपोर्ट भेजी है.
इसके बाद विभाग हरकत में आया है. उसने वाहन प्रदूषण की जांच के लिए 20 मोटरयान निरीक्षकों को तैनात कर दिया है. निरीक्षकों को वाहनों के प्रदूषण की जांच का टास्क दिया गया है.
बिना फिटनेस चल रहे ऑटो
पटना में फतुहा, दानापुर, दीघा व मनेर में बड़ी संख्या में केरोसिन व रसोई गैस से ऑटो चल रहे हैं. हालांकि, इन क्षेत्रों में मोटरयान निरीक्षकों की तैनाती नहीं हुई है. इससे अभियान का असर वातावरण पर नहीं पड़ रहा. पटना के मुफस्सिल इलाकों में भी कई सिटी राइड बसें केरोसिन मिश्रित पेट्रोल या डीजल पर चल रही हैं. इन वाहनों से निकलनेवाला काला धुआं लोगों का स्वास्थ्य बिगाड़ रहा है. पटना में अब भी बड़ी संख्या में पुराने ऑटो व सिटी राइड बसें चल रही हैं. मुफस्सिल इलाकों में चलनेवाली सिटी राइड बसों को तो हर साल फिटनेस सर्टिफिकेट लेना पड़ता है, लेकिन ऑटो मालिक यह जहमत भी नहीं उठाते. वहीं, परिवहन विभाग द्वारा पांच साल पहले ‘डाला-टेंपो’ पर रोक लगाने के बाद शहरी क्षेत्रों में इनका परिचालन तो नहीं हो रहा, लेकिन फतुहा, मनेर, दानापुर व दीघा में धड़ल्ले से चल रहे हैं.