* लोकसभा अध्यक्ष ने युवाओं व नेताओं का किया आह्वान
पटना : लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने कहा कि मूल्यपरक राजनीति से ही लोकतंत्र मजबूत होता है. लोकतांत्रिक देश कहलाना तो अब फैशन बन गया है.
मौजूदा दौर में जिन देशों में तानाशाही शासन है और जहां के शासकों के खिलाफ आंदोलन चल रहा है, वैसे देश भी अपने को लोकतांत्रिक देश बताने लगे हैं. ऐसे देशों ने इंटरनेशनल पार्लियामेंट्री यूनियन की सदस्यता भी हासिल कर ली है. इसमें धैर्य, स्थिरता व लंबे समय तक चलनेवाले संबंध नहीं हैं. ऐसे मौकों पर ही सत्येंद्र नारायण सिन्हा जैसे महापुरुषों को याद करने की जरूरत है.
वह शुक्रवार को श्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा की 97वीं जयंती समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रही थी. उन्होंने कहा कि बिहार के लोग टोरंटो, जापान यहां तक स्लोबानिया में भी मिले. वे वहां बेहतर काम कर रहे हैं. अब यह सोचना चाहिए कि आखिर बिहार के लोग अपने प्रांत को क्यों नहीं ऊपर उठा रहे हैं. यह सोचना चाहिए कि किस तरह इस प्रांत को गौरवशाली बनाया जाना चाहिए.
समारोह का समापन पद्मश्री उल्लास कशलकर के राग मल्हार से हुआ. अतिथियों का स्वागत के रल के राज्यपाल निखिल कुमार तथा धन्यवाद ज्ञापन सत्येंद्र नारायण सिन्हा स्मारक समिति की अध्यक्षा श्यामा सिंह ने किया. मौके पर श्री सिन्हा की पत्नी किशोरी सिन्हा, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद, पप्पू कुमार, देवेश चंद्र ठाकुर, चिराग पासवान, संजीव प्रसाद टोनी आदि मौजूद थे. इस दौरान मीरा कुमार ने सत्येंद्र नारायण सिंह पर लिखी गयी पुस्तक का विमोचन किया.
* हर कोई शॉर्ट कट चाहता है : शुक्ला
संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला ने कहा कि पुराने समय के लोगों से श्रद्धा, सब्र व सहजता की सीख लेनी चाहिए. सत्येंद्र नारायण सिन्हा में वे सभी बातें थीं. जब राजीव गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री की जिम्मेवारी सौंपी, तो वे दिल्ली हवाई अड्डे पर अपना बैग लिये अकेले टिकट लेने की कतार में खड़े थे.
पहले के नेता 30 साल तक सेवा करने के बाद टिकट के लिए आवेदन की बात सोचते थे. अब तो एक टिकट के लिए सौ–सौ आवेदन मिल रहे हैं. यह सब सामाजिक संकट की निशानी है. हर कोई शॉर्ट कट की बात सोचता है. लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने कहा कि अभी न नेता की कमी है और न ही नीति. कमी है, तो नीयत की.
धारा के विपरीत जाकर राजनीति करना मुश्किल है. राजनीति का शुद्धिकरण होना चाहिए, नौजवानों को आगे आना चाहिए. जात नहीं, जमात की राजनीति होनी चाहिए. सत्येंद्र बाबू खून के संबंध से अधिक विचार के संबंधों को तरजीह देते थे.