पटना: प्रभात खबर का प्रयास रंग लाया और आखिरकार नवजात आलोक को 40 दिन बाद उसे मां की गोद मिली. सोमवार को कंकड़बाग स्थित आस्थालोक अस्पताल परिसर में आयोजित एक समारोह में सिटी एसपी शिवदीप लांडे ने माता-पिता के हाथ बच्चे को सौंप दिया. इस मौके पर तमाम लोगों ने प्रभात खबर के अभियान की जम कर सराहना करते हुए शुक्रिया अदा किया.
सुबह ही पहुंच गये थे माता-पिता
बच्चे को साथ ले जाने के लिए माता-पिता संजीव और सुलेखा पूर्णिया से पटना सोमवार की सुबह ही पहुंच गये थे. पटना पहुंचते ही उन्होंने अस्पताल प्रशासन से मिल कर अपने बच्चे को वापस लेने की इच्छा जाहिर की. इस पर अस्पताल प्रशासन ने उनको जानकारी दी कि दोपहर में समारोह आयोजित कर उनको बच्च सौंप दिया जायेगा.
मां ने अपने हाथों से पिलाया दूध
जन्म के दो दिन बाद ही मां-बाप से दूर होने वाला आलोक भले ही बाहरी दुनिया की गतिविधियों से अनजान हो, लेकिन आज 40 दिन बाद उसने एनआइसीयू से बाहर निकल कर दुनिया देखी. गुलाबी टोपी और काले कपड़े से लिपटा मासूम आलोक आज शांत दिख रहा था. आइसीयू के कर्मी उसे गोद में उठा कर रखे हुए थे. करीब आधे घंटे तक चले कार्यक्रम के दौरान वह एक बार भी नहीं रोया.
शायद उसे आभास हो गया था कि जन्म के बाद ही आर्थिक तंगी के चलते छोड़ जाने वाले मां-बाप उसे लेने फिर से पहुंचे हैं. सिटी एसपी से बच्चे को लेने के बाद मां ने उसे खुद अपने हाथों से दूध पिलाया. शाम को बस से वे लोग वापस पूर्णिया लौट भी गये.
खत्म नहीं हुई मानवीय संवेदना : सिटी एसपी
इस मौके पर आयोजित समारोह में सिटी एसपी शिवदीप लांडे ने कहा कि मानवीय संवेदना अभी खत्म नहीं हुई है. प्रभात खबर ने नवजात बच्चे को उसके माता-पिता से मिलाया. अखबार के प्रयास से ही एक मां को उसके बच्चे की जिंदा होने की खबर मिली और गरीब माता-पिता अपने बच्चे को लेने वापस पटना पहुंचे. प्रभात खबर ने एक बच्चे को लावारिस जीवन जीने से बचा लिया.
मेरे घर के बाहर भी छोड़ दिया था बच्च
उन्होंने अपने अररिया जिले में पदस्थापन के दौरान हुई एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि ठंड के दिनों में कोई व्यक्ति मेरे घर के बाहर एक बच्चे को छोड़ गया था. जब हमारी नजर उस पर पड़ी, तो हमने उस बच्चे को संभाल कर रखा. उस वक्त कई लोगों ने उसको गोद लेने की इच्छा जतायी. पता लगाये जाने पर भी जब बच्चे के सही माता-पिता नहीं मिले तो हमने कागजी प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसे एक दंपति को लालन-पालन के लिए सौंप दिया.
क्या है मामला
एक महीने से अधिक दिनों से पटना के कंकड़बाग स्थित आस्था लोक अस्पताल के एनआइसीयू में लावारिस पड़ा था. अस्पतालकर्मियों ने उसे आलोक नाम दिया था. सहरसा निवासी संजीव सिंह और सुलेखा देवी ने उसे प्रोफेसर कॉलोनी, कंकड़बाग स्थित आस्था लोक अस्पताल में भरती कराया था. अस्पताल के रजिस्टर में उसके माता-पिता ने बस इतना ही पता दर्ज कराया है. पूर्णिया में डिलिवरी कराने के बाद बच्चे का मलद्वार नहीं होने की वजह से उसे यहां लाया गया था. अस्पताल के डॉक्टरों ने उसकी स्थिति को देखते हुए उसे भरती कराने को कहा. डॉक्टरों के एक दल ने जटिल ऑपरेशन कर उसे ठीक किया.
घटनाक्रम
पूर्णिया में हुआ बच्चे का जन्म
नवजात को नहीं था मलद्वार
डॉक्टरों ने ऑपरेशन कराने की बात कही
दो दिनों में ही खर्च हो गये थे तीस हजार
पैसों का जुगाड़ करने की बात कह पूर्णिया लौट आये थे संजीव
संजीव ने पत्नी को कह दी थी बेटे के मरने की बात
प्रभात खबर में खबर छपने के बाद बच्चे के जिंदा होने की जानकारी माता-पिता को मिली
अस्पताल ने छोड़ा इलाज का पैसा
अस्पताल प्रशासन ने कहा कि 40 दिनों तक बच्चे के रहने-खाने से लेकर दवा का खर्च उठाया. माता-पिता की लाचारी व बच्चे के भविष्य को देखते हुए 1.50 लाख रुपये छोड़ दिये गये. मानवता का परिचय देते हुए कहा कि आगे भी बच्चे को मदद की जरूरत होगी तो हम जरूर करेंगे. इस मौके पर अस्पताल प्रशासन के डॉ महेश प्रसाद, डॉ नीलू प्रसाद, मैनेजर कुणाल सहित अस्पताल के तमाम कर्मी मौजूद रहे.