पटना: अस्पतालों तक सही दवा पहुंचे, इसको लेकर दिसंबर के अंत तक होनेवाली इ-टेंडरिंग में ऐसी कंपनियों को शामिल नहीं किया जायेगा, जिनका एक भी प्रोडक्ट किसी भी राज्य में ब्लैक लिस्टेड होगा. सही कंपनी को दवा का टेंडर दिया जायेगा, इसके लिए अलग से मॉनीटरिंग की व्यवस्था होगी.
सूत्रों की मानें, तो इस बार दवा खरीद में गड़बड़ी नहीं हो, इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग भी पूरी टेंडर प्रक्रिया पर अपनी नजर रखेगा. इसके लिए अलग से सेल भी बनाया जा रहा है, जो गुप्त रूप से काम करेगा और इसमें स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी व कर्मचारी को शामिल किया जा रहा है, जो टेंडर प्रक्रिया पूरी तरह से समझते हैं.
हर कंपनी की होगी माइक्रो लेवल पर जांच : टेंडर करनेवाली कंपनी की माइक्रो स्तर पर जांच हो, इसको लेकर तैयारी पूरी कर ली गयी है. जानकारी के मुताबिक दवा घोटाले की जांच में हुए खुलासे व दवा खरीद में की गयी गड़बड़ी किस तरह से हुई है, उन बिंदुओं पर पूरा ध्यान दिया जायेगा, ताकि दोबारा से उस स्तर पर गड़बड़ी नहीं हो. जांच रिपोर्ट में हर बिंदु पर हुए खुलासे में बताया गया है कि किस तरह से कमेटी ने दवा निविदा की शर्त को दरकिनार कर दवा का टेंडर ऐसी कंपनी को दे दिया है, जो पहले से ब्लैक लिस्टेड थी.
पिछली बार निविदा में यह हुई थी गड़बड़ी : स्वास्थ्य सचिव आनंद किशोर की जांच कमेटी ने जांच के क्रम में पाया कि निगम ने निविदा के लिए जो बिड डॉक्यूमेंट प्रकाशित किया था, उसमें एनेक्सचर-12 में मूलभूत गड़बड़ी है. एनआइटी के कंडिका-4 में टेकिAकल बिड कवर – ए का उल्लेख किया गया था, लेकिन एनेक्सचर-12 में जो चेक लिस्ट बनाया गया था, उसमें अंकित किया गया था कि कवर -ए में 17 डॉक्यूमेंट (क्रमांक 1-17 तक) जमा किया जाना है. इन 17 डॉक्यूमेंट में कंपनी के ब्लैक लिस्ट नहीं होने से संबंधित एफिडेविट जमा करने का कोई उल्लेख नहीं था अर्थात एनेक्सचर 12 के अनुसार कवर में ब्लैक लिस्ट से संबंधी एफिडेविट जमा करना अनिवार्य नहीं था, जबकि निविदा की शर्ते 4.1 (1) के अनुसार ब्लैक लिस्टिंग से संबंधित एफिडेविट जमा करना अनिवार्य था. इस प्रकार से इस बिड डॉक्यूमेंट के एनेक्सचर-12 में उल्लेखित कवर-ए की चेक लिस्ट में यह मूलभूत गड़बड़ी थी, जिससे ऐसी संभावना परिलक्षित होती है कि कुछ कंपनियों द्वारा इस ब्लैक लिस्ट के आलोक में कवर-ए में ब्लैकलिस्टिंग का एफिडेविट नहीं जमा किया गया. ऐसी कुछ कंपनियों को डिसक्वाइलीफाइड कर दिया गया. इस कारण से टेंडर की प्रक्रिया दोषपूर्ण है.
किसी भी ब्लैक लिस्टेड कंपनी को इ-टेंडरिंग में शामिल नहीं किया जायेगा. पिछली बार ऐसी कुछ कंपनियों को टेंडर में पास कर दिया गया था, जिनकी दवा एक-दो राज्यों में ब्लैक लिस्टेड थी और उनको टेंडर में पास कर दिया गया था, जिसके बाद बिहार के अस्पतालों में कुछ सब स्टैंडर्ड दवा की सप्लाइ हुई थी.
डीके शुक्ला, एमडी बीएमएसआइसीएल