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अफसरों की सुस्ती से खजाने पर बोझ

पटना: निचले स्तर के अधिकारियों की सुस्ती व उचित प्रबंधन नहीं करने का बोझ राज्य सरकार के खजाने पर आ गया है. पिछले वित्तीय वर्ष (2012-13) में मनरेगा के एक लाख छह हजार 667 जॉब कार्डधारियों को काम नहीं दिये जाने के कारण उन्हें बेरोजगारी भत्ता देना होगा. एक मजदूर की दैनिक मजदूरी 138 रुपये […]

पटना: निचले स्तर के अधिकारियों की सुस्ती व उचित प्रबंधन नहीं करने का बोझ राज्य सरकार के खजाने पर आ गया है. पिछले वित्तीय वर्ष (2012-13) में मनरेगा के एक लाख छह हजार 667 जॉब कार्डधारियों को काम नहीं दिये जाने के कारण उन्हें बेरोजगारी भत्ता देना होगा. एक मजदूर की दैनिक मजदूरी 138 रुपये है. मनरेगा के तहत मजदूरी की राशि केंद्र से मिलती है, जबकि बेरोजगारी भत्ता राज्य सरकार को देना पड़ता है. जाहिर है, अफसरों की सुस्ती की वजह से राज्य सरकार को संकट ङोलना पड़ रहा है.

कैसे मिलता है काम
मनरेगा प्रावधानों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति कम-से-कम 14 दिनों के लगातार काम की मांग कर सकता है. इसके लिए आवेदन देने के 15 दिनों के अंदर उसे सूचना दे दी जाती है कि उसे कहां और कब काम के लिए जाना है. 15 दिनों के अंदर रोजगार उपलब्ध न कराने पर मजदूर को बेरोजगारी भत्ता दिया जायेगा. पहले 30 दिनों के लिए बेरोजगारी भत्ता मजदूरी की एक चौथाई होगी. उसके बाद से मजदूरी दर के आधे से कम नहीं होना चाहिए.

काम के आवंटन की जिम्मेवारी पंचायत व पंचायत रोजगार सेवक की है. उनके कार्यो की मानिटरिंग प्रखंड स्तरीय कार्यक्रम पदाधिकारी करते हैं. ग्रामीण विकास विभाग के मैनेजमेंट इनफर्ॉेशन सिस्टम (एमआइएस) पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पूर्वी चंपारण जिले में सर्वाधिक 12109, जबकि मुजफ्फरपुर में 9939 लोगों को बेरोजगारी भत्ता देना पड़ेगा. सबसे बेहतर स्थिति नवादा की है, जहां एक भी मजदूर को बेरोजगारी भत्ता देने की स्थिति नहीं आयी है.

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