पटना: छेड़खानी की घटना होती है, तो लड़कियों के पहनावे पर प्रश्न उठते हैं. रेप होता है,तो लड़कियों के घर से निकलने को मुद्दा बनाया जाता है. लव मैरेज होने पर लड़कियों को ऑनर किलिंग का शिकार होना पड़ता है.
समाज में घटना कोई भी घटे, उसका दोषारोपण एक लड़की को ही ङोलना पड़ता है. आये दिन लड़कियों के जिंस पहनने और मोबाइल पर पाबंदी की बातें सामने आती हैं. अगर हम लड़कियों की आजादी की बात करते हैं, तो मोबाइल और जिंस लड़कियों की आजादी का प्रतीक है. ये बातें ऐपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने एएन सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान में आधी जमीन पत्रिका और आइसा द्वारा नैतिक पहरेदारी बनाम महिलाओं की आजादी पर आयोजित गोष्ठी में कहीं.
ऐपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और आधी जमीन की संपादक प्रो भारती एस कुमार ने बताया कि लड़कियों के आजादी पर तो हर दिन पाबंदी लगती है. कभी कोई पंचायत फरमान जारी करता है, तो कभी लड़कियों के घर से बाहर निकलने पर रोक लगाने की बात सामने आती है. वहीं इस मौके पर एएन सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान के निदेशक डॉ डीएम दिवाकर ने कहा कि महिलाओं को देखने की विकृति हमेशा से समाज में रही है.
महिलाओं की स्वतंत्र पहचान के तौर पर कभी नहीं देखा जाता है. महिलाओं की पहचान हमेशा संबंध ( मां, बहन, पत्नी) के आधार पर होता है. इस मौके पर जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष व आइसा नेता चिंटू कुमारी, रॉबिन शॉ कॉलेज, कटक की प्राध्यापिका शिवानी नाग, आधी जमीन पत्रिका की प्रधान संपादक मीना तिवारी मौजूद थीं.