पटना: शनिवार शाम 6 बजे. यह वही समय है, जब शुक्रवार को गांधी मैदान में रावणवध कार्यक्रम के बाद लोगों का हुजूम रामगुलाम चौक की तरफ बढ़ा था. उसके 20 मिनट बाद भगदड़ के बाद जो हृदय विदारक घटना घटी, उसने 33 लोगों की बलि ले ली.
24 घंटे बाद गांधी मैदान एक बार फिर अंधेरे में डूबा था और उसके ठीक सामने रामगुलाम चौक जहां घटना घटी थी वह शांत और गंभीर था. उस शांति में भी उन तमाम मृतकों की कराहें सहज ही महसूस की जा सकती थीं, जिन्होंने यहां असनीय पीड़ा ङोलते मौत की आगोश में चले गये. वहीं इस घटना को भुला कर जिंदगी फिर से अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी.
6.10 बजे : रामगुलाम चौक व गांधी मैदान के बीच वाली सड़क पर गाड़ियां आम दिनों की तरह ही सामान्य रूप से आ जा रही थीं. रामगुलाम चौक के सामने गांधी मैदान के सारे गेट खोल कर रखे गये थे. यही नहीं रामगुलाम चौक से कुछ कदम पहले और उसके कुछ कदम बाद भी दोनों छोटे गेट भी खोल कर रखे गये थे. वहीं अन्य दूसरे बड़े गेट जो गांधी मैदान की ओर जाते थे, उन्हें भी खोल कर रखा गया था. ये सभी खुले द्वार इस बात का प्रायश्चित कर रहे थे कि अगर शुक्रवार को ऐसा होता, तो शायद कई जानें बच जातीं. वहीं इसी गेट के भीतर खड़ी पुलिस की गाड़ियां, बाहर खड़ा वज्र वाहन व गेट के पास खड़ी पुलिस की टुकड़ी यही अफसोस कर रही होगी कि शायद कल यहां होते, तो वह न होता जो हुआ.
6.20 बजे : यह वही समय रहा होगा जब यहां चीखें गूंजती होंगी और अंधेरा छाया था. आज भी वहां अंधेरा वैसे ही छाया था. यहीं सड़क से सटे गांधी मैदान के छोड़ पर लगीं ऊंची लगी हाइमास्ट लाइटें आज भी उसी बेशर्मी से शो पीस में खड़ी थीं. यह इस बात की पुष्टि कर रहा था कि चाहे जो भी हो जाये ‘अंधेरा अभी कायम है’. इसी अंधेरे के बीच कुछ लोग मोमबत्तियों की रोशनी करने की कोशिश कर रहे थे. यह उन मरनेवालों को श्रद्धांजलि थी. आसपास के लोगों ने भी वहां मृतकों को श्रद्धांजलि अर्पित की. मोमबत्तियों के बीच एक बैनर भी लगा था. भाजपा के वरीष्ठ नेता रविशंकर समेत कई छोटे-बड़े नेता यहां आ जा रहे थे और अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे. वे वहां लोगों के बीच जाते चिंता जाहिर करते और फिर चले जाते. एक के बाद एक चार पहिया गाड़ियां आतीं और चली जातीं. वहीं वहां मौजूद लोग भी वहां मीडिया से रू-ब-रू होने और अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए मौजूद थे. कई चैनलों के कमैरे लगे थे, लाइव चल रही थी तो कुछ लाइव देने के इंतजार में बैठे थे. प्रिंट मीडिया के पत्रकार व कैमरामैन भी आ-जा रहे थे. पीपली लाइव का एक दृश्य यहां भी देखने को मिला, जो शायद कल या उसके एकाक दिन बाद से देखने को ना मिले. कुछ लोग यह देखने भी आ रहे थे कि यहीं पर घटना घटी थी और फिर चले जा रहे थे. इसी बीच बीच में वहां मौजूद कुछ लोग घटना के विरोध में नारे लगाते. एक बार पुलिस ने लाठीचार्ज भी किया और भीड़ को खदेड़ दिया. पता चला यह दिन में चौथी-पांचवी बार लाठीचार्ज किया गया है. करीब आठ बजे तक यहां यही सब चलता रहा. वहीं इस घटना की गवाह रामगुलाम की वह बुत (मूर्ति) वैसे ही खड़ी यह सब कुछ देखती रही.