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प्रभार के भरोसे चल रहा पटना जिले के विकास का काम

पटना: पटना जिले में चलायी जा रही करोड़ों रुपये की विकास योजनाओं की मॉनीटरिंग ठंडे बस्ते में है. जिला मुख्यालय से लेकर प्रखंड स्तर पर विकास योजनाओं की मॉनीटरिंग विकास शाखा के जिम्मे है, मगर इस शाखा में पिछले दो महीनों से उप विकास आयुक्त (डीडीसी) सहित तीन महत्वपूर्ण अधिकारियों के पद खाली पड़े हैं. […]

पटना: पटना जिले में चलायी जा रही करोड़ों रुपये की विकास योजनाओं की मॉनीटरिंग ठंडे बस्ते में है. जिला मुख्यालय से लेकर प्रखंड स्तर पर विकास योजनाओं की मॉनीटरिंग विकास शाखा के जिम्मे है, मगर इस शाखा में पिछले दो महीनों से उप विकास आयुक्त (डीडीसी) सहित तीन महत्वपूर्ण अधिकारियों के पद खाली पड़े हैं. अधिकारियों के नहीं रहने से जहां योजनाओं की मॉनीटरिंग कमजोर पड़ गयी है, वहीं कई वित्तीय कार्य भी अटके पड़े हैं. फिलहाल डिप्टी राशनिंग अफसर को ही इन तीन पदों की जिम्मेवारी सौंपी गयी है, लेकिन उनके पास वित्तीय अधिकार न होने से बाबुओं को फाइल लेकर डीएम कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ रहा है.

चार महीने से निदेशक (एनइपी) नहीं : विकास शाखा में डीडीसी के अलावा दो अन्य प्रमुख अधिकारी निदेशक (लेखा) और निदेशक (एनइपी) होते हैं. लोकसभा चुनाव के वक्त अप्रैल में ही निदेशक (एनइपी) मोबिन अली अंसारी का तबादला हो गया था, जिसके बाद उनके पद की जिम्मेवारी निदेशक (लेखा) अमरेंद्र कुमार को सौंप दी गयी थी.

निदेशक लेखा बने स्वास्थ्य मंत्री के पीएस: सीमा त्रिपाठी के पद छोड़ने के करीब दस दिन बाद ही निदेशक (लेखा) अमरेंद्र कुमार को भी स्वास्थ्य मंत्री का आप्त सचिव बना दिया गया. इसके बाद श्री कुमार ने डीडीसी, निदेशक लेखा व निदेशक एनइपी के साथ ही मंत्री के आप्त सचिव की जिम्मेवारी भी संभाल ली. करीब 25 दिनों तक प्रभार में काम चलाने के बाद अमरेंद्र कुमार को 18 जुलाई को रिलीव कर दिया गया. इसके बाद 21 जुलाई को डिप्टी राशनिंग अफसर पंकज कुमार को डीडीसी व दोनों निदेशक का प्रभार भी दे दिया गया. पंकज कुमार राशनिंग के साथ ही विकास शाखा, डीआरडीए और जिला परिषद् का पूरा कामकाज भी देख रहे हैं. डीडीसी की अनुपस्थिति में उनको ही जिला परिषद् के अध्यक्ष के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करानी पड़ी.

बाधित हो रहा काम
निदेशक एनइपी मनरेगा और इंदिरा आवास संभालते हैं. वर्तमान वित्तीय वर्ष में इंदिरा आवास की दूसरी किस्त की राशि बांटी जानी है. वर्ष 2014-15 का लक्ष्य भी आ गया है. बस शिड्यूल बना कर शिविर लगा उसका वितरण करना है. बगैर अधिकारियों के न तो शिड्यूल बनेगा और न ही उसका प्रॉपर वितरण सुनिश्चित हो सकेगा. इसी तरह मनरेगा में भी कई जगह मनरेगा भवन का काम पेंडिंग पड़ा हुआ है. अधिकारियों के नहीं रहने से प्रखंड स्तरीय पदाधिकारी इसमें रुचि भी नहीं ले रहे. इसी तरह, निदेशक लेखा का काम भी सही ढंग से नहीं हो पा रहा. वर्तमान प्रभारी डीडीसी के पास वित्तीय शक्तियां भी बिल्कुल सीमित हैं. सूत्रों की मानें तो विकास, जिला ग्रामीण विकास अभिकरण और जिला परिषद् के कर्मियों को इसी चक्कर में पिछले दो महीने से वेतन नहीं मिल सका है.कई भुगतान भी लंबित पड़ा है. अधिकारियों के नहीं होने से डीएम के समाहरणालय स्थित ऑफिस व गोपनीय कार्यालय में फाइलों का बोझ बढ़ गया है.

62 दिनों से डीडीसी का पद खाली
डीडीसी का पद 62 दिनों से खाली पड़ा है. तत्कालीन डीडीसी सीमा त्रिपाठी का चार जून को बेगूसराय डीएम पद पर तबादला होने के बाद नौ जून को उन्होंने यह पद छोड़ दिया था. इसके बाद से इस पद पर अब तक किसी की पोस्टिंग नहीं हुई है. उनकी जिम्मेवारी भी निदेशक (लेखा) अमरेंद्र कुमार को ही सौंपी गयी.

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