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Friday, March 29, 2024

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बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में हो बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार : सुशील मोदी

पटना : उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण को एक और पत्र लिख कर बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार करने, सभी ग्राम पंचायतों को बैंक शाखाओं से जोड़ने, सभी बैंक शाखाओं व खास कर गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में एटीएम की सुविधा उपलब्ध कराने, बैंकिंग काॅरेसपोंडेंट (बीसी) […]

पटना : उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण को एक और पत्र लिख कर बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार करने, सभी ग्राम पंचायतों को बैंक शाखाओं से जोड़ने, सभी बैंक शाखाओं व खास कर गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में एटीएम की सुविधा उपलब्ध कराने, बैंकिंग काॅरेसपोंडेंट (बीसी) केन्द्रों पर उपभोक्ताओं को पासबुक प्रिंटिंग की सुविधा देने, बीसी की निगरानी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक नियामक संस्था बनाने व एससी, एसटी एवं कमजोर वर्गों के लिए बैंकों के जरिए संचालित सरकार की योजनाओं के प्रखंड तथा पंचायत स्तर की उपलब्धियों के आंकड़े उपलब्ध कराने की मांग की है.

सुशीलमोदी ने अपने पत्र में लिखा है कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रति लाख आबादी पर 12.52 की जगह बिहार में मात्र 7.07 तथा ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 4.01 बैंक की शाखाएं हैं. इसी प्रकार एटीएम की उपलब्धता भी प्रति लाख आबादी पर राष्ट्रीय औसत 18.31 की तुलना में बिहार में मात्र 7.43 तथा ग्रामीण क्षेत्रों में महज 1.42 है. गौरतलब है कि बिहार की 88.71 प्रतिशत आबादी 8400 ग्राम पंचायतों में रहती है. राज्य की 5000 ग्राम पंचायतों में स्थायी बैंक शाखाएं नहीं है, जबकि 15 प्रतिशत से अधिक पंचायतों में तो बैंकिंग काॅरेसपोंडेट की सुविधा भी नहीं है.

उन्होंने कहा है कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी) एटीएम की सुविधा उपलब्ध नहीं कराता है. बिहार के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में अधिक से अधिक एटीएम सुविधा की जरूरत है. दूसरी ओर त्योहार के मौसम में ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों के एटीएम में नगदी नहीं रहने से लोगों को काफी असुविधा होती है.

सुशील मोदी ने आगे कहा कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग काॅरेसपोंडेंट के जरिए उपलब्ध करायी जा रही सेवा बहुत प्रभावकारी नहीं है. वहां, पासबुक पिंट्रिंग की कोई व्यवस्था नहीं रहने से उपभोक्ता अपने लेन-देन का कोई रिकार्ड नहीं रख पाते हैं. बीसी द्वारा थर्मल पेपर पर दिया जाने वाला पिंट्रआउट टिकाऊ नहीं होता है ऐसे में किसी विवाद की स्थिति में ग्रामीण उपभोक्ताओं के पास कोई प्रमाण नहीं होता है. बीसी माॅडल के कार्यों की निगरानी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक नियामक संस्था बनाने की जरूरत है.

उन्होंने लिखा है कि राज्य व केंद्र सरकार द्वारा एससी, एसटी व कमजोर वर्गों के लिए बैंकों के जरिए संचालित योजनाओं का कोई आंकड़ा बैंक तैयार नहीं करते हैं. इसी प्रकार राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति की बैठक में राज्य व जिला स्तर के डेटा तो उपलब्ध कराते हैं मगर प्रखंड व पंचायत स्तर के आंकड़ों के अभाव में जमीनी स्तर पर उपलब्धियों की प्रभावकारी समीक्षा संभव नहीं हो पाती है.

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