पटना: दानापुर से लेकर सिटी तक बने गंगा घाटों पर हर दिन हजारों लोग स्नान करने पहुंचते हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा की चिंता न तो जिला प्रशासन को है और न ही राज्य सरकार को. गोताखोर के आने तक नदी में डूबने वाले का बॉडी बह कर काफी दूर चला जाता है और ढूंढ़ना भी मुश्किल हो जाता है.
आपदा की स्थिति में रिस्पांस टाइम अहम होता है,लेकिन राजधानी में स्थिति ठीक इसके विपरीत है. घाट पर कोई भी घटना होने पर सबसे पहले लोकल थाने को सूचना दी जाती है. लोकल थाना जिला नियंत्रण कक्ष या एसडीओ को फोन कर इसकी जानकारी देता है. एसडीओ के पास प्राइवेट गोताखोर की सूची होती है. इस आधार पर उन्हें बुलाया जाता है. इस प्रोसेस में इतना समय लग जाता है कि गोताखोर के घाट तक पहुंचते-पहुंचते बॉडी मिलना मुश्किल हो जाता है. जिला प्रशासन की पूरी व्यवस्था प्राइवेट गोताखोरों पर निर्भर है. अगर सरकारी गोताखोर की व्यवस्था होती, तो कंट्रोल रूम में उनकी ड्यूटी लगायी जा सकती थी. इससे आपदा की स्थिति में तत्काल मौके पर भेजने में काफी सुविधा होती. मौजूदा व्यवस्था में प्राइवेट गोताखोर का लोकेशन ढूंढ़ने व उनके पहुंचते-पहुंचते काफी वक्त निकल जाता है. इस काम के लिए गोताखोर को 185 रुपये मिलते हैं. भुगतान में भी काफी विलंब होने से गोताखोर शव खोजने में अधिक रुचि नहीं दिखाते. प्राइवेट गोताखोर को बॉडी खोजने में सफलता नहीं मिलने पर जिला आपदा शाखा इ-मेल के जरिये एनडीआरएफ को सूचना देती है. जवाब में एनडीआरएफ के जवानों की ड्यूटी लगा कर बॉडी को खोजवाने का प्रयास किया जाता है.
पांच रबर बोट, नहीं होती पैट्रोलिंग : जिला प्रशासन के पास पांच इंर्पोटेबल (रबर) बोट की सुविधा है. बावजूद पैट्रोलिंग नहीं की जाती. प्रशासन के पास दो मोटरबोट चालक थे. फिलहाल एक मर्डर केस में जेल में बंद है जबकि दूसरा रिटायर हो चुका है. इनमें से एक रिटायर कर्मी देवी दयाल को ही कांट्रैक्ट पर बहाल कर उनकी सेवा ली जाती है. जरूरत पड़ने पर महेंद्रू के प्रशिक्षित लड़के भी मदद करते हैं. सामान्य दिनों में पैट्रोलिंग,तो बिलकुल नहीं होती. सिर्फ त्योहार में ही जिला प्रशासन या एनडीआरएफ की बोट नदी में उतरती है.
दो बड़े मोटर लांच डैमेज : प्रशासन के पास दो बड़े मोटर लांच थे, जो क्षतिग्रस्त हैं. उनकी मरम्मत के लिए राशि आवंटित हुई. बावजूद उसे बनाया नहीं जा सका है. दो एफआरसी (फाइबर) बोट भी थे, जिन्हें इलेक्शन के दौरान दूसरे जिलों में भेजा गया था, लेकिन अब तक वे नहीं लौटे हैं.
चेतावनी बोर्ड नहीं : दानापुर से लेकर सिटी तक कई घाटों पर दलदल है. कई घाट ऐसे हैं, जहां पहला पैर रखते ही काफी गहराई मिलती है. बावजूद उन घाटों पर चेतावनी बोर्ड नहीं है. आम लोगों को नदी की गहराई का अनुमान नहीं हो पाता और स्नान के दौरान थोड़ा सा आगे बढ़ने पर बैलेंस बिगड़ते ही गिर जाते हैं और धारा में बह जाते हैं.
हाल के दिनों में ऐसी कई घटनाएं सामने आयी हैं. गंगा घाटों पर चेतावनी की थोड़ी बहुत व्यवस्था छठ पूजा व कार्तिक पूर्णिमा पर ही दिखती है, लेकिन वह भी सिर्फ कागज पर ही.