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पटना : बाजार से बाहर हुआ बिहार के देसी चावल का स्वाद

स्थानीय अनाजों पर हाइब्रिड बीज पड़ रहे भारी दर्जन भर देसी अनाजों की भी प्रजातियां हुईं विलुप्त पटना : बुढ़वा धान की पौष्टिकता, सुंदरी और सीता धान की खुशबू और उसका नर्मपन बिहार के रसोई घर से बाहर हो चुका है. 70 के दशक में अधिकाधिक उत्पादन लेने के फेर में स्थानीय धान की प्रजातियां […]

स्थानीय अनाजों पर हाइब्रिड बीज पड़ रहे भारी
दर्जन भर देसी अनाजों की भी प्रजातियां हुईं विलुप्त
पटना : बुढ़वा धान की पौष्टिकता, सुंदरी और सीता धान की खुशबू और उसका नर्मपन बिहार के रसोई घर से बाहर हो चुका है. 70 के दशक में अधिकाधिक उत्पादन लेने के फेर में स्थानीय धान की प्रजातियां खेतों में कम होती गयीं.
हालात ये हैं कि धान की देसी किस्में खेत और बाजार दोनों से बाहर हो चुकी हैं. हैरत की बात यह है कि बिहार में शताब्दियों से बोये जा रहे धान के बीजों की ऐसी कई किस्में थीं, जो ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में किसानों के लिए बेहद उपयोगी हो सकती थीं. उदाहरण के लिए सेलहा और साठी धान कम पानी और अधिक तापमान में भी लोगों के पेट भरने लायक उत्पादन दे सकते थे.
हालांकि प्रदेश में नवगठित बायो डायवर्सिटी (जैव विविधता) बोर्ड दुर्लभ या विलुप्त प्राय हो चुके अनाज की किस्मों को चिह्नित करने के लिए सर्वेक्षण करने की योजना भर बना रहा है. यह बोर्ड अभी संसाधनों की कमी से जूझ रहा है. पर्यावरण में आये इन बदलावों पर अध्ययन कर रहे विशेषज्ञों के मुताबिक विलुप्तप्राय धान की किस्मों मसलन लाल सीता, केसोर, कतिया, सोना चूर, मोदका, बंगलवा आदि शामिल हैं. इसके अलावा कुछ और कोदो, सवा और चीना लतिहा, मड़ुअा आदि कई ऐसे अनाज हैं, जो नयी पीढ़ी अब पहचान भी नहीं पायेगी. ग्रामीण लोग किलो-दो किलो बाजार में पहुंचा जाते हैं. हालांकि छत्तीसगढ़ और झारखंड के ट्राइबल बेल्ट में अब भी धान की देशी किस्में मौजूद हैं.
निश्चित तौर पर अनाजों की स्थानीय किस्में अब नहीं मिल रही हैं. यह बड़ा नुकसान है. खासतौर पर जिस तरह से बिहार के लिए ग्लोबल वार्मिंग चुनौती बनती जा रहा है. धान का उत्पादन लगातार घट रहा है. ऐसे में जरूरत महसूस की जा रही है कि अधिक तापमान सहने वाली फसलों के बीज विकसित किये जाएं. इसमें स्थानीय बीज उपयोगी हो सकते थे.
पंकज कुमार, सलाहकार वन व पर्यावरण विभाग, बिहार
बायो डायवर्सिटी के संज्ञान में यह जानकारी है. बोर्ड जल्द ही उन स्थानीय बीजों को चिह्नित कर रिपोर्ट देगा, जो अब विलुप्त प्राय हो गये हैं. इसके लिए जीन पूल भी बनाया जाना चाहिए. इस दिशा में काम किया जायेगा.
एसके सिंह, चेयरमैन, स्टेट बायो डायवर्सिटी बोर्ड, बिहार

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