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पूर्व मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी एनएस माधवन के साथ विशेष बातचीत :इवीएम की आशंका दूर नहीं हुई तो बैलेट पेपर पर आना चाहिए

शशिभूषण कुंवर विपक्ष की आशंका, दक्षिण भारत की राजनीति और बिहार में चुनावी हिंसा को लेकर खुल कर बातचीत की पटना : बिहार के पूर्व मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, पूर्व निर्वाचन आयुक्त व मलायालम के प्रसिद्ध लेखक एनएस माधवन बिहार में लोकसभा चुनाव को देखने समझने आये हैं. उन्होंने लोकसभा चुनाव 2019 में इवीएम से चुनाव […]

शशिभूषण कुंवर
विपक्ष की आशंका, दक्षिण भारत की राजनीति और बिहार में चुनावी हिंसा को लेकर खुल कर बातचीत की
पटना : बिहार के पूर्व मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, पूर्व निर्वाचन आयुक्त व मलायालम के प्रसिद्ध लेखक एनएस माधवन बिहार में लोकसभा चुनाव को देखने समझने आये हैं. उन्होंने लोकसभा चुनाव 2019 में इवीएम से चुनाव को लेकर विपक्ष की आशंका, दक्षिण भारत की राजनीति और बिहार में चुनावी हिंसा को लेकर खुल कर बातचीत की. प्रस्तुत हैं उनसे की गयी बातचीत के अंश…
चुनाव में विपक्ष का इवीएम को लेकर एक बड़ा मुद्दा रहा है. निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि इवीएम से ही चुनाव होगा. आप इसे किस नजरिये से देखते हैं.
इवीएम से चुनाव कराये जाने को लेकर देश की जनता के मन में आशंका हैं. इस आशंका को दूर किया जाना आवश्यक हैं. मतदाताओं के मन में भ्रम रहता है, तो चुनाव को लेकर भी संदेह पैदा होगी. इवीएम को लेकर अगर जनता की आशंकाओं को दूर नहीं किया जाता तो बेहतर है कि बैलेट पेपर से ही चुनाव कराया जाये. नहीं तो जो सरकार सत्ता में आयेगी उस पर इसका असर पड़ेगा.
आयोग की ओर से देश में सात चरणों में चुनाव कराये जा रहे हैं. इसका क्या असर दिख रहा है?
चुनाव का उत्साह ही खत्म हो गया है. पहले चरण का मतदान हो रहा है और कहीं भी चुनाव का माहौल नहीं दिख रहा है. इलेक्शन कैंपेन फीका पड़ गया है. बाहर से आनेवाला व्यक्ति अगर बिहार या किसी राज्य में चुनाव देखने निकले, तो उसे पता ही नहीं है कि कहां पर चुनाव हो रहा है और कहां पर नहीं. एक चरण का चुनाव अप्रैल के दूसरे सप्ताह में है, तो अंतिम चुनाव मई के दूसरे सप्ताह में. सात चरणों में चुनाव का कोई मतलब ही नहीं है.
बिहार में 2019 के लोकसभा चुनाव को किस रूप में देखते हैं?
2010 के बाद चुनावी सिस्टम में बदलाव आया है. उन्होंने 2013 में बिहार छोड़ा था. इसके पहले चुनावों में हिंसा का बोलबाला था. अराजक स्थिति थी. तब सेंट्रल फोर्स की भूमिका नहीं थी. 2011 के बाद इलेक्शन को पूरीतरह से सेंट्रल फोर्स का यूज हो रहा हैं. इससे चुनाव में शुद्धता आयी है. रही बात 2010 और उससे पहले के चुनाव में उस समय बिहार में चुनाव में मोबाइल का बोलबाला नहीं थी. 2014 के बाद मोबाइल का प्रवेश चुनावों में धड़ल्ले से होने लगा. सोशल मीडिया महत्वपूर्ण रूप से चुनाव पर प्रभाव डाल रही हैं. इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. सूचनाओं को सेकेंडों में फैलायी जा रही है.
दक्षिण भारत में चुनाव का माहौल कैसा है?
केरल में राहुल गांधी ने दावेदारी करके अच्छा काम किया है. इस राज्य में भाजपा बहुत कमजोर है. केरल में सबरीमाला को लेकर महिलाओं का बड़ा आंदोलन का लाभ भाजपा उठा रही थी और कांग्रेस कमजोर हो रही थी. इसको रोकने में राहुल गांधी ने प्रवेश किया है वह उसका असर दिख रहा है. वहां की अधिसंख्य सीट कांग्रेस या सीपीएम को मिलेगी.
तमिलनाडु में चुनावी समीकरण किस तरह का बन रहा है?
एनएस माधवन : तमिलनाडु मेंपिछले 50 साल में ऐसा चुनाव नहीं
हुआ है जिसमें कोई स्टार मैदान में नहीं रहा है. इसके पहले हर चुनाव में कोई सुपर स्टार रहता था. चाहे वह एमजीआर हो, करुणानिधि या जयललिता रहती थी. इस बार
असली दृष्टि से चुनाव लड़ा जा रहा है. पहले इनके प्रभाव में चुनाव लड़ा जाता था. अभी डीएमके के स्टालिन का पोजिशन ठीक दिख रहा है. कर्नाटक में भाजपा का प्रभाव है. आंध्र प्रदेश और तेलंगना में न तो भाजपा और न ही कांग्रेस का असर है. वहां पर सभी क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा है. तेलंगाना में टीआरएस और आंध्र प्रदेश में वाइएसआर कांग्रेस और टीडीपी का प्रभाव है. चुनाव के बाद ही ये लोग किसी गठबंधन में शामिल होंगे.
चोर और चौकीदार का नारा दक्षिण में कैसा है?
दक्षिण में केरल में भाजपा उतनी मजबूत नहीं है. ऐसे में वहां पर इस न तो चोर-चौकीदार का नारा है और न ही राफेल विमान का.

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