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मिशन 2019 : करार से घटीं सबकी सीटें, सभी बड़े राजनीतिक दलों को उठाना पड़ रहा नुकसान
दीपक कुमार मिश्रा पटना : यह दौर गठबंधन का है. राज्य के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों पर गठबंधन भारी पड़ गया है. 2014 की तुलना में सभी राजनीतिक दल 2019 के लोकसभा में कम सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. सबसे अधिक नुकसान भाजपा को उठाना पड़ रहा है. भाजपा के अलावा जदयू, राजद व कांग्रेस भी […]
दीपक कुमार मिश्रा
पटना : यह दौर गठबंधन का है. राज्य के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों पर गठबंधन भारी पड़ गया है. 2014 की तुलना में सभी राजनीतिक दल 2019 के लोकसभा में कम सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. सबसे अधिक नुकसान भाजपा को उठाना पड़ रहा है. भाजपा के अलावा जदयू, राजद व कांग्रेस भी पिछले दफा की तुलना में नुकसान में हैं.
राज्य में लोकसभा की 40 सीटें हैं. पिछले चुनाव में जदयू ने 38 सीटों पर उम्मीदवार दिये थे. 2014 के चुनाव में जदयू एनडीए का हिस्सा नहीं था. इस बार जदयू एनडीए का हिस्सा है और गठबंधन में पिछले चुनाव की तुलना में 21 सीटों का नुकसान है. पार्टी इस बार 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
भाजपा 2014 में 30 सीट पर चुनाव लड़ी थी और 22 सीटें जीती थी. इस बार जदयू के साथ सीट शेयरिंग में उसके खाते में भी 17 सीटें आयी हैं. यानी जीती सीटों में भी पांच का नुकसान और कुल मिला कर पिछली बार की तुलना में 13 सीटों पर उसके उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ेंगे. 2014 में सौ फीसदी सफलता वाला दल था रालोसपा.
तीन सीट पर उसने उम्मीदवार दिये और सभी जीते. इस बार भी वह तीन से चार सीटों पर चुनाव लड़ेगी. लोजपा की सफलता का रेट भी भाजपा और जदयू के मुकाबले बेहतर रहा था. सात में से छह सीट लोजपा जीती. इस बार वह भी पिछली बार की तुलना में एक सीट कम यानी छह पर चुनाव लड़ेगी.
2014 में कांग्रेस 13 सीट पर चुनाव लड़ी थी : दिल्ली में सरकार बनाने को आतुर कांग्रेस भी पिछली बार की तुलना में इस बार कम-से-कम चार सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतार पायेगी.
2014 में कांग्रेस 13 सीट पर चुनाव लड़ी थी और कटिहार में राकांपा के टिकट पर जीते तारिक अनवर अब कांग्रेस में शामिल हो गये हैं. लेकिन, इस बार के चुनाव में उसे महागठबंधन में 11 सीटें मिल रही है. राजद 2014 के लोकसभा चुनाव में 27 सीट पर चुनाव लड़ी थी और चार पर सफल हुई. इस बार राजद के 20 सीट पर लड़ने की संभावना है.
दिल्ली के लिए करना पड़ रहा है हर जतन
दिल्ली के लिए राजनीतिक दलों को हर जतन करना पड़ रहा है. पिछले तीन दशक में देश की राजनीति में गठबंधन का क्रेज बढ़ा है उसका बड़ा कारण राष्ट्रीय दलों का कमजोर पड़ना और क्षेत्रीय दलों का मजबूत होना.
कांग्रेस व भाजपा जैसी बड़ी पार्टी को दिल्ली के सत्ता के लिए क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करना पड़ रहा है. हालांकि, गठबंधन का खामियाजा भी राजनीतिक दलों को उठाना पड़ रहा है. जिस दल का उम्मीदवार नहीं होता है उस दल के कार्यकर्ता शिथिल पड़ जाते हैं. राज्य में मुख्य रूप से दो ही गठबंधन है. एक एनडीए है जिसमें भाजपा, जदयू और लोजपा शामिल हैं. वहीं, महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, हम व रालोसपा शामिल हैं.
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