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पटना : बदलते समय के साथ आरबीआई और सरकार के बीच आयीं कई समस्याएं : रेड्डी

पटना : आरबीआई के पूर्व गवर्नर वाईवी रेड्डी ने कहा कहा है कि बदले समय के साथ ही केंद्रीय बैंक (आरबीआई) और सरकार के बीच कई समस्याएं आयी हैं. 80 के दशक में जीरो डॉलर मार्केट हुआ करता था, उस समय की चुनौतियां अलग थीं. इसके बाद 2010 में सरकार मौद्रिक नीतियों में सीधे हस्तक्षेप […]

पटना : आरबीआई के पूर्व गवर्नर वाईवी रेड्डी ने कहा कहा है कि बदले समय के साथ ही केंद्रीय बैंक (आरबीआई) और सरकार के बीच कई समस्याएं आयी हैं. 80 के दशक में जीरो डॉलर मार्केट हुआ करता था, उस समय की चुनौतियां अलग थीं. इसके बाद 2010 में सरकार मौद्रिक नीतियों में सीधे हस्तक्षेप करने लगी.
2016 के दौरान नयी मौद्रिक नीति अस्तित्व में आयी. वैश्विक और मौद्रिक नीति से जुड़ी कई नयी बातें समाहित हुईं, जिसने केंद्रीय बैंकों की नीति को प्रभावित किया. इसके साथ ही सरकार का हस्तक्षेप भी कई स्तर पर बढ़ा. इसके साथ ही केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच रिश्तों में बदलाव आया.
वे शुक्रवार को आद्री की तरफ से सेंटर फॉर इकोनॉमी पॉलिसी एंड पब्लिक फाइनेंस संस्थान की 10वीं सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. इस मौके पर शुक्रवार को ‘पब्लिक फाइनेंस : थ्योरी, प्रैक्टिस एंड चैलेंज’ विषय पर सम्मेलन का आयोजन किया गया था. पूर्व गवर्नर ने कहा कि केंद्र सरकार या वित्त मंत्रालय और सरकार के बीच समुचित समन्वय, परस्पर सहयोग और अंतर निर्भरता बनाये रखने की जरूरत है.
अगर आरबीआई या केंद्रीय बैंक ऊंची ब्याज दर को बनाये रखती है, तो यह सरकार के साथ निजी निवेशकों दोनों को सीधे तौर पर प्रभावित करता है. आर्थिक अस्थिरता आमतौर पर राजनीतिक अस्थिरता के कारण आती है. आरबीआई जैसे केंद्रीय बैंकों को एकाउंटिंग व्यवस्था को दुरुस्त बनाये रखने की जरूरत है. एकाउंटिंग ही केंद्रीय बैंकों के लिए मुख्य पूंजी है.
बेहतर समन्वय जरूरी
अहमदाबाद स्थित आईआईएम के निदेशक एरोल डिसूजा ने कहा कि केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच बेहतर समन्वय बनाये रखने की जरूरत है. अगर समन्वय बेहतर नहीं हुए, तो कई तरह की मौद्रिक और आर्थिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं. हाल में हुई नोटबंदी, ऐसी ही घटना है. यह दोनों के बीच बिना समन्वय के लागू कर दी गयी.
इससे बैंकों को कई तरह की समस्याएं झेलनी पड़ीं और मुद्रा बोझ बन गयी थी. पिछले 30 साल में जीडीपी में 250 गुणा की बढ़ोतरी हुई है. परंतु इसके साथ ही विकसित देशों की समस्या यह भी रही है कि उन पर कर्ज भी लगातार बढ़ता गया है. सरप्लस बजट मुद्रा स्फीति की निशानी है. केंद्रीय बैंकों को कई स्तर पर कार्य करने में स्वतंत्रता प्रदान करने की जरूरत है. ताकि कई आर्थिक नीतियों का अनुपालन सही से हो सके. इसका मतलब यह नहीं की सरकार का इस पर नियंत्रण नहीं हो. नियंत्रण एक सीमा तक ही होनी चाहिए.
कृषि क्षेत्र में बड़े स्तर पर बदलाव की जरूरत
आईआईएम अहमदाबाद के प्रो सुखपाल सिंह ने कहा कि कृषि क्षेत्र में बड़े स्तर पर आमूल-चूल परिवर्तन करने की जरूरत है. छोटे किसानों को सीधे मार्केट से जोड़ने और सीधे ऋण समेत अन्य सुविधाएं मुहैया कराने की जरूरत है. तभी सही मायने में विकास हो सकता है और कृषि क्षेत्र में उत्पादों की बर्बादी को भी बचाया जा सकता है.
कृषि की उन्नति में खेती के आकार कोई मायने नहीं रखता है. किसान के पास कितनी जमीन है, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता है. कार्यक्रम में स्वागत संबोधन आद्री के सदस्य सचिव शैबाल गुप्ता ने किया.

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