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पटना : पहली काउंसेलिंग में नामांकन, बाद में अनुपस्थित

राज्यस्तरीय बीएड नामांकन में अव्यवस्था व गलत प्रक्रिया से सीटें रह गयीं खाली पटना : राज्य स्तरीय बीएड नामांकन के लिए होने वाले काउंसेलिंग और उसके बाद की प्रक्रिया में किस तरह से गलतियां हुईं, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि एक छात्रा की काउंसेलिंग में उपस्थित होने और नामांकन के लिए रिकमेंडेशन […]

राज्यस्तरीय बीएड नामांकन में अव्यवस्था व गलत प्रक्रिया से सीटें रह गयीं खाली
पटना : राज्य स्तरीय बीएड नामांकन के लिए होने वाले काउंसेलिंग और उसके बाद की प्रक्रिया में किस तरह से गलतियां हुईं, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि एक छात्रा की काउंसेलिंग में उपस्थित होने और नामांकन के लिए रिकमेंडेशन की स्लिप मिलने के बाद भी रिजल्ट में एबसेंट इन काउंसेलिंग लिख दिया गया और कॉलेज अलॉट नहीं किया गया.
उक्त छात्रा ने बहुत प्रयास किया और शिकायत भी की, लेकिन सिर्फ इतना जवाब आया कि आप इंतजार कीजिए. इसी तरह किसी टॉपर छात्र को यह जानते हुए भी अल्पसंख्यक कॉलेज अलॉट कर दिये गये, जबकि वह अपनी अलग प्रक्रिया कर रहा था. वह आज भी नामांकन के लिए भटक रही है. ऐसे न जाने कितने छात्र हैं, जो इसी तरह की समस्याओं से परेशान घूम रहे हैं.
कॉलेज के लिए च्वाइस फिलिंग भी की, लेकिन नहीं अलॉट किया गया कॉलेज
इसमें मेरी क्या गलती, अन्याय क्यों
मेरा नाम स्मिता गुप्ता है. मैं आनंद निवास, कैलाश नगर सासाराम की रहने वाली हूं. मुझे सीईटी-बीएड में 60 अंक प्राप्त हुए थे. मेरी काउंसेलिंग 28 जुलाई को मार्निंग सेशन के काउंटर नंबर-6 पर हुआ था.
सारे डॉक्यूमेंट्स सही पाये जाने के बाद मुझे रिकंमेंडेशन फॉर एडमिशन का रसीद भी प्राप्त हुआ. इसके बाद मैंने कॉलेज सेलेक्ट किया, लेकिन जब 10 अगस्त की सुबह कॉलेज अलॉटमेंट का लिस्ट जारी किया गया, उसमें मुझे कॉलेज अलॉट नहीं किया गया और शाम 3 बजे फिर से एनओयू ने रिजल्ट अपडेट किया और मेरे रिजल्ट वाले सेक्शन में ‘एबसेंट इन काउंसेलिंग’ लिखा था.
उसके बाद बहुत बार मैंने मेल की. एक दो मेल का जवाब भी आया, जिसमें लिखा था कि इंतजार कीजिए. मेल या एसएमएस के द्वारा आपको बता दिया जायेगा, लेकिन कुछ नहीं आया. इसके बाद यूनिवर्सिटी ने कोई एक्शन नहीं लिया और अब फोन करने पर कहा जाता है कि यूनिवर्सिटी पर केस कर दीजिए. कॉलेज अलॉट नही होने और काउंसेलिंग में अनुपस्थित देखने के बाद दो बार मैं यूनिवर्सिटी कार्यालय, पटना जाकर सारे कागजात जमा की. लेकिन, कोई सुनवाई यूनिवर्सिटी की ओर से नहीं किया गया. मैं यह पूछना चाहती हूं कि आखिर मेरी इसमें क्या गलती थी और मेरे साथ ऐसा अन्याय क्यों?
हमारी इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार
मेरा नाम आफताब आलम है. मुझे टेस्ट में 79 अंक प्राप्त हुए थे. संत जेवियर कॉलेज दीघा एलॉट किया गया, लेकिन मेरा नामांकन ही नहीं लिया गया. बिहार बीएड परीक्षा में टॉपर विद्यार्थी भी आज रोड पर घूम रहे हैं.
हमलोगों का नामांकन नहीं हो पा रहा है. क्योंकि, हमलोगों का कॉलेज अल्पसंख्यक कॉलेज है. अल्पसंख्यक कॉलेजों ने अपनी मर्जी से नामांकन ले लिया. तो सवाल यह उठता है कि फिर हमें उन कॉलेजों में एलॉटमेंट क्यों किया गया और किया गया तो फिर हमारा नामांकन नहीं होने के पीछे कौन जिम्मेदार है. परीक्षा का संचालन कर रहे नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के चक्कर लगाते-लगाते विद्यार्थी थक चुके हैं, फिर भी नामांकन नहीं हुआ. हम बस इतना जानना चाहते हैं कि हमारी इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है और अगर हम सही हैं तो फिर हम सड़क पर क्यों हैं. जबकि, उधर अल्पसंख्यक कॉलेज वाले बहुत कम अंक से भी पास विद्यार्थी का नामांकन ले लिया और टॉपर विद्यार्थी सब रोड पर हैं. हजारों विद्यार्थी का भविष्य बर्बाद होने के कगार पर है. क्या यही है बिहार का एजुकेशन सिस्टम है.
लंबी काउंसेलिंग प्रक्रिया
विवि की ओर से लंबी काउंसेलिंग की प्रक्रिया की गयी, जबकि उसे शॉर्ट करके छात्रों को नामांकन के लिए अधिक समय दिया जा सकता था. अंतिम तिथि से पहले ही दूसरी-तीसरी लिस्ट निकाली जा सकती थी या फिर प्रक्रिया ऐसी होती कि इतने सीट खाली नहीं रहते. दूसरा कि छात्रों को बेवजह प्रोविजनल फेल होने व ऑरिजनल सर्टिफिकेट न होने के नाम से दौड़ा कर समय बर्बाद किया गया. जबकि, अंतत: उसी प्रोविजनल पर नामांकन हुआ.
छात्र दर-दर भटक रहे : नामांकन के लिए इतना कम समय देने की वजह से आज हजारों छात्रों का ‌भविष्य अधर में है. छात्र दर-दर भटक रहे हैं. उनका पूरा साल बर्बाद हो चुका है वह भी तब जब उन्होंने परीक्षा पास कर ली. अब अगले वर्ष का क्या प्रक्रिया होगी उनका नामांकन होगा भी या नहीं उसको लेकर भी वे आश्वस्त नहीं हैं. शिक्षक बनने और बच्चों को पढ़ाने की इनकी चाह सपना ही रह गया. ऐसे छात्र पूरे राज्य में हैं, जो इस प्रक्रिया का खामियाजा भुगत रहे हैं.

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