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पटना : यहां खतरों में बेटियों का सम्मान, न साइन बोर्ड, न सुरक्षा गार्ड, आवासीय मकानों में चल रहे बेनामी गर्ल्स हॉस्टल
पटना : शहर में नियमों को ताक पर रख कर संचालित हो रहे प्राइवेट गर्ल्स हॉस्टलों में लड़कियों की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है. हॉस्टलों में सुरक्षा के संसाधनों और बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण छात्राओं के सामने इज्जत बचाने की चुनौती होती है, तो कभी खराब खाने और पढ़ाई के लिए बेहतर शैक्षणिक […]
पटना : शहर में नियमों को ताक पर रख कर संचालित हो रहे प्राइवेट गर्ल्स हॉस्टलों में लड़कियों की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है. हॉस्टलों में सुरक्षा के संसाधनों और बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण छात्राओं के सामने इज्जत बचाने की चुनौती होती है, तो कभी खराब खाने और पढ़ाई के लिए बेहतर शैक्षणिक माहौल न मिलने की मुसीबत मुंहबाये खड़ी रहती है़
हर साल शहर के पुलिस थानों में निजी हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों की सुरक्षा एवं दूसरी समस्याओं से जुड़े दर्जनों मामले पहुंचते हैं. हालांकि इनमें पुलिस प्रभावी भूमिका नहीं निभा पाती़ इसके कई तकनीकी कारण हैं. दरअसल हॉस्टल में रहने वालों की मजबूरी यह है कि वे पढ़ाई करें या थाना-कचहरी के चक्कर काटें. यही वजह है कि हॉस्टल संचालक खास तौर पर छात्राओं का तमाम तरीकों से शोषण करते हैं. कई बार लड़कियों का धैर्य जवाब दे जाता है औरउनका विरोध मुखर हो जाता है. राजधानीपटना के निजी हॉस्टल में पिछले कुछ महीनों में हुए खास चर्चित घटनाक्रम ऊपर कही गयी बातों की पुष्टि कर रहे हैं.
निजी हॉस्टलों से जुड़े मुख्य घटनाक्रमों पर एक नजर
हाल ही में पीरबहोर थाने परिक्षेत्र में संचालित
एक गर्ल्स हॉस्टल में बदमाशों ने विशेष मकसद से कमरों के दरवाजे बंद कर दिये थे़ जानकारी में पता चला कि हॉस्टल संचालक का बेटा अपने दस्तों के साथ उत्पात मचाता रहता था़ पुलित में ये मामला दर्ज है़ आगे क्या हुआ, इस संदर्भ में कोई जानकारी सामने नहीं आयी है़
19-20 मार्च 2018 को हॉस्टल
संचालक ही लड़कियों के कमरे और बाथरूम में झांकता पकड़ा गया था़ इस दौरान लड़कियों ने मिलकर उसे पीटा था. यही नहीं रास्ते से गुजरते किन्नरों ने भी संचालक की पिटाई भी की थी. यह मामला इतना चर्चित रहा कि इसे राज्यपाल ने संज्ञान में लिया़, उचित कार्रवाई के निर्देश दिये थे़
पटना के चिनहट क्षेत्र स्थित आनंद बिहार काॅलोनी में संचालित एक निजी हॉस्टल में पढ़ाई कर रही छात्राओं ने 24 सितम्बर 2017 में हॉस्टल संचालक पर ये आरोप लगाया कि खाना कच्चा और कम गुणवत्ता पूर्ण दिया जाता है़ जबकि पैसे बड़े होटल जैसा खाना उपलब्ध कराने के लिए लिये जाते हैं. पुलिस के सामने लड़कियों ने प्रदर्शन भी किया़
पुलिस के सामने एक आजमगढ़ की लड़की ने बाकायदा पुलिस अफसर के सामने इस हॉस्टल में रहना भूल बताते हुए कहा कि मुझे सिक्योरिटी मनी दिला दी जाये़ बाद में वह लड़की पैसा लेकर हॉस्टल छोड़कर चली गयी़
इसी साल फरवरी में पटना शहर के एक निजी हॉस्टल से रात में प्रथम श्रेणी के आईआरएस अफसर को पकड़ा गया़ यौनशोषण एवं दूसरे मामलों में उसके खिलाफ प्रकरण भी दर्ज किया गया़ यह मामला पटना के सबसे चर्चित मामले के रूप में सामने आया था़
पटना सायंस कॉलेज एवं पीयू के नजदीकी हॉस्टलों का हाल
जधानी स्थित किसी कॉलेज या विश्वविद्यालय, कोचिंग बाजार के आसपास किसी तंग गली में भी एक मकान है, तो वह कमाई का अच्छा जरिया हो सकता है. बस उसमें छोटे-छोटे कमरे बना कर दो बेड लगा देने की जरूरत है. साइंस कॉलेज के सामने कुनकुन सिंह लेन में ऐसे कई मकान हैं, जिन्हें गर्ल्स हॉस्टल का रूप दिया गया है, लेकिन सामने साइन बोर्ड भी नजर नहीं आता है. किराये के मकान की शक्ल में चल रहे अधिकांश बेनामी गर्ल्स हॉस्टल आवासीय मकानों में चल रहे हैं.
सीसीटीवी कैमरे की कमी
हॉस्टलों में प्रवेश द्वार पर सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं. लेकिन हॉस्टलों के सभी हिस्सों में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं. हॉस्टल एक दूसरे भवन से सटे हैं, इस कारण रोशनदान व खिड़कियों की समुचित व्यवस्था नहीं होने से कमरों में अंधेरा रहता है. दिन में भी लाइट जलानी पड़ती है.
जबर्दस्त मुनाफा कमाने का जरिया बने हॉस्टल
शहर के तकरीबन हर चहल पहल वाले इलाके में गर्ल्स हॉस्टल और पीजी खुले हैं. इसमें 99 प्रतिशत हॉस्टल बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं. रजिस्ट्रेशन कराने वाली एजेंसी इस मामले में पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं.
दरअसल राजधानी पटना में हॉस्टल संचालन एक कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है. इसमें मुनाफा की तुलना में रत्ती भर निवेश मसलन केवल किराये का फ्लैट और छोटे छोटे सोने के लिए तख्ते या पलंग की व्यवस्था करनी होती है. हॉस्टलों में न मानकों की चिंता और न उन्हें बच्चों की सुरक्षा की चिंता. बस कमाई को बढ़ाने के बहाने तलाशे जाते हैं. इसके बाद संचालकों की कमाई चलती रहती है. स्टूडेंट्स की मजबूरी ये है कि उन्हें यहां रहना है. गांव और छोटे -छोटे कस्बों से बड़े-बड़े ख्वाब लेकर राजधानी में अपना कॅरियर बनाने वे आते हैं. मुर्गी के दड़वे नुमा हॉस्टल में किसी तरह रहना उनकी मजबूरी है. अधिकतर गर्ल्स हॉस्टल्स में 11 एवं 12 कक्षा की वे छात्राएं रहती हैं, जिनके माता-पिता अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई से उनका भविष्य संवारना चाहते हैं.
लापरवाही पर बचाव की अपनी-अपनी दलील
बिना मानक और मनमर्जी से चल रहे हॉस्टल को लेकर ‘प्रभात खबर’ ने शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन प्रसाद वर्मा का ध्यान आकर्षित कराया तो उन्होंने कहा कि सतर्कताबरतने की अत्यंत आवश्यकता है. अभी तक ऐसा कोई मामला उनके संज्ञान में नहीं लाया गया है. यदि किसी हॉस्टल में कोई गड़बड़ी है.
कोई छात्र-छात्रा पीड़ित है तो वह उनसे शिकायत कर सकता है. जहां तक मानकोें की बात है, तो वह जल्दी ही शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों के साथ बैठक करेंगे. शिक्षा विभाग के स्तर पर जो भी कदम उठाये जा सकते हैं वह उठाये जाएंगे. हम सुनिश्चित करेंगे की शिक्षा विभाग अपने स्तर से कार्रवाई करे. यदि कोई कार्रवाई शिक्षा विभाग के अधिकार क्षेत्र से बाहर है तो संबंधित विभाग को भी दिशाा निर्देश दिये जायेंगे. मंत्री ने आश्वस्त किया कि विभाग अपने किसी भी नियम-कानून का उल्लंघन नहीं होने देगा. अवैध हॉस्टलों पर कार्रवाई के लिये जल्दी ही अभियान चलाया जायेगा.
स्थानीय प्रशासन की लापरवाही आ रही है आड़े
पुलिस महानिदेशक केएस द्विवेदी बिहार की बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंता में डूबे हैं. उनक मंशा है कि घर से दूर शिक्षा या रोजगार के लिए रह रही प्रत्येक बेटी की सुरक्षा सुनिश्चित रहे. सबे में पुलिस के सबसे बड़े अधिकारी की मंशा पूरी होने में अन्य विभाग विशेषकर स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही आड़े आ रही है
राजधानी में बड़ी संख्या में गर्ल्स हाॅस्टल हैं. यह घर-घर में संचालित हो रहे हैं. इनमें रहने वाली छात्राओं या कामकाजी महिलाओं के साथ भविष्य में कुछ घटता है तो कौन जिम्मेदार होगा? इस सवाल का उत्तर तलाशने और जिम्मेदार अधिकारियों का ध्यान आकर्षित कराने के क्रम में ‘ प्रभात खबर ‘ ने शनिवार को डीजीपी से बात की. उनका कहना था कि पुलिस के पास ऐसी कोई सूची या सूचना नहीं है कि पटना के किसी गली या मोहल्लों में गर्ल्स हॉस्टल चल रहे हैं.
शहर के 450 छात्रावासों को किया गया है चिह्नित
प्रशासन सुरक्षा व सुविधा के मानकों का पालन नहीं करने वाले जिले के महिला छात्रावासों परकार्रवाई करेगा. प्रमंडलीय आयुक्त आनंद किशोर के निर्देशन में सभी थानों से शहर के 450 के लगभगमहिला छात्रावासों को चिह्नित किया है. उन्होंने बताया कि जांच के नये फार्मेट जिलाधिकारी व एसएसपी केमाध्यम से सभी थानों को उपलब्ध करा दिये गये हैं. उन्होंने कहा कि 15 अगस्त पर उन फार्मेटों के आधार परसभी थानों को अपने क्षेत्र के महिला छात्रावासों की जांच रिपोर्ट देनी है. इसके बाद उसको जिला स्तर परटीम बना कर जांच वेरिफिकेशन किया जायेगा. फिर जिन महिला छात्रावासों में गड़बड़ी मिलेगी. उन परकार्रवाई की जायेगी.
मुजफ्फरपुर से सबक ले कोटा मॉडल अपनाएं
मुजफ्फरपुर के बालिका गृह में जो हुआ वह स्थानीय प्रशासन की लापरवाही का ही परिणाम था. समाज कल्याण विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारी यदि अपनी जिम्मेदारी निभाते तो छोटी उम्र की बेटियों को खिलौने से खेलने की उम्र में ‘ खिलौना’ नहीं बनना पड़ता. पटना में भी बालिग-किशोर उम्र की बेटियों की सुरक्षा खतरे में है.
शहर के गली-माेहल्लों में कुकुरमुत्तों की तरह संचालित हास्टलों में रहने वाली बेटियों की सुरक्षा पर रत्तीभर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है. हॉस्टल संचालकों को केवल और केवल भाड़े की ही चिंता रहती है. गर्ल्स हॉस्टल संचालित करने वाले व्यावहारिक और सामान्य नियम कायदों का भी पालन नहीं कर रहे हैं. स्थानीय प्रशासन (नगर निगम- जिला प्रशासन ) इनकी ओर आंख उठाकर भी नहीं देख रहा है.
नगर निगम के पास ऐसी कोई सूची नहीं है जिससे यह पता चले कि किस माेहल्ले में कितने घर हॉस्टल में तब्दील हो गये हैं. जिला प्रशासन ने भी कोई ऐसी व्यवस्था नहीं की है कि जिससे हाॅस्टलों पर नगर रखी जा सके. उनके कुछ गलत घटे तो उस पर तत्काल संज्ञान लिया जा सके.
राजस्थान के शहर कोटा में 2016 में कोचिंग ले रहे बिहार के एक छात्र की हत्या हो गयी थी. इसके बाद वहां के प्रशासन ने निजी हॉस्टल संचालकों के लिए नियम बनाये. इनका पालन न करने पर प्रशासन तरफ से कार्रवाई की जाती है. इस घटना से पहले कोटा में घर-घर में संचालित हॉस्टल के लिए कोई नियम कानून नहीं थे. लोग अपने घरों में अतिरिक्त कमरे और पार्टीशन लगाकर हॉस्टल संचालित कर रहे थे.
हॉस्टलों को लेकर कोटा प्रशासन के नियम
हर हॉस्टल का कराना होगा रजिस्ट्रेशन, सिक्योरिटी गार्ड लगाने होंगे, हॉस्टल में रहने वालों के लिए बायोमैट्रिक उपस्थिति दर्ज करने की व्यवस्था करनी होगी
आग बुझाने के उपकरण, हवा और पानी की पूरी व्यवस्था करना होगी, आने-जाने का समय तय करना होगा , लड़कियों के हॉस्टल में पूरा स्टाफ महिलाओं का ही होगा
कोई लंबे समय से गायब है तो उसकी सूचना परिजनों को देनी होगी, पुलिस हेल्प लाइन और डॉक्टर के नंबर प्रदर्शित करने होंगे
एनसीपीसीआर के मापदंडों की अनदेखी
पूरे मामले में देश में अवयस्क लड़कियों और लड़कों के अधिकारों के लिए बनी सबसे बड़ी संस्था नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) के मापदंडों की अनदेखी की जा रही है. ये राइट बच्चों की मूलभूल जरूरत है, जिसमें 18 साल तक के बच्चों की गरिमा और उनके बेहतर शैक्षणिक व्यवस्था की तरफदारी की गयी है. एनसीपीसीआर ने नवंबर, 2017 में ही सभी निजी या सरकारी हॉस्टल, शिक्षण संस्थानों के हॉस्टल के लिए गाइड लाइन बनायी थी.
इसमें कहा था कि जिस हॉस्टल में 18 साल से कम उम्र के बच्चे रहते हैं. इसके नाॅर्म्स सभी सरकारी हॉस्टल के साथ ही प्राइवेट, कोचिंग इंस्टीट्यूट के हॉस्टल और मदरसा जैसे धार्मिक संस्थानों के हॉस्टल पर भी यह लागू है. हर संस्थानों को एनसीपीसीआर के गाइड लाइन को मानना जरूरी है. सच्चाई ये है इनके नाॅर्म्स का पालन कहीं नहीं कराया जा रहा है. मैनेजमेंट कमेटी में बच्चे भी होंगे शामिल : सभी हॉस्टल में मैनेजमेंट कमेटी की बात है.
इसमें कहा गया है कि मैनेजमेंट कमेटी में 50 प्रतिशत बच्चे शामिल होंगे. हॉस्टल अधीक्षक ही कमेटी का गठन करेंगे. यह कमेटी खाने का मैन्यू भी तय करेगी. हॉस्टल में अधीक्षक के साथ-साथ. वॉर्डन को भी नियुक्त करने को कहा गया है.
उद्देश्य है बेहतर : एनसीपीसीआर का उद्देश्य है कि प्राइवेट संस्थाओं की मनमानी पर लगाम लगे. घर से बाहर बच्चों को हॉस्टल में भी सुरक्षित माहौल मिले. पैरेंट्स बेफ्रिक रहें कि उनका बच्चा सही स्थान पर है. बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सभी के लिए जरूरी है. हॉस्टल में एक काउंसलर रखने का भी प्रावधान है.
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