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हमें सोचना होगा-देश रहेगा या नहीं

पटना: आपके शहर पटना आकर गौरवान्वित हूं. प्रधान ज्वाला प्रसाद की याद में आयोजित व्याख्यानमाला में कुछ कहना और गर्व की बात है. हम अक्सर कहते हैं कि कुछ नहीं हो सकता. वह नहीं कर रहा है, तो हम क्यों करें. आखिर कोई विदेशी हमारे देश को नहीं बदलेगा. शायद हम उस ओर आगे भी […]

पटना: आपके शहर पटना आकर गौरवान्वित हूं. प्रधान ज्वाला प्रसाद की याद में आयोजित व्याख्यानमाला में कुछ कहना और गर्व की बात है. हम अक्सर कहते हैं कि कुछ नहीं हो सकता. वह नहीं कर रहा है, तो हम क्यों करें. आखिर कोई विदेशी हमारे देश को नहीं बदलेगा. शायद हम उस ओर आगे भी बढ़ रहे हैं. सारे ठेके विदेशी कंपनियों को दिये जा रहे हैं. अब तो लगता है कि चीफ सेक्रेटरी भी कोई विदेशी ही बन जायेगा.

संभव है कोई मुख्यमंत्री भी विदेशी बन जाये (हंसते हुए). लेकिन, हमें निराश होने की जरूरत नहीं है. हम अपनी बदौलत ही स्थिति को बदलेंगे.
हम सोचेंगे कि एक नेता देश को बदलेगा, तो यह संभव नहीं. आंदोलन व संघर्ष से ही स्थितियां बदलेंगी. हम सब कुछ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ सकते. सरकार के साथ संवाद जरूरी है. मैं यहां कुछ नया नहीं कहूंगी. वैसे भी हमें सड़क छाप कहा जाता है. आज कल धरना-प्रदर्शन करनेवालों को इसी शब्द से नवाजा जाता है. बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं हूं.

आरटीआइ से मजबूती : आरटीआइ का श्रेय मुङो दिया जाता है. दरअसल, आरटीआइ का रास्ता लंबा है. गरीबों के पेट और परिश्रम ने आरटीआइ दिया है. राजस्थान में नोरती नाम की एक दलित महिला, दो-तीन बिगहा जमीन के मालिक और मात्र पांच-छह सौ रुपये खर्च कर जीवन गुजारनेवाले व कबीरपंथ को माननेवाले मोहन जी जैसे लोगों के कारण आरटीआइ आया. हम उदास रहते हैं कि आरटीआइ ने हमें क्या दिया. आरटीआइ ने लोकतंत्र को मजबूत किया है. ताकत मिली है.

हम जानेंगे, जीयेंगे : वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने 1996 में जनसत्ता में हमारे आंदोलन पर लिखा था- कहम जानेंगे, हम जीयेंगे.क इन वाक्यों ने ही पूरे आंदोलन को चित्रित किया था. आज आरटीआइ में सवाल पूछनेवालों की हत्या की जा रही है. बिहार में पांच आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गयी. मुजफ्फरपुर की रत्नौली पंचायत में मुखिया से सवाल पूछनेवाले राम कुमार की गोली मार हत्या कर दी गयी.

सवाल पूछने की कीमत
आखिर एक सवाल पूछने की क्या कीमत है. अब तो पत्रकार भी सवाल नहीं पूछ सकते. अगर सवाल पूछ लें, तो छपने की गारंटी नहीं है. नेताओं पर हमने इतना बोझ डाल दिया है कि वे भी सवाल पूछने की स्थिति में नहीं हैं. आरटीआइ ने सबों को एक ही श्रेणी में रखा है. सवाल पूछना बुनियादी अधिकार है. लोकतंत्र में अगर सवाल खड़ा करने का अधिकार नहीं है, तो वह लोकतंत्र नहीं है. दरअसल, अपने देश में सवाल पूछने की सभ्यता नहीं है.

30 लाख लोगों ने पूछे सवाल
फलां दलित है, तो वह काम नहीं कर सकता. फलां जाति का है, तो वह यह काम नहीं कर सकता. कम- से- कम दलितों को तो सवाल पूछने का बिल्कुल अधिकार नहीं है, पर अब आरटीआइ ने स्थिति बदली है. देश में 30 लाख लोग सवाल पूछ रहे हैं. पीडीएस से लेकर बड़े-बड़े घोटालों को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं. यह दीगर है कि जो सवाल पूछते हैं, उन्हें अतिवादी, माओवादी माना जाता है. एक गुजारिश करूंगी- जो भी देश की चिंता करते हैं, वे सवाल करनेवालों को सुरक्षा दें. पारदर्शिता छोटी-छोटी बातों से ही आती है. नयी दिल्ली में आलाधिकारी, मंत्री व बुद्धिजीवियों के सम्मेलन में 1996 में चौथी पास सुशीला ने कहा था कि अगर मैं अपने बेटे को 10 रुपये देती हूं, तो हिसाब लेती हूं. हमने तो सरकार को करोड़ों, अरबों का अधिकार दिया है, तो फिर हिसाब क्यों नहीं लूंगी. हमारा पैसा है, तो हमें हिसाब चाहिए.

लोकतंत्र के शहीद
यूपीए-एक में राजनीतिक संवाद के कारण ही जनहित में कई काम हुए. मनरेगा, आरटीआइ, घरेलू हिंसा पर बिल. आरटीआइ ने जानकारी लेने का अधिकार दिया. इसी क्रम में 30 लोगों की हत्या की गयी. इनमें एक महिला भी हैं. लोकतंत्र के शहीद वही हैं. आरटीआइ ने हमें नेताओं से पूछने का भी अधिकार दिया है कि आप क्या कर रहे हैं. आरटीआइ एक चाबी है, जिसने सरकार के दरवाजों को खोला है.

पांच जरूरी बातें
दलित टोले में एक बैठक कर रही थी. उसमें मात्र पांच बातें कही गयीं – जानकारी, सुनवाई, कार्रवाई, भागीदारी व सुरक्षा. क्या हो रहा है, उसकी जानकारी हो. अगर कुछ निकले, तो उस पर कार्रवाई हो. क्या कार्रवाई हो रही है, उसमें जनभागीदारी हो और सुरक्षा मिले.

गलतफहमी में न रहें
सुनानेवाली बातों से विकास चल रहा है. लोग क्या सुनना चाहते हैं, उसी के अनुसार बोले जाते हैं. शिक्षा को ही लें, पहले अंगरेजी और अब पश्चिमी मॉडल, तीन या चार वर्षीय पाठय़क्रम की बात कही जा रही है. लेकिन, क्या महात्मा गांधी, अरविंद, रवींद्र नाथ टैगोर, गिजुभाई ने यही पढ़ाई की थी. अब तो कुछेक लोग यह भी कहने लगे हैं कि इस देश में गांधी जी का क्या मतलब है. ऐसा कहनेवाले लोग गलतफहमी में हैं. यह सच है कि लगे रहो मुन्ना भाई फिल्म के बाद गांधी जी की आत्मकथा की 40 हजार से अधिक प्रतियां बिकीं.

कहां से आ रहा पैसा
जरूरत इसकी है कि हम क्या कहते हैं और क्या करते हैं. इसकी भी कि सभी जनहित कार्यो के बारे में लोगों को जानकारी मिले. पार्टियों को फंड कहां से मिल रहा है और वह कहां जा रहा है. धार्मिक संगठनों का पैसा कहां से व कैसे खर्च होता है. प्रेस, गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) में कहां से पैसा आ रहा है. यह सब जानकारी मिलनी चाहिए.

ताकत के साथ बोलें
हमें ताकत के साथ बोलना होगा. आरटीआइ सही तरीके से तभी लागू होगा, जब मजबूती से आवाज उठायेंगे. क्या यह देश रहेगा या नहीं रहेगा, हमें यह सोचना होगा. देश की आजादी को बनाये रखना हमारी चुनौती होनी चाहिए.

यूआइडी से प्राइवेसी भंग
यूआइडी के कारण एनएसी से हटी
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद से त्यागपत्र देने के बाद तरह-तरह की कयासबाजी की जा रही है. दरअसल, आजकल दो विचार चल रहे हैं. पहला – मार्केट ही ग्रोथ रेट करेगा. दूसरा विचार – मार्केट ग्रोथ ही सबका समाधान नहीं करेगा. यूआइडी के बारे में तरह-तरह की बातें बतायी जा रही हैं. जहां तक मैं समझ रही हूं कि अगर मैं कोई गलत काम करती हूं, तो आसानी से पकड़ा जा सकता है. लेकिन, यूआइडी में जाति, धर्म आदि सभी बातों का वर्णन रहेगा. पति-पत्नी के झगड़े तक शामिल हो सकते हैं. मैं कहां जा रही हूं? कहां का टिकट कटाया? बैंक गये.

तो इसमें हमारी प्राइवेसी कहां है. इसे समझना होगा. सार्वजनिक मुद्दा पर बहस हो तो ठीक है, पर पति-पत्नी के बीच का विवाद बहस का विषय बन जाये, तो क्या वह उचित रहेगा. इस पर बहस जरूरी है कि क्या कानून आ रहा है. यूआइडी को लांच करनेवाली यूपीए-टू में कई तरह की बातें कही जा रही हैं. हमने उस पर आपत्ति जतायी थी. प्रधानमंत्री को एनएसी (राष्ट्रीय सलाहकार परिषद) की ओर से सुझाव दिया गया है कि जो भी नया कानून आये या पुराने कानूनों में संशोधन हो, तो उस पर बहस हो. जनता के बीच ड्राफ्ट सार्वजनिक हो. वेबसाइट पर रखा जाये. रायशुमारी हो. हम यह नहीं कहते कि सबों के विचार को स्वीकार किया जाये. कम- से- कम लोगों को अपने विचार देने का अधिकार तो मिले. आखिरकार लोकतंत्र में सबों को विचार रखने का अधिकार है.

कौन-कौन
व्याख्यानमाला में सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी मनोज नाथ, जस्टिस अजय त्रिपाठी व सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद सिन्हा ने भी अपने विचार रखे. प्रधान ज्वाला प्रसाद के पुत्र व हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ अजीत प्रधान ने पिता से जुड़ी यादों को साझा किया. फिलहाल पत्रिका की प्रीति सिन्हा ने प्रधान ज्वाला प्रसाद के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया. सेमिनार में स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव व्यास जी, शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव अमरजीत सिन्हा, बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष निशा झा, पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह, महावीर कैंसर संस्थान के निदेशक डॉ जेके सिंह, तलाश के डॉ विश्वेंद्र कुमार सहित शहर के बहुतेरे गण्यमान्य उपस्थित थे. सूचना के अधिकार पर काम करनेवाले जाने-माने कार्यकर्ता निखिल डे भी थे. बाद में अरुणा राय ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उनके आवास पर शिष्टाचार मुलाकात की.

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