पटना: तीन वर्षो में कुत्ता काटने की घटनाओं में अचानक वृद्धि हुई है. वर्ष 2009 में जहां राज्य में 38,912 लोगों को कुत्तों ने काटा था, वहीं 2012 में यह आंकड़ा बढ़ कर सात लाख तीन हजार 925 हो गया. इस तरह हर दिन औसतन दो हजार लोग कुत्तों के शिकार होते हैं. इसके बावजूद राजधानी में आवारा कुत्तों पर नियंत्रण के लिए कोई एजेंसी काम नहीं कर रही. पशुगणना के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में कुत्तों की संख्या करीब डेढ़ लाख है. हालांकि, पटना नगर निगम क्षेत्र में सिर्फ एक कुत्ते का ही पंजीकरण हुआ है.
जनवरी में सबसे अधिक, तो दिसंबर में सबसे कम लोग कुत्तों के शिकार हुए.
पीएमसीएच के पीएसएम विभाग के डॉ राणा एनके सिंह के मुताबिक, कुत्ता काटने के बाद एक व्यक्ति को औसतन 1500 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. एंटी रैबीज का पहला डोज तीन-सात दिनों की सुरक्षा के लिए दिया जाता है. बाद में उसे पांच इंजेक्शन लेने पड़ते हैं. इस पर एक हजार रुपये का खर्च आता है. कुत्ता काटने के बाद अगर किसी व्यक्ति में हाइड्रोफोबिया की बीमारी का लक्षण शुरू हो गया, तो उसकी मौत निश्चित है. वर्ष 2012 में कुत्ता काटने पर करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.
अस्पताल पहुंच कर भी नहीं बचती जान : रैबीज, टेटनस व थिप्थेरिया से संक्रमित मरीजों के लिए राज्य में एकमात्र संक्रामक रोग अस्पताल अगमकुआं में है. यहां कम संख्या में ही मरीज पहुंचते हैं. कुत्ता काटने के बाद यहां वर्ष 2009 में 109 मरीज भरती हुए, जिनमें 100 मरीजों की मौत हो गयी. इसी तरह से वर्ष 2011 में 85 मरीज भरती हुए, जिनमें 10 की मौत हो गयी. शेष को उनके परिजन अस्पताल से लेकर चले गये. वर्ष 2012 में यहां 93 मरीज भरती कराये गये, जिनमें 18 की मौत अस्पताल में हो गयी. वर्ष 2013 में हाइड्रोफोबिया के 42 मरीज हुए ,जिनमें 20 की मौत हो गयी है.