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अब दिल्ली दूर नहीं ट्रेन नहीं तो बस है न
मिथिलेश वायु सेवा के दौर में जब दूरियां सिमटती जा रही हैं, बस से दिल्ली जाना कैसा रहेगा? सच मानिए जो सुनेगा, वह हंसेगा. हमने भी सुना तो हैरत हुई. जहाज और रेलगाड़ियों की उपलब्धता के बावजूद दिल्ली के लिए बस चल रही है. वह भी एक-दो नहीं, बल्कि सौ के आसपास. 1100 से अधिक […]
मिथिलेश
वायु सेवा के दौर में जब दूरियां सिमटती जा रही हैं, बस से दिल्ली जाना कैसा रहेगा? सच मानिए जो सुनेगा, वह हंसेगा. हमने भी सुना तो हैरत हुई. जहाज और रेलगाड़ियों की उपलब्धता के बावजूद दिल्ली के लिए बस चल रही है. वह भी एक-दो नहीं, बल्कि सौ के आसपास.
1100 से अधिक किमी का सफर लोग बस से तय कर रहे हैं. बिहार के अलग-अलग इलाकों से दिल्ली के लिए हर दिन बसें खुलती हैं. आखिर बस से लोग क्यों जाते हैं दिल्ली? वे कौन लोग हैं? इन सवालों को जानने के लिए हमारे विशेष संवाददाता मिथिलेश ने पटना से दिल्ली तक की यात्रा की. पढ़िए उनकी रिपोर्ट.
हे… मुजफ्फरपुर… मोहम्मदपुर… गोरखपुर…अयोध्या… मथुरा… दिल्ली़…ऐसी बस है, आइए…आइए…गर्मी में मिजाज को ठंडा रखिए…एसी बस से दिल्ली चलिए….
हम भी बैठ गये पटना से दिल्ली जाने वाली बस में. हर दिन नयी दिल्ली जाने वाली बस है ये. बस तो ठहरी बस. पैसेंजर का लोभ रोक नहीं पाती. सरकार ने परमिट दिया ऑल इंडिया टूरिस्ट कोच का. पर, सीट खाली रही तो मुजफ्फरपुर और रास्ते भर यात्री बिठाने में कोई कोताही नहीं. बस खुल चली है.
सवारों में कुछ युवा हैं तो कुछ नौकरीपेशा. नवविवाहित जोड़े भी हैं. सबकी अपनी कहानी है. बस से दिल्ली पहुंचने की़. न आईकार्ड दिखाने का झंझट और न आरक्षण के लिए कतार में खडा होने की जहमत. कहने को तो ऑनलाइन बुकिंग होती है. पर आप जहां हैं, वहीं से बैठ सकते हैं.
मणिपुर के सैम गोपालगंज अपने मित्र से मिलने उनके गांव आये हैं. अब वापसी में बस से दिल्ली पहुंच रहे हैं. बस से ही क्यों आये? युवा सैम कहते हैं, गांव से जब बस निकल रही है तो फिर रेल का झमेला क्यों? पैसा भी कोई ज्यादा नहीं लग रहा और समय भी उतना ही जितना रेल से. तो फिर बस ही ठीक लगी.
सैम का ऐसा कहना रेल व्यवस्था के लिए सवालों के सुरंग में पहुंचने के लिए काफी लगा. करीब सौ से अधिक बसें प्रतिदिन बिहार के जिला मुख्यालयों से दिल्ली के लिए खुलती हैं. इन बसों में चढ़ कर पांच हजार से अधिक लोग रोजाना दिल्ली पहुंच रहे हैं. दिन-प्रतिदिन यात्रियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है़. यह तब है जब दो दर्जन से अधिक ट्रेनें प्रतिदिन नयी दिल्ली से बिहार अप-डाउन कर रही हैं.
बस संचालक यात्रियों की सुविधा का खयाल रखते हैं. दुल्हन की तरह सजीं ये बसें वातानुकूलित हैं. इसमें 52 यात्रियों के बैठ कर और सोकर जाने प्रबंध है. 12 यात्रियों के बैठने की सीटें हैं. बाकी के 40 यात्रियों के लिए सीटों की जगह स्लीपर लगी है. एक स्लीपर पर दो लोग सो सकते हैं.
बस ठीक साढ़े 11 बजे पटना के मीठापुर स्टॉपेज से दिल्ली के लिए खुलती है. बैठने के बाद कंडक्टर ने बताया कि इसका रूट मुजफ्फरपुर होते हुए है. वहां भी 15 मिनट का स्टॉपेज है. वहां भी बुकिंग होती है. वहां से भी कई पैसेंजर चढ़ेंगे. मेरे ठीक आगे की सीट पर पटना के ज्योति बैठे हैं.
करीब 35 वर्ष के ज्योति पहली बार बस से दिल्ली की यात्रा कर रहे हैं. पहले फरीदाबाद मे नौकरी कर चुके ज्योति को दिल्ली के बारे में सब पता है.
बस से क्यों जा रहे, ट्रेन से क्यों नहीं? ज्योति ने कहा: ट्रेन में अगले चार–पांच दिनों के लिए कोई टिकट नही था. टिकट बुक करने वाली ट्रैवल एजेंसी ने कहा कि टिकट तो बन जायेगा पर नाम किसी दूसरे का होगा.
पैसा भी तीन गुना ज्यादा देना होगा. ज्योति कहते है : मेरा तो सिर चकरा गया, यह सुनकर. हमने सोचा कि एक तो पैसा अधिक ऊपर से दूसरे की पहचान के चलते कोई लफड़ा न हो जाये. इसलिए मना कर दिया.
स्टेशन से घर लौटते समय मीठापुर बस स्टैंड में नयी दिल्ली जाने वाली बस पर नजर पड़ी. पूछताछ की तो पता चला कि बैठने की सीट के 1100 और स्लीपर के 1500 लगते हैं. यह दिल्ली जाने वाली ट्रेन के थ्री एसी कोच के किराये के बराबर ही था. सो तैयार हो गया और आज बस मैं हूं.
पीछे की सीट पर एक नवविवाहित जोड़ा बैठा है़. पति लालो यादव साधारण किसान परिवार से हैं. उनकी पत्नी कृषक समाज की महिला प्रतिनिधि की तरह लग रही हैं.
वह पहली बार ऐसी बस की यात्रा कर रही हैं. दोनों की गुफ्तगू चल रही है. कभी ठेठ मैथिली में तो कभी मैथिली मिश्रित हिंदी में. पति दिल्ली में रहते हैं. वह पत्नी से हिंदी में बात करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन पहली बार गांव से बाहर निकली पत्नी की जुबान से मैथिली जाने का नाम नहीं ले रही है.
बस खुल चुकी थी. अचानक वह महिला उल्टी करने लगती है. कंडक्टर चिल्लाता है… ऐसे में तो मेरी पूरी बस गंदी हो जायेगी. चलिए साफ करिए… महिला सकुंचाते हुए गंदा कपड़ा मागती है. खुर्राट कंडक्टर उसे पुराना अखबार देता है. महिला उसे साफ करती है. कंडक्टर पति को सुझाव देता है कि वह महिला को थोड़ी देर बाहर केबिन में बैठा दें.
वह मुंह बिचकाते हुए पत्नी को ले जाकर ड्राइवर की सीट के पीछे बिठा देता है और खुद अपनी सीट पर. थोड़ी देर बाद पत्नी वापस आकर अपनी सीट पर बैठ गयी. झल्लाया हुआ पति कहता है: इस बार उल्टी की तो मुंहे-मुंह थपरा देंगे. पत्नी कातर नजरों से पति को देख रही होती है.
(कल पढ़ें दूसरी कड़ीः कुशीनगर होते हुए गोरखपुर की वह ढलती शाम )
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