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पटना : एक्सपायरी दवाओं पर नकली रैपर लगा कर काला कारोबार

कबाड़ी की दुकान से दवा माफिया ने खरीदी दवा पटना : शहर में बेची जाने वाली दवाएं जब एक्सपायर हो जाती हैं, तो उन्हें नष्ट नहीं किया जाता है, बल्कि कबाड़ी में किलो के भाव से बेच दिया जाता है. फिर दवा माफिया कबाड़ी की दुकानों से दवाएं खरीद, उन्हें नकली रैपर में पैक कर […]

कबाड़ी की दुकान से दवा माफिया ने खरीदी दवा
पटना : शहर में बेची जाने वाली दवाएं जब एक्सपायर हो जाती हैं, तो उन्हें नष्ट नहीं किया जाता है, बल्कि कबाड़ी में किलो के भाव से बेच दिया जाता है.
फिर दवा माफिया कबाड़ी की दुकानों से दवाएं खरीद, उन्हें नकली रैपर में पैक कर फुटकर दवा दुकानों में बेचने का कारोबार करते हैं. इस काले कारोबार में न सिर्फ दवा माफिया शामिल होते हैं, बल्कि उनके साथ दवाओं को नष्ट करने वाली एजेंसी के जिम्मेदार संचालक भी मिले रहते हैं.
इस तरह का खुलासा बुधवार को सगुना मोड़ स्थित सेंट्रल फॉर पॉल्यूशन कंट्रोल (सीपीपी) के नाम से संचालित हो रही एक फ्रेंचाइजी दुकान में औषधि विभाग की छापेमारी में किया गया, हालांकि मौके से तीन आरोपित फरार हो गये.
कबाड़ी में बेच देते थे दवाएं : दानापुर स्थित सगुना मोड़ के पास सेंट्रल फॉर पोल्यूशन कंट्रोल नाम की एक फ्रेंचाइजी संचालित हो रही है. यह कंपनी वाराणसी की है.
औषधि विभाग के इंस्पेक्टर सच्चिदानंद विक्रांत ने बताया कि ऑपरेशन ड्रग माफिया अभियान के तहत 21 अप्रैल से 24 अप्रैल के बीच बहादुरपुर स्थित विस्कोमान कॉलोनी आदि कुछ जगहों पर छापेमारी की गयी. इसमें 12 करोड़ रुपये की एक्सपायरी दवाएं मिलीं. सबसे अधिक पैंटेक 40 इंजेक्शन के कुल 32 कार्टून मिले थे. ये दवाएं कबाड़ी से खरीद नये रैपर लगा कर बेची जा रही थीं.
कबाड़ी को दवाएं सीपीपी के जरिये बेची गयी थीं. सीपीपी के मेन संचालक संतोष ओझा और सर्ज फार्मास्युटिकल के मालिक शशिभूषण कुमार शर्मा, विवेक कुमार के खिलाफ थाने में एफआइआर दर्ज करायी गयी है. फिलहाल तीनों आरोपित फरार हैं, उम्मीद है कि जल्द ही पुलिस पकड़ कर उनके खिलाफ कार्रवाई करेगी.
जलाने के नाम पर कंपनी लेती थी दवा
ड्रग इंस्पेक्टर सच्चिदानंद विक्रांत ने बताया कि सीपीपी कंपनी की फ्रेंचाइजी पटना के सगुना मोड़ के पास संचालित हो रही है. कंपनी पटना की दवा दुकानों में हो चुकी एक्सपायर दवाओं को जलाने के नाम से दवाएं लेती थी और बनारस भेजने के बदले उसे कबाड़ी में बेच देती थी. बाद में माफिया उन एक्सपायर दवाओं को खरीद नया रैपर लगाते थे और दवाओं को दुकान में बेचते थे.

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