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बिहार : जीवनयापन के अवसर मुहैया कराने से कमजोर हो रहा लाल आतंक

पटना : पिछले तीन साल के दौरान सूबे में लाल आतंक का साया तेजी से सिमटा है. वर्तमान में इनका वजूद चार जिलों लखीसराय, गया, जमुई और औरंगाबाद में रह गया है. नक्सली वारदातों में तीन साल में 30 फीसदी की कमी आयी है. वर्ष 2016 में 100 वारदातें हुई थीं, जो 2017 में घटकर […]

पटना : पिछले तीन साल के दौरान सूबे में लाल आतंक का साया तेजी से सिमटा है. वर्तमान में इनका वजूद चार जिलों लखीसराय, गया, जमुई और औरंगाबाद में रह गया है. नक्सली वारदातों में तीन साल में 30 फीसदी की कमी आयी है. वर्ष 2016 में 100 वारदातें हुई थीं, जो 2017 में घटकर 71 और 2018 में अब तक महज 13 पर आकर सिमट गयी है.
इनकी मांद में घुसकर सुरक्षा बलों की कार्रवाई के कारण ही 2016 में 468, 2017 में 383 और 2018 में 111 नक्सली गिरफ्तार हुए. इस दौरान 40 से ज्यादा ने आत्मसमर्पण भी किया. केंद्रीय सुरक्षा बलों और एसटीएफ की संयुक्त कार्रवाई के अलावा नक्सल प्रभावित दुर्गम इलाकों में आम लोगों के लिए सिविक एक्शन प्रोग्राम (सीएपी) के तहत जीवनयापन के लिए कई अवसर मुहैया कराकर आम लोगों का नक्सलियों के प्रति मोह भंग करने में काफी सफलता मिल रही है.
सीआरपीएफ ने इन इलाकों में आम लोगों के लिए मूलभूत सुविधा के साथ-साथ उन्हें स्वरोजगार के अवसर भी दिला रही है. सीएपी की रणनीति काफी कारगर साबित हो रही और इसका व्यापक असर भी दिख रहा है. नक्सलियों को मात देने में यह काफी कारगर साबित हो रहा है.
इन इलाकों में की गयी व्यवस्था
सीआरपीएफ के स्तर पर दो दर्जन से ज्यादा दुर्गम नक्सली इलाकों में पिछले दो साल में सीएपी के तहत उल्लेखनीय कार्य कराये गये हैं. कई ऐसे कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, जो लोगों के जीवनस्तर को सुधारने में काफी मददगार साबित हुए हैं.
सबसे ज्यादा काम गया, औरंगाबाद, जमुई और कैमूर जिलों में कराये गये हैं. इसके तहत गया के इमामगंज में युवाओं के लिए बेल्डर कोर्स, भलुआही और औरंगाबाद के मदनपुर में ग्रामीण महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण देने के साथ ही उन्हें मशीन भी दी गयी, जमुई के माहेश्वरी में कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र, औरंगाबाद के देव प्रखंड के केताकी पंचायत में कंप्यूटर प्रशिक्षण, गया के केंदुई में वेल्डर प्रशिक्षण केंद्र का आयोजन कर युवाओं और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने को विशेष कार्य किये गये. इन केंद्रों में नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों को ट्रेनिंग दी गयी.
इसी तरह बांका के बेलहर के धावाटांड़ एवं जरलाही, मदनपुर (औरंगाबाद) के ढिबरा, औरंगाबाद के अम्बा के छुछिया समेत अन्य इलाकों में सोलर लाइटें लगायी गयीं. लखीसराय के गोहरी पंचायत के महादलित टोला में शौचालय का निर्माण कराया गया. सीआरपीएफ ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नक्सल ऑपरेशन के दौरान शहीद हुए अपने जवानों के नाम से पुस्तकालय भी खोले हैं. ये लाइब्रेरी शहीद जवानों के गांव में ही खोले गये हैं.
इसमें कैमूर जिले के सराय कैमूर शहीद सुनील राम और चेनारी में कृष्ण कुमार पांडेय के नाम पर लाइब्रेरी खोलना शामिल है.कृषि में प्रयोग: दुर्गम इलाकों के लोगों को समेकित खेती से जोड़ने की भी मुहिम शुरू की गयी है. इसमें औरंगाबाद जिले के भीमबांध इलाके में मुर्गीपालन फॉर्म के अलावा जमुई और कैमूर के कुछ इलाकों में सब्जी और फल की खेती की शुरुआत की गयी है. इन सुदूर इलाकों में किसान जो भी उपजायेंगे, उनके अधिकतर उत्पाद को सीआरपीएफ के बेस कैंप में खपत किया जायेगा और इसके बदले उन्हें बाजार भाव से पेमेंट करने की व्यवस्था है.

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