पटना िसटी में जन्मे दलेर मेहंदी को जानने वाले कहते हैं िक ऐसा नहीं है वह
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बिहारी माटी से पाया मुकाम, कबूतरबाजी में हुए बदनाम
पटना िसटी में जन्मे दलेर मेहंदी को जानने वाले कहते हैं िक ऐसा नहीं है वह पटना सिटी : पटना साहिब की पावन धरती पर ही जन्म लेने व बचपन िबताने वाले दलेर मेहंदी ऐसा नहीं हैं. गुरु महाराज की पवित्र मिट्टी की ताकत से मुकाम को स्पर्श किया था, अब कबूतरबाजी में बदनाम हो […]
पटना सिटी : पटना साहिब की पावन धरती पर ही जन्म लेने व बचपन िबताने वाले दलेर मेहंदी ऐसा नहीं हैं. गुरु महाराज की पवित्र मिट्टी की ताकत से मुकाम को स्पर्श किया था, अब कबूतरबाजी में बदनाम हो रहा है. हालांकि, शुक्रवार को पटियाला कोर्ट से कबूतरबाजी के मामले में दलेर सुनायी गयी दो वर्षों की सजा पर उसे जानने वाले सहसा विश्वास नहीं कर पा रहे हैं. नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि बिहार की पवित्र माटी की ताकत व गुरु महाराज की कृपा से बुलंदियों को छूने वाले दलेर मेहंदी ऐसे नहीं हैं,
उनको साजिश के तहत फंसाया गया. मिलनसार प्रवृति के दलेर मेहंदी गुरुघर आने के बाद बचपन की स्मृतियों को संजोये हुए अपने बचपन के मित्रों मिलते हैं. 350 वें प्रकाश पर्व के बाद तख्त साहिब में हाजिरी लगाने पहुंचे दलेर मेहंदी ने अतीत को याद करते हुए बताया था कि गुरुघर के कर्मियों के बीच बनाये गये स्टाफ क्वार्टर में उसका जन्म 10 नवंबर, 1966 को हुआ था. जिस समय जन्म हुआ, गुरुघर में उस समय गुरु महाराज के 300 वें शताब्दी गुरुपर्व की तैयारी चल रही थी.
तभी तो मैं इसी कारण हमेशा गुरु महाराज को याद कर तीन सौ साल गुरु दे नाल, हर दिन हर पल गुरु दे नाल भजन दिल से गाता हूं. दलेर छह भाई व दो बहन हैं. पिता अजमेर सिंह चंदन व माता दलबीर कौर के साथ छह भाइयों में बड़ा भाई शमशेर सिंह, दूसरा अमरजीत सिंह, तीसरा दलेर मेहंदी, चौथा भाई हरजीत सिंह, पांचवां जोगिंदर सिंह व छठा भाई अमरीक सिंह उर्फ मिक्का है. दलेर के परिवार को जानने वाले बताते हैं कि दलेर यहीं बचपन में सातवीं क्लास तक पढ़ा था. मंगल तालाब पर वह खेलने जाता था.
जब भी िसटी आते, पुराने कमरे में जरूर जाते
जिस घर में दिलेर मेहंदी का बचपन गुजरा. उस घर के कमरे में आज भी सेवादार ही रहते हैं. मां की सहेली पड़ोसी राधा देवी व बहन चरणजीत कौर व गुरमीत कौर की सहेली प्रेम सुंदर देवी व पिता के दोस्त इंदर सिंह बताते हैं कि गुरुघर में सेवा देने या फिर किसी काम से बाहर जाने के क्रम में भाई बहन को देखरेख के लिए यहीं छोड़ कर जाते थे. बच्चे यहीं उधम मचाते थे. दिलेर के बचपन की यादों को आज याद कर बताते हैं कि किस तरह बच्चे मंगल तालाब पर खेलने जाते थे. दिलेर को जानने वाले कहते हैं कि दिलेर साजिश का शिकार हो गया, वह ऐसा नहीं हो सकता है.
इंदर सिंह बताते हैं कि दलेर जब भी गुरुघर में आते हैं, वे अपने पुराने कमरे में आकर एक बार नतमस्तक होते हैं. फिर भूमि को स्पर्श करते हैं. कहते हैं कि यह जन्मस्थान की पवित्र धूल है.
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