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बिल्डर ने दी 25 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी

पटना: राजधानी के डाकबंगला के पास बंदर बगीचा स्थित संतोषा कॉम्प्लेक्स के तीन फ्लोर तोड़ने के मामले में सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला बुधवार को आयेगा. बिल्डर ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के पास 25 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी जमा कर दी है. इस राशि से उन्हें मुआवजा दिया जायेगा, जिनके फ्लैट तोड़े जाने […]

पटना: राजधानी के डाकबंगला के पास बंदर बगीचा स्थित संतोषा कॉम्प्लेक्स के तीन फ्लोर तोड़ने के मामले में सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला बुधवार को आयेगा. बिल्डर ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के पास 25 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी जमा कर दी है. इस राशि से उन्हें मुआवजा दिया जायेगा, जिनके फ्लैट तोड़े जाने हैं. ये तीन फ्लोर नक्शे का विचलन कर बनाये गये थे.

कॉम्प्लेक्स का निर्माण वर्ष 1999 में हुआ था. इसके फ्लैट वर्ष 2004-05 तक बेचे गये. लेकिन, नक्शे में विचलन के आरोप में इसके खिलाफ वर्ष 2000 में ही निगरानीवाद का केस दर्ज किया गया था. 24 अप्रैल, 2000 में इसके तीन फ्लोर तोड़ने का आदेश दिया गया था. इसके खिलाफ बिल्डर ने ट्रिब्यूनल, हाइकोर्ट के सिंगल व डबल बेंच और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील की. कहीं से भी बिल्डर को राहत नहीं मिली. तीन फ्लोर तोड़ने का आदेश बरकरार रहा. सुप्रीम कोर्ट ने सात मई, 2013 को फैसला दिया, तो फिर पुनर्विचार याचिका दायर की गयी. इसकी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर को 6 मई तक 25 करोड़ रुपये जमा करने का आदेश दिया. जानकारी के अनुसार बिल्डर ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के पास 25 करोड़ की बैंक गारंटी जमा कर दी है.

कॉम्प्लेक्स में दो तरह के फ्लैट का निर्माण किया गया. कुछ 1900 वर्ग फुट, तो कुछ 2300 वर्ग फुट के हैं. कीमत 900 रुपये प्रति वर्ग फुट थी. इस हिसाब से फ्लैट की कीमत करीब 17 लाख व 20 लाख थी. इस तरह पूरे अपार्टमेंट के फ्लैट करीब आठ करोड़ 69 लाख 40 हजार रुपये में बेचे गये. सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर एसके बंसल से 25 करोड़ रुपये जमा कराये हैं, उसकी कमाई से तीन गुना है.

क्यों दिया गया तोड़ने का आदेश
कॉम्प्लेक्स का नक्शा जी+6 का स्वीकृत किया गया था, जिसमें प्रत्येक फ्लोर पर चार फ्लैट बनाये जाने थे. लेकिन, बिल्डर ने प्रत्येक फ्लोर पर छह फ्लैट बनाये. इसके साथ ही जी+ 9 फ्लोर की बिल्डिंग खड़ी कर दी.

अवैध निर्माताओं के लिए सबक
संतोषा कॉम्प्लेक्स का मामला उन बिल्डरों के लिए सबक है, जो कानून की परवाह नहीं करते. राजधानी में निर्माणाधीन 340 अपार्टमेंटों पर केस दर्ज किया गया, जिस पर लगातार नगर आयुक्त के कोर्ट में सुनवाई किया जा रहा है. अब तक करीब 30 निर्माणाधीन अपार्टमेंटों को तोड़ने का आदेश दिया गया है. इन बिल्डरों ने निगरानी कोर्ट के फैसले के विरुद्ध बिल्डिंग ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की है.

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