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जुलाई, 2009 में पूर्ण सूर्यग्रहण को लेकर चर्चा में आयी थी आर्यभट्ट की वेधशाला

पटना : महान भारतीय गणितज्ञ व खगोलशास्त्री आर्यभट्ट को बिहार भले ही अपना बताये लेकिन उनको उचित सम्मान देने की नीयत नहीं रखता. इसका बड़ा उदाहरण है कि आर्यभट्ट की वेधशाला कही जाने वाली खगौल, तारेगना व तारेगना टॉप को पहचान दिलाने के लिए बिहार सरकार ने जिस एस्ट्रो टूरिज्म प्रोजेक्ट की घोषणा की थी, […]

पटना : महान भारतीय गणितज्ञ व खगोलशास्त्री आर्यभट्ट को बिहार भले ही अपना बताये लेकिन उनको उचित सम्मान देने की नीयत नहीं रखता. इसका बड़ा उदाहरण है कि आर्यभट्ट की वेधशाला कही जाने वाली खगौल, तारेगना व तारेगना टॉप को पहचान दिलाने के लिए बिहार सरकार ने जिस एस्ट्रो टूरिज्म प्रोजेक्ट की घोषणा की थी, वह लंबे समय से फाइलों की धूल फांक रहा है. घोषणा के करीब चार साल बाद भी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग कंपनियों से आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल) ही मांग रहा है.

वर्ष 2013-14 के बजट भाषण में प्रावधान : एस्ट्रो टूरिज्म प्रोजेक्ट का प्रावधान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने वर्ष 2013-14 के बजट में किया था. इस प्रोजेक्ट के तहत आर्यभट्ट की कर्मस्थली पटना से सटे खगौल, तारेगना (मसौढ़ी) व तारेगना टॉप (बिहटा) क्षेत्र को उनके ऐतिहासिक व खगोलीय महत्व के हिसाब से विकसित किया जाना था.
इन जगहों पर थीम बेस्ड एरिया, एस्ट्रोनॉमी एक्टिविटी सेंटर व वेधशाला की स्थापना की जानी थी. लेकिन, प्रोजेक्ट फाइल से बाहर ही नहीं निकल सका.
l विकसित किया जाना था तारेगना, खगौल व तारेगना टॉप का 30 किमी लंबा त्रिकोण
l प्रोजेक्ट को लेकर खगोलविदों ने भी दी राय
कई खगोलविदों ने आर्यभट्ट प्रोजेक्ट को लेकर अपनी राय भी दी है. खगोलविद अमिताभ पांडेय ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि विशाल कलापूर्ण रेखगणितीय स्मारक चिह्न तथा आर्यभट्ट का चित्र उकेरा जा सकता है, जो सूर्य, घड़ी और वर्ष के कैलेंडर का काम करे. आर्यभट्ट संग्रहालय बना कर उसमें उनकी जीवनी, खगोलशास्त्र में उनके योगदान व इस्तेमाल किये गये उपकरणों को प्रदर्शित किया जाये.
l अभी निर्माण शुरू होने में लंबी प्रक्रिया
बजटीय प्रावधान के चार सालों बाद आरएफपी आमंत्रित किया गया है. हालांकि इसके बाद भी निर्माण कार्य शुरू होने की लंबी प्रक्रिया है. आधिकारिक प्रक्रिया के मुताबिक आरएफपी के बाद मास्टर प्लान व फिजिबिलिटी रिपोर्ट बनायी जायेगी, जिसके लिए मास्टर प्लान कंसलटेंट बहाल होगा. मास्टर प्लान की राज्य सरकार से मंजूरी के बाद ही तय होगा कि प्रोजेक्ट के अंतर्गत कौन-कौन से काम किये जाने हैं.
l वर्ष 2009 में पूर्ण सूर्यग्रहण के बाद चर्चा में आया था तारेगना
तारेगना वर्ष 2009 में पूर्ण चंद्रग्रहण को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया था. नासा ने 22 जुलाई 2009 को सबसे लंबी अवधि (3.48 मिनट) तक दिखने वाले पूर्ण सूर्यग्रहण को देखने के लिए तारेगना को सबसे उपयुक्त जगह बताया था. उस वक्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी सहित बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी व वैज्ञानिक यहां पहुंचे और पूर्ण चंद्रग्रहण देखा. तब मुख्यमंत्री ने भी मसौढ़ी के तारेगना, बिहटा के तारेगना टॉप व खगौल के 30 किमी लंबे त्रिकोण को विकसित कर इसे शोध केंद्र के रूप में स्थापित करने की घोषणा की थी लेकिन नौ साल बाद भी कोई खास प्रगति नहीं हुई.
साइंस सिटी का भी छह वर्षों से हो रहा इंतजार
विज्ञान एवं प्रावैधिकी विभाग ने करीब छह साल पहले छात्रों में विज्ञान के प्रति जागरूकता पैदा करने व वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के आम जीवन में हो रहे प्रयोग को प्रदर्शित करने के लिए साइंस सिटी की परिकल्पना की थी. यह साइंस सिटी मोइनुल हक स्टेडियम के बगल में सैदपुर स्थित 15.56 एकड़ भूमि पर करीब 400 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जाना था. लेकिन, इस योजना का हश्र भी बुरा है. वर्तमान में साइंस सिटी के लिए सिर्फ मास्टर प्लान कंसल्टेंट का चयन ही किया जा सका है. यह कंसल्टेंट कब तक मास्टर प्लान बना कर देगा, इसकी तिथि भी तय नहीं है. मास्टर प्लान की मंजूरी के बाद ही निर्माण की कार्रवाई शुरू हो सकेगी.

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