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बिहार : बाघों की गिनती के लिए लगे हैं 500 कैमरे, मार्च तक मिलेगी संख्या की जानकारी

मार्च तक मिलेगी संख्या की जानकारी, आधुनिक तरीकों का किया जा रहा है इस्तेमाल पटना : बिहार के पश्चिम चंपारण में मौजूद वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) में बाघों की गिनती के लिए 500 कैमरे लगाये गये हैं. सही संख्या की जानकारी के लिए आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. पूरी प्रक्रिया पूरी होने […]

मार्च तक मिलेगी संख्या की जानकारी, आधुनिक तरीकों का किया जा रहा है इस्तेमाल
पटना : बिहार के पश्चिम चंपारण में मौजूद वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) में बाघों की गिनती के लिए 500 कैमरे लगाये गये हैं. सही संख्या की जानकारी के लिए आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. पूरी प्रक्रिया पूरी होने के बाद मार्च में सभी रिपोर्ट नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) को भेजी जायेगी. वहां से जांच-पड़ताल के बाद बाघों की संख्या की घोषणा मार्च के अंत तक किये जाने की संभावना है.
वीटीआर के आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि बाघों की गिनती वहां के स्थानीय अधिकारी कर रहे हैं.बाघों की गिनती प्रत्येक चार वर्ष बाद की जाती है. लगभग 900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस क्षेत्र में साल 2000-2001 की गणना में बाघों की संख्या 30 से अधिक थी. 2005-06 की गणना में यह घटकर 18 पर आ गयी. वहीं वर्ष 2010 की गणना में महज आठ बाघ ही इस क्षेत्र में पाये गये. साल 2014 की गणना के बाद चौंकाने वाले परिणाम सामने आये. बाघों की संख्या आठ से बढ़कर 28 हो गयी. फिलहाल इसकी संख्या में अच्छी-खासी बढ़ोतरी की संभावना है.
कैसे हो रही बाघों की गिनती
वीटीआर में बाघों की गिनती के लिए कैमरा ट्रैप के अलावा एम-स्ट्राइप नाम के मोबाइल एप्लीकेशन का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे गणना का कार्य और बेहतर होने की उम्मीद है. मोबाइल एप एम-स्ट्राइप को संचालित करने के लिए वन अधिकारियों और कर्मचारियों को पिछले दिनों प्रशिक्षण दिया गया था. इसमें राष्ट्रीय बाघ प्राधिकरण के अधिकारी भी शामिल थे. एम-स्ट्राइप नाम के मोबाइल एप्लीकेशन में कर्मचारियों के मोबाइल में एप डाउनलोड किया जाता है. यह मोबाइल एप जीपीएस की तरह काम करता है. बाघों के दिखायी देने पर मोबाइल एप से उनकी फोटो खींची जाती है. इससे अपने-आप उसमें बाघों की संख्या दर्ज हो जाती है. पूरे दिन जंगल में गश्त करने के बाद मोबाइल एप के डाटा को टाइगर सेल में सुरक्षित रखा जाता है.
– पदचिह्नों की जांच
वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के क्षेत्र निदेशक एस चंद्रशेखर ने बताया कि बाघों की गिनती के लिए वन अधिकारी जंगल में उनके पदचिह्नों की पहचान करते हैं. इसे ट्रैकिंग पद्धति कहा जाता है. मिट्टी में बाघों के पंजों के निशान में चूना देकर उसकी पहचान पुख्ता करने की कोशिश की जाती है. इसके लिए इलाके का क्षेत्र निश्चित कर काम किया जाता है. एक क्षेत्र में करीब बीस दिन लगते हैं. इस तरह आधुनिक उपकरण और अधिकारियों द्वारा मैन्यूअल तरीकों का प्रयोग बाघों की गणना में की जाती है.

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