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बिहार : बिना तैयारी लिया इंपोर्ट परमिट, समय सीमा खत्म हो गयी, नहीं आया एनाकोंडा
पटना : नवंबर 2015 में पटना जू ने डेनमार्क के क्रोकोडायल जू के साथ एनीमल एक्सचेंज की योजना बनाई. चेन्नई के एक बड़े रेप्टाइल विशेषज्ञ की मध्यस्थता में कई बार विमर्श होने के बाद डेनमार्क से गांगेय घड़ियाल के बदले ग्रीन एनाकोंडा, रायल पैथन, राइनो इगुआना आैर नाइल क्रोकोडायल की अदला बदली तय हुई. 24 […]
पटना : नवंबर 2015 में पटना जू ने डेनमार्क के क्रोकोडायल जू के साथ एनीमल एक्सचेंज की योजना बनाई. चेन्नई के एक बड़े रेप्टाइल विशेषज्ञ की मध्यस्थता में कई बार विमर्श होने के बाद डेनमार्क से गांगेय घड़ियाल के बदले ग्रीन एनाकोंडा, रायल पैथन, राइनो इगुआना आैर नाइल क्रोकोडायल की अदला बदली तय हुई. 24 फरवरी 2016 को केंद्रीय जू प्राधिकार की मंजूरी भी मिल गयी. जानवरों को विदेश भेजने के लिए आवेदन दिया गया.
दिसंबर 2016 में विदेश मंत्रालय से इंपोर्ट परमिट भी मिल गयी पर अन्य तैयारियां पूरी नहीं होने के कारण जानवरों की अदला-बदली का समय टलता रहा. तीन महीने बाद अंतत: परमिट अवधि खत्म हो गयी और एनाकोंडा समेत अन्य रेप्टाइल नहीं आ सके.
लाने की तैयारी भी नहीं है पूरी : डेनमार्क से चार विशेष प्रकार के रेप्टाइल को पटना लाने के लिए विशेष कंटेनर का इस्तेमाल होना है जो आईयूसीएन के द्वारा तय मानदंडों के हिसाब से बनाये जाते हैं. लेकिन जू प्रशासन ने परमिट लेने से पहले न तो विशेष कंटेनर बनाये गये थे और न ही कोई अन्य व्यवस्था की थी.
पटना जू से घड़ियाल ले जाने के लिए डेनमार्क जू के द्वारा जिन विशेष कंटेनरों का इस्तेमाल होता, उनसे नाइल क्रोकोडायल को लाया जा सकता था लेकिन ग्रीन एनाकोंडा, रायल पैथन और राइनो इगुआना के लिए अलग प्रकार के कंटेनर की जरूरत है जिसे प्रबंधन बनायेगा.
अब दोबारा लेनी पड़ेगी इजाजत : अब जू प्रबंधन को डेनमार्क से रेप्टाइल लाने के लिए विदेश मंत्रालय से दोबारा इंपोर्ट परमिट लेनी पड़ेगी. पिछले अनुभव को देखते हुए जू प्रबंधन ने निर्णय लिया है कि जब तक तैयारी पूरी नहीं हो जाती, परमिट नहीं लिया जाये.
व्यवस्था नहीं
एनाकोंडा समेत डेनमार्क से अन्य जानवरों के नहीं आ पाने की प्रमुख वजह उनको रखने की व्यवस्था नहीं होना था. नाइल क्रोकोडायल को तो घड़ियाल के इनक्लोजर में रखा जा सकता था. लेकिन ग्रीन एनाकोंडा, रायल पैथन और राइनो इगुआना को रखने के लिए सांप घर में विशेष केस बनाये जाने थे, जो अब तक नहीं बन सके हैं.
ऐसे में या तो आधारभूत संरचना के निर्माण में तेजी लायी जानी चाहिए थी या परमिट लेेने में देर की जानी चाहिए थी. लेकिन बिना पूरी तैयारी के इंपोर्ट परमिट लेने में हड़बड़ी दिखायी गयी. नतीजा पूरी परमिट अवधि बीत गयी और एक भी जानवर न तो डेनमार्क से पटना जू आ सका और न ही पटना से डेनमार्क जा सका.
इंपोर्ट परमिट मिलने के बाद भी एनाकोंडा पहले क्यों नहीं आ सका, इसके बारे में मुझे विशेष जानकारी नहीं है. अब पूरी तैयारी के बाद ही परमिट लेंगे. अप्रैल-मई में दोबारा परमिट लेकर एनाकोंडा को यहां लाने का प्रयास करेंगें. तब तक उन्हें रखने की व्यवस्था पूरी हो जायेगी और डेनमार्क का मौसम भी ठीक हो जायेगा.
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