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बिहार : गंगा के तटवर्ती इलाके में आर्सेनिक के प्रभाव पर काम करेंगी आठ संस्थाएं
कवायद. 20 फरवरी को पटना में अधिकारी करेंगे मंथन पटना : गांगेय क्षेत्र (गंगा के तटवर्ती इलाके) के पानी में आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा से इस इलाके की बड़ी आबादी विभिन्न रोगों का शिकार हो रही है. बिहार के 15 जिलों के भू-जल में इसके स्तर में खतरनाक बढ़ोतरी होने से इसके पानी का उपयोग […]
कवायद. 20 फरवरी को पटना में अधिकारी करेंगे मंथन
पटना : गांगेय क्षेत्र (गंगा के तटवर्ती इलाके) के पानी में आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा से इस इलाके की बड़ी आबादी विभिन्न रोगों का शिकार हो रही है. बिहार के 15 जिलों के भू-जल में इसके स्तर में खतरनाक बढ़ोतरी होने से इसके पानी का उपयोग करने वालों के लिए कैंसर का खतरा बढ़ गया है.
इसके अध्ययन और समाधान के लिए भारत और ब्रिटेन की सरकार मिलकर काम करेगी. दोनों देशों के आठ संस्थानों को इसकी जिम्मेदारी दी गयी है. इसमें से बिहार में महावीर कैंसर संस्थान, पश्चिम बंगाल में आईआईटी खड़गपुर, उत्तर प्रदेश में आईआईटी रुड़की और उत्तराखंड में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलोजी काम करेगी. इनका साथ ब्रिटेन की मैनचेस्टर, सालफोर्ड और बर्मिंघम यूनिवर्सिटी सहित ब्रिटिश जियोलॉजिकल सोसाइटी देंगी. आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि भारत और ब्रिटेन की नैचुरल एनवायरमेंट रिसर्च काउंसिल
(एनईआरसी) के अंतर्गत सभी संस्थाओं के प्रतिनिधियों की बैठक 19 फरवरी को दिल्ली में होगी. इसके बाद 20 फरवरी को ब्रिटेन की सभी संस्थाअों के प्रतिनिधि पटना आकर यहां के अधिकारियों से विचार-विमर्श करेंगे.
बिहार के 15 जिले प्रभावित
पर्यावरणविदों का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पीने के पानी में आर्सेनिक की प्रति लीटर मात्रा 0.01 मिग्रा तय की हुई है. जबकि, भारत सरकार ने 0.05 मिग्रा तक आर्सेनिक का मानक तय किया है. पीने के पानी में इससे अधिक आर्सेनिक होना स्वास्थ्य के लिए जानलेवा हो सकता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 15 जिलों के 57 ब्लाॅकों में आर्सेनिक की मात्रा सरकार द्वारा निर्धारित मानक से अधिक पायी गयी है.
ये जिले हैं- बक्सर, भोजपुर, पटना, खगड़िया, लखीसराय, सारण, वैशाली, बेगूसराय, समस्तीपुर, मुंगेर, भागलपुर, दरभंगा, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज. समस्तीपुर के एक गांव हराइल छापर में भू-जल के एक नमूने में आर्सेनिक की मात्रा 2.1 मिग्रा पायी गयी है. पर्यावरणविद और बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के अध्यक्ष डॉ एके घोष ने बताया कि गांगेय क्षेत्र में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ती जा रही है. इसके समाधान के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और ब्रिटेन की एनईआरसी की देखरेख में आठ संस्थान बिहार, पश्चिम बंगाल, यूपी और उत्तराखंड में काम करेंगे.
– इंजीनियरों ने फिल्टर विकसित किया: जादवपुर यूनिवर्सिटी के इंजीनियरों ने कैलिफोर्निया विवि के वैज्ञानिकों की मदद से आर्सेनिक रिमूवेबल फिल्टर विकसित किया है. यह पानी से आर्सेनिक का प्रदूषण दूर करता है. इन्होंने आर्सेनिक प्रभावित दक्षिण 24 परगना जिले में बारुईपुर के समीप एक स्कूल में एक जलशोधक संयंत्र स्थापित किया है, जो प्रतिदिन 10,000 लीटर पानी को पीने लायक बनाता है.
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